परमाणु दायित्व विधेयक पर केंद्र सरकार एक बार फिर से संकट में घिरती दिखाई दे रही है, आज सांसदों को इस विधेयक का जो मसौदा सौंपा गया है उसके एक संशोधित उपबंध १७ बी के कारण राजनीति में एक बार फिर से उफान आ गया है. इस मसले पर भाजपा और वाम दलों ने सरकार से स्पष्टीकरण की मांग की है. इस नए संशोधन के अनुसार किसी भी परमाणु संयंत्र में होने वाली दुर्घटना की स्थिति में यह साबित करना हमारी ज़िम्मेदारी होगी कि यह सब जान बूझ कर किया गया है.
किसी भी परिस्थिति में कोई भी सरकार इस तरह के किसी भी मसौदे को कैसे मंज़ूर कर सकती है जो कभी भी देश के खिलाफ जा सकता है ? अगर इस मामले में सरकार की मंशा साफ़ है तो उसे अविलम्ब इस पर अपने रुख को स्पष्ट कर देना चाहिए. कोई भी दुर्घटना होने पर अब भारत को यह सिद्ध करना पड़ेगा कि यह सब जान बूझकर किया गया है. हो सकता है कि किसी ख़राब और पुरानी तकनीकी के संयंत्र को बेचने के कारण यह दुर्घटना हो जाये तब कैसे साबित किया जायेगा कि यह जान बूझकर किया गया है ? किसी भी समय भोपाल जैसे कांड के हो जाने पर हमें यह सिद्ध करना होगा कि एंडरसन भोपाल के लोगों को मार डालना चाहता था ? अच्छा ही है कि इस उपबंध के बारे में अभी पहले से ही पता चल गया वर्ना हमारे माननीय सांसद संसद में केवल हल्ला मचाने के लिए ही जाते हैं किसी भी मसले पर बहस करके सरकार की बखिया उधेड़ने के स्थान पर वे बहिर्गमन का रास्ता उचित समझते हैं ?
अब भी समय है कि आज ही १०००० रूपये की और बढ़ोत्तरी के बाद माननीय लोग संसद के काम काज में अधिक रूचि लें और केवल वेतन भत्तों के स्थान पर देश के हित के बारे में भी सोचना शुरू कर दें ? भारत ने कई देशों के साथ ऐसा असैनिक परमाणु समझौता किया है पर केवल अमेरिका ही इस तरह की छूट क्यों चाहता है ? भारत सरकार को उसे यह स्पष्ट तौर पर समझा देना चाहिए कि अब सब उसकी मर्ज़ी से नहीं चलने वाला है कोई समझौता केवल बराबरी के साथ किया जा सकता है और अगर उसे यह मंज़ूर नहीं है तो वह कभी भी अपने किसी भी समझौते से पीछे हटने के लिए स्वतंत्र है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
बढिया विश्लेषण .. रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाएं !!
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