मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 6 सितंबर 2010

खेल भावना और दलाली

जिस तरह से क्रिकेट ने पूरे एशियाई महाद्वीप को अपनी चपेट में ले रखा है उसको देखते हुए यहाँ की टीम भी जब तब नए विवादों में फंसती ही रहती हैं. पहले मैच फिक्सिंग के आरोपों ने भारत के कई बड़े नामों की बलि ले ली थी  और अब भी यह भूत क्रिकेट का पीछा छोड़ता नज़र नहीं आ रहा है. बहुत सारे खेलों की चकाचौंध में खिलाडी और जनता जिस तरह से अंधी होती जा रही है उसे देखते हुए कुछ भी हो सकता है. एक ऐसा घटिया खेल जिसमें अगर किस्मत साथ दे जाये तो दुनिया की सबसे फिसड्डी टीम सबसे ताकतवर टीम को हरा सकती है ? खेल के इस तरह के संस्करण के लिए और क्या सोचा भी जा सकता है ? अभी तक यही समझा जा रहा था कि केवल अधिक पैसे और रोमांच के कारण ही क्रिकेट में इस तरह की गंदगी सामने आ रही है पर अब जिस तरह से खिलाड़ी केवल पैसों के लिए ही खेलना चाहते हैं और केवल पैसा ही उनके लिए सब कुछ हो गया है उससे क्रिकेट का ही बेड़ा गर्क होने वाला है.
            यह खेल पहले भद्र जनों का खेल ही कहा जाता था पर अब जिस तरह से सारा खेल किसी और दिशा में ही घूमता दिखाई देने लगा है उससे अब कुछ भी नहीं सोचा और समझा जा सकता है ? खेल को साफ़ सुथरा बनाये रखने की पूरी जिमेदारी अब केवल इसको नियत्रित करने वाली संस्था के ऊपर ही आ जाती है. जिस तरह से केवल कुछ लोगों ने खेल को बंधक बनाने का प्रयास किया है उससे तो यही लगता है कि आई सी सी केवल बातें करना ही जानती है और कुछ भी ठोस कर पाना उसके बस की बात नहीं रह गयी है ? पैसे ने भारत में इस खेल को जिस मुकाम तक पहुंचा दिया है वह किसी भी देश के लिए गर्व की बात हो सकती है पर इसी पैसे ने इस खेल की मूल  भावना को ही मार डालने का काम भी किया है.
          किसी भी खेल को खेलने वालों के भविष्य की गारंटी तो होनी ही चाहिए पर जिस तरह से भारत में इस खेल ने पूरा धंधा बना लिया है उस से अन्य खेलों पर ग्रहण सा लग गया है ? राष्ट्रमंडल खेलों में भारतीय बोर्ड अपनी टीम को सिर्फ पैसों के लिए ही तो नहीं भेज रहा है क्योंकि अगर वह यहाँ पर अपनी टीम को खिलाता है तो उसका बहुत बड़ा आर्थिक नुकसान हो जायेगा ? देश की प्रतिष्ठा से बहुत आगे अब पैसा आ गया है और यह सब तब हो रहा है जब मराठा क्षत्रप शरद पावर इस संस्था के प्रमुख हैं ? क्या हो गया है इस देश की आत्मा को जो इस तरह के घटिया खेल में अपना समय व्यर्थ करने में लगी हुई है ? अब चाहे जो भी हो क्रिकेट के समर्थकों और प्रशंसकों को अपने से यह सवाल तो पूछना ही होगा की क्या इसी तरह की ओछी हरकतें देखने के लिए वे क्रिकेट देखते हैं ? तब तक क्रिकेट का भट्ठा इसे खेलने वाले अंतर्राष्ट्रीय खिलाडियों को बैठाने का मौका दिया जाना चाहिए ?  


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