मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 4 सितंबर 2010

रेलवे और पर्यावरण

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भारतीय रेल का तंत्र दुनिया में सबसे बड़ा और फैला हुआ है. अभी तक रेल ने पूरी तरह से नयी तकनीकी को अपनाने में अपना पूरा ध्यान तो नहीं लगाया है फिर भी अभी तक जिस तरह से सुरक्षा मानकों पर खर्चा किया जा रहा है वह शायद इस विशालता के अनुसार कम है. पर्यावरण के सम्बन्ध में एक बात जो रेलवे कर ही सकता है कि इन्टरनेट द्वारा बुक किये गए टिकट में अभी तक यह आवश्यक है कि यात्री अपने साथ यात्रा अधिकार पर्ची जो किसी जगह से भी छपी हुई हो अवश्य लेकर चले और ऐसा न करने पर यात्री को ५० रूपये का जुर्माना देना पड़ सकता है.
          जब आज के समय में नेट और मोबाइल पर इस इन्टरनेट टिकट की सूचना रेलवे द्वारा भेजी जाती है तो फिर इस तरह के किसी कागज़ को लेकर चलने की बाध्यता आख़िर क्यों होनी चाहिए ? ऐसा नहीं है कि रेलवे इसके बिना काम नहीं चला सकता है ? जब इन टिकटों के साथ यात्री को अपनी पहचान के लिए कोई महत्वपूर्ण दस्तावेज़ साथ में रखना ही पड़ता है तो फिर किसी के लिए यह क्यों आवश्यक किया जाता है ? टिकट बुक होने की सूचना यात्री को उसके नेट खाते, मेल और मोबाइल पर दे दी जाती है तो क्या ऐसा नहीं हो सकता कि कागज़ बचाने के लिए इस तरह के छपे हुए कागज़ को साथ लेकर चलें की आवश्यकता समाप्त ही कर दी जाए ? देश भर में लाखों लोग इस तरह से नेट के माध्यम से अपनी टिकट बुक करते हैं और फिर इन लाखों पन्नों को रोज़ ही बर्बाद कर देते हैं ? वैसे देखने पर यह सब इतना आसान नहीं लगता है फिर भी किसी एक मंडल में इसे देखने के लिए प्रायोगिक तौर पर लागू करके देखा जा सकता है ?
                 ऐसा नहीं है कि आम यात्री इस तरह के कागजों में हेरफेर करता हो पर रेलवे से जुड़े हुए कुछ अनधिकृत लोग जो आज भी ग़लत कामों में लगे हुए हैं आगे भी ऐसे काम करते रहेंगें तो क्या उनके कारण हम कोई अच्छी योजना नहीं बनायेगें ? समय के अनुसार परिवर्तन बहुत महत्वपूर्ण है और इसके बिना कुछ भी नहीं पाया जा सकता है ?  इस तरह की व्यवस्था में मेरे अनुसार कोई खामी नहीं आने वाली है हाँ देश में संसाधनों के तौर पर बहुत कुछ बचाया जा सकता है. कुछ पेड़, प्रिंटर की इंक से होने वाले पर्यावरण नुकसान आदि को हम कम तो कर ही सकते है तो आख़िर किस बात का इंतज़ार चल रहा है ?      

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