मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 3 सितंबर 2010

भूजल का दोहन

हर साल बरसात में पूरे देश में एक तरह की समस्या सामने आती है जहन एक तरफ तराई के क्षेत्र में बाढ़ का खतरा हमेशा ही मंडराता रहता है वही दूसरी तरफ अन्य भूभाग में सूखे की आशंका हर सरकार को दुबला बनाये रखती है. भारत एक कृषि आधारित देश है हमारी अर्थव्यवस्था को सही ढंग से पटरी पर चलाने के लिए हमें अच्छे मानसून की हर वर्ष ज़रुरत होती है. एक तरफ जहाँ जन जागरूकता में कमी के कारण लोग पाई को बर्बाद करते रहते हैं वहीँ दूसरी तरफ कुछ स्थानों पर पानी की कमी के कारण लोग प्यासे ही रह जाते हैं. देश में सरकारी तंत्र किस तरह से काम करता है यह बात किसी से भी छिपी नहीं है बस कुछ जागरूक लोग अपने स्तर से प्रयास करते नज़र आते हैं कि कहीं से कोई बदलाव महसूस हो जाये ?
         पानी के बारे में हम सभी को जितना सचेत होना चाहिए अभी तक नहीं हो पाए हैं जिस कारण से आज भी देश के अधिकांश भू-भाग में पानी की किल्लत हमेशा ही रहती है. हालांकि पिछले कुछ वर्षों में राष्ट्रीय ग्रामीण गारंटी योजना के तहत कुछ भागों में पुराने तालाबों को फिर से गहरा करने का काम शुरू किया गया है जिससे आने वाले समय में इन गाँवों में पानी की उपलब्धता कुछ बढ़ने की आशा की जा सकती है. जब पानी बरसता है तो हमारे पास इसे रोकने के इन्तेजाम होते ही नहीं हैं पर जब इसकी कमी हो जाती है तो हम सभी सरकारों को इसके लिए कोसते रहते हैं ? हम सभी को एक बात तो समझनी ही होगी कि इस तरह से हम बर्बादी कर के किसी भी सरकार को इसके लिए कैसे दोषी ठहरा सकते हैं ? अगर हम पानी के महत्त्व को खुद ही समझ लें तो दूसरों की तरफ ताकने की स्थिति आने ही नहीं पायेगी ? हाँ यह भी सही है कि कुछ भाग ऐसा भी है जहाँ पर बिना सरकारी मदद के कुछ भी कर पाना असंभव हो जाता है पर ऐसे स्थान देश में बहुतायत से नहीं हैं. कुछ वर्षों पहले लेह जैसे दुर्गम इलाके में स्थानीय लोगों के प्रयासों से कृत्रिम ग्लेशिअर बनाये गए और उनका उपयोग गर्मी में उस इलाके में पानी की कमी से निपटने में किया गया.
      जब हम संसाधनों के सही उपयोग पर ध्यान देने लगेंगें तब किसी भी तरह की किल्लत हमारे सामने नहीं रहेगी. बस अब समय है कि हम यह सब सीख लें वरना कहीं ऐसा न हो कि जब हम सीखना चाहें तब तक बहुत देर हो चुकी हो......

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