मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 16 सितंबर 2010

पवित्र क़ुरान और हिंसा ?

जिस तरह से कश्मीर घाटी में पवित्र क़ुरान जलाये जाने की अफवाह के बाद हिंसा फैली और उसने बाद में जम्मू तक अपने पैर पसार लिए उससे तो यही लगता है कि जम्मू कश्मीर में अलगाव वादी अपने मंसूबे को हर तरह से पूरा करना चाहते हैं ? भारत सरकार ने सभी मीडिया के लोगों से अपील की थी अगर अमेरिका या किसी अन्य देश में क़ुरान के अपमान पर उतारू कोई व्यक्ति कुछ भी करे पर वे इस तरह के किसी भी वीडियो को दिखने से परहेज़ करें क्योंकि कुछ लोग अपने हितों को साधने के लिए हिंसा करवाने पर आमादा हैं. फिर भी एक टी वी चैनेल ने इस तरह की अफवाह को फ़ैलाने में हिंसा का साथ दिया.
        सवाल यहाँ पर यह उठता है कि भारत के किसी कोने में या किसी भारतीय ने इस तरह की गिरी हुई हरकत नहीं की तो फिर विरोध भारत के खिलाफ क्यों ? आखिर किस नैतिकता के साथ इस तरह से भारतीय सुरक्षा बलों को निशाना बनाया जा रहा है ? कही ऐसा तो नहीं कि कश्मीर में अलगाववादियों के पास मुद्दों की कमी हो गयी है इसलिए वे अब लोगों को इस मुद्दे पर भड़काना चाह रहे हैं ? किसी की भी धार्मिक मान्यताओं को ठेस पहुँचाने का किसी को भी अधिकार नहीं है पर किसी पागल के कारण पूरे देश में या फिर सुनियोजित तरीके से किसी खास हिस्से में इस तरह के हिंसक प्रदर्शन करने का क्या तुक है ? भारत एक प्रगतिशील लोकतंत्र है पर इस खुले पन का फायदा इस तरह से कैसे उठाया जा सकता है ? अगर कहीं पर भी धर्मग्रन्थ का किसी भी तरह से अपमान किया गया है तो वह निंदनीय है पर उस घटना के लिए भारत में कैसे हिंसा फैलाई जा सकती है ?
            कश्मीर में पहले और फिर मेंधर में जिस तरह से सरकारी इमारतों और संपत्तियों को नुकसान पहुँचाने का काम किया गया उसे कैसे उचित ठहराया जा सकता है ? इस काम में स्थानीय विधायक भी शामिल रहे अगर उन्हें किसी भी तरह से विरोध प्रदर्शन करना या करवाना था तो उसके लिए सबसे पहले लोगों को यह समझाना चाहिए था कि कहीं से भी किसी भी तरह की हिंसा न फैलाई जाये और इस मामले में प्रशासन से मिलकर रास्ता आदि तय कर लिया जाना चाहिए था. प्रदर्शन करने वालों को अपने मार्ग और सीमा का ध्यान रखना चाहिए तभी पुलिस कानून व्यवस्था बनाये रखने में सफल हो सकेगी पर किसी भी तरफ जाने और कहीं भी हिंसा करने पर पुलिस कैसे चुप रह सकती है ? प्रदर्शन करने वाले पुलिस से इस तरह से पेश आते हैं जैसे वे ही इस तरह की घटना के ज़िम्मेदार हों ? जम्मू कश्मीर पुलिस में भी स्थानीय निवासी ही भर्ती हुए हैं तो फिर ये हिंसक प्रदर्शनकारी एक तरह से खुद अपने कश्मीरी मुसलमान भाइयों का खून बहाने पर लगे हुए हैं ? मेंधर और पुंछ में हालत काबू से बाहर होने पर प्रशासन ने अर्धसैनिक बलों की मांग की जिसे बाद में पूरा कर दिया गया ?
             अच्छा हो कि कश्मीरी लोग इस बात को समझें कि उनके लिए क्या ज़रूरी है ? इस बार का पर्यटक मौसम हिंसा के कारण ही बेकार चला गया है ? किसी नेता के पेट पर कोई लात नहीं लगी वे अपनी बिरयानी खाने में मशगूल हैं पर आम कश्मीरी जो इस मौसम में सर्दियों के लिए कुछ कमाकर रख लेता था उसके लिए आने वाले समय में समस्या होने ही वाली है ?       

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