मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 31 अगस्त 2010

माओवादी और धोनी ?

झारखण्ड के पुलिस महानिदेशक नेयाज़ अहमद सोमवार को भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी से मिलने उनके रांची स्थित आवास पर पहुंचे. अहमद ने इसे सामान्य मुलाकात बताया पर सूत्रों का कहना है कि झारखण्ड पुलिस चाहती है कि धोनी एक वीडियो सन्देश जारी कर माओवादियों से हिंसा का रास्ता छोड़कर राष्ट्र की मुख्य धारा में शामिल होने की अपील करें. राज्य पुलिस का मानना है कि धोनी की इस तरह की अपील से माओवादियों पर बहुत असर पड़ सकता है ? साथ ही पुलिस यह भी चाहती है कि धोनी आम जनता से विद्रोहियों का सहयोग न करने की अपील भी करें जिससे उन्हें समाज से अलग थलग किया जा सके और उनसे बात चीत या समर्पण के लिए बात की जा सके.
            यहं पर सवाल यह भी उठता है कि केवल धोनी ही क्यों अगर माओवादी क्रिकेट के शौक़ीन हैं तो फिर सचिन युवराज की अपील भी होनी चाहिए ? पर धोनी झारखण्ड के हैं और आज कल कप्तान हैं तो शायद उनकी बात का अधिक प्रभाव पड़ सकता है ? वैसे देश हित में क्रिकेट ही क्यों अन्य खेलों और सामाजिक क्षेत्र से जुड़े लोगों को भी माओवादियों से अपील करने के लिए मनाया जा सकता है आखिर वे भी हमारे में से ही तो हैं पर समय के कारण उनको लगता है कि उनके साथ जो अन्याय हो रहा है उसमें केवल विद्रोह ही एक मात्र रास्ता शेष रह गया है ? देश में बहुत से लोग जो सामाजिक सरोकारों से जुड़े हुए हैं उनकी सेवाएं लेकर इस तरह के बहुत सारे प्रयास किये जा सकते हैं. आज आवश्यकता इन भटके हुए लोगों को विकास के साथ दौड़ाने की है जिससे कहीं से भी इनको यह न लगे कि देश में कहीं पर इनके साथ अत्याचार किया जा रहा है
     देश में विकास एक बड़ा मुद्दा होना चाहिए इसके लिए सभी के पूरे साथ और सहयोग की पूरे देश को आवश्यकता है फिर भी कहीं न कहीं से यह भी देखना ज़रूरी है  कि इस तरह के समाज विरोधी तत्व लोगों को ग़लत रास्ते पर भी न धकेलते रहें ? विकास का मुद्दा ऐसा होता है कि उसके साथ सभी को लेकर चलना होता है. जब कहीं पर भी कोई बड़ा कारखाना या विकास से जुडीअन्य गतिविधि शुरू होती है तो वहां पर कुछ न कुछ लोगों को परेशानी अवश्य होती है अब यह सरकार का दायित्व है  कि जिन लोगों की भूमि का उपयोग इसमें किया जा रहा है उनके लिए समुचित राशि की व्यवस्था भी की जाए और साथ ही यदि संभव हो तो विस्थापितों के लिए एक नौकरी का भी प्रबंध होना चाहिए.  आज भी समय है कि इन भटके हुए लोगों को मुख्य धारा में लाने का प्रयास किया जाना चाहिए क्योंकि किसी न किसी दिन इन लोगों से बात करके ही हर समस्या का हल निकलने वाला है तो फिर आज ही क्यों नहीं इस पर विचार किया जाता है ?      

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