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सोमवार, 30 अगस्त 2010

नक्सलियों पर ममता ?

      केन्द्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने ममता के नक्सलियों के सम्बन्ध में दिए गए बयान का बचाव करते हुए कहा है कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार को चलाने के लिए कुछ बातें तय की गयी थीं जिनके तहत ही इसे चलाया जा रहा है. इसमें इस बात का कहीं कोई मतलब नहीं है कि गठबंधन के दल अपनी बात कहने के लिए स्वतंत्र नहीं हैं ? उन्होंने कहा कि ममता ने आज़ाद के मामले में जिस तरह से जांच की मांग की थी उसमें कुछ भी गलत नहीं है अगर किसी को लगता है कि कहीं पर कुछ गलत हुआ है तो उसकी जांच होनी ही चाहिए ? देश में लोग खुलकर सोहराबुदीन मामले की जांच की मांग करते हैं तो अगर नक्सल प्रभावित क्षेत्र में लोगों के मन की बात कह दी जाये जिससे लोगों को यह लगे कि अगर  कुछ गलत हुआ है तो उसकी जांच भी संभव है तो बात बन सकती है.
             नक्सली देश की मुख्य धारा से भटके हुए लोग हैं और वे कुछ ऐसा करना कहते हैं जिससे केवल उनकी ही चलती रहे ? पर आज के युग में जब मीडिया इतना अधिक सक्रिय है तो किसी भी तरह के फर्जी मामलों में सरकार और पुलिस को लेने के देने ही पड़ जाते हैं. आज जो लोग बातचीत की बात कर रहे हैं  उनके सरकार में शामिल या समर्थन देते समय ही कश्मीर में सबसे पहले आग लगी थी जब १९९० में रुबैया सईद को एक प्लान के तहत आतंकियों ने अगवा कर लिया था ? १९९९ में कंधार कांड में पाक और तालिबान से बात किसने की थी ? सरकार में रहकर जिस तरह से बहुत कुछ करना पड़ता है विपक्ष में बैठने पर लोग इसी ज़िम्मेदारी से मुक्त हो जाते हैं ? जब कश्मीरी अलगाव वादियों और तालिबान से बात की जा सकती है तो फिर आज़ाद के मामले में बात करने से क्या परेशानी आने वाली है ?
                 देश के नेताओं में एक चलन सा बन गया है कि किसी भी बात को अपने हितों के देखते हुए ही आगे बढ़ाया जाये भले ही उसमें देश का चाहे जितना अहित हो जाये ? नेता की पार्टी के वोट बढ़ने चाहिए भले ही देश उसके लिए कितनी भी बड़ी कीमत चुकाए ? नक्सली भी देश के गद्दार हैं पर जब हम उनको बात चीत की मुख्य धारा में शामिल होने और बातचीत का न्योता देते है तो कहीं न कहीं से उनको यह दिखाना ही होता है कि हाँ हम भी शांति चाहते हैं. हालांकि इन सभी बातों का फायदा ऐसे संगठन अपने को मज़बूत करने के लिए उठाते हैं, फिर भी बात चीत का रास्ता अचानक ही बंद तो नहीं किया जा सकता है ? पाक से बातचीत शुरू करने के लिए अटल सरकार ने रमज़ान के महीने में एक तरफ़ा संघर्ष विराम की बात कही थी जिसके सार्थक परिणाम भी सामने आये थे. अच्छा हो कि कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं को बीच में डाल कर सरकार बात चीत का माहौल बनाने का प्रयास करे जिससे नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शांति स्थापित की जा सके.   

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