आख़िर कार अमेरिका ने अपने ७ साल के सैन्य अभियान की समाप्ति की घोषणा के साथ इराक को खुद ही संभलने का मौका दे ही दिया. अभी तक जिस तरह से ईराक़ ने अपने को सँभालने का प्रयास किया है उसको देखते हुए यह कहा जा सकता है कि जो काम करने के लिए अमेरिका ईराक़ में गया था वह पूरी तरह से सफल नहीं हो पाया है फिर भी उसकी आंशिक सफलता को झुठलाया भी नहीं जा सकता है. ईराक़ के सैनिकों को प्रशिक्षित करने के लिए अभी भी वहां पर लगभग ५० हज़ार सैनिक रुके रहेंगें, अच्छा होता कि अमेरिका इन्हें प्रशिक्षित करके जल्दी से जल्दी वहां से बाहर निकलने का प्रयास करता जिससे मुस्लिम देशों को यह सन्देश जा पाता कि अमेरिका वहां के संसाधनों पर कब्ज़ा ज़माने नहीं गया था और आगे भी उसका इस तरह के किसी काम को करने का इरादा नहीं है.
जिस तरह से अमेरिका ने अपने सामान को ईराक़ से समेटा हैं उसी तरह से उसे अफ़गानिस्तान को भी जल्दी ही खाली कर देना चाहिए जिससे विश्वास बहाली के कुछ और कदम आगे बढ़ाये जा सकें. आज पूरे इस्लामी जगत में अमेरिका को इस्लाम के दुश्मन के रूप में देखा जाता है जिसके लिए खुद अमेरिका ही ज़िम्मेदार है. अभी तक अधिकांश जगहों पर उसे एक आक्रमण कर्ता देश के रूप में ही जाना जाता है जोकि उसकी छवि को और भी संदिग्ध बना देता है ? आज आवश्यकता विश्वास बहाली की है जो कि खुद अमेरिका ही कर सकता है पूरे विश्व में दरोगा की भूमिका अब ज्यादा दिन नहीं चलने वाली है फिर भी अमेरिका को आज तक यह बात समझ में नहीं आ रही है ? अच्छा हो कि इस तरह के मामलों में पूरी तरह से निष्पक्ष होकर काम करने की आदत अब अमेरिका डाल ही ले क्योंकि अब विश्व में सब कुछ बराबरी पर ही होने वाला है.
फिर भी ईराक़ को अपने लिए कुछ करने के लिए बहुत कुछ करना है, उसको अपने भविष्य खुद ही बनाना है अभी तक जो कुछ भी वहां पर होता था उसके लिए अमेरिका को ज़िम्मेदार ठहराया जाता था अपर अब जब पूरी तरह से कमान इराकियों के हाथ में है तो अब उनको कुछ अच्छा करके दिखाना ही होगा. उनके अच्छे और उज्जवल भविष्य के लिए शुभकामनायें....
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
अमेरिका के लिए बेहतर होता की सेना को अब दो चार साल के लिए पाकिस्तान में भेज देते यहाँ उन्हें लादेन जरूर मिल जाता
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