मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 29 सितंबर 2010

सरकारों की सनक

अयोध्या में भूमि के मालिकाना हक़ के लिए आने वाले फैसले को देखते हुए सरकारें जिस तरह से व्यवहार कर रही हैं उससे तो यही लगता है कि देश में सरकारें भी इस मामले से खुद ही डरी हुईं हैं ? कानून व्यवस्था बनाये रखने की ज़िम्मेदारी राज्य सरकारों की होती है इसमें कोई संदेह नहीं है फिर भी इस तरह से लोगों में भय फ़ैलाने का काम आखिर ये चुनी हुई सरकारें क्यों करती रहती हैं ? यह सही है कि आज़ादी के बाद से ही यह सारा मसला काफी विवाद का विषय रहा है पर आज के समय में केवल अतिरिक्त सतर्कता के साथ ही इससे क्यों नहीं निपटा जा सकता है ?
            यह सही है कि अगर सरकारे चाहें तो इस मसले या किसी भी मसले पर कानून व्यवस्था को आसानी से नियंत्रण में रख सकती हैं पर समस्या तब आने लगती है जब कोई राज्य सरकार या राजनैतिक दल अपने क्षुद्र राजनैतिक हितों को साधने के लिए इन मामलों में लाभ-हानि का हिसाब लगाने की तरफ जाना शुरू कर देते है. जब यह पहले से पता है कि इस मामले पर न्यायालय का फैसला आने वाला है तो फिर राज्य पहले से पूरी तरह से सक्रिय क्यों नहीं हो पाते हैं ? कहीं न कहीं यह मसला वोटों की राजनीति से भी जुड़ा हुआ है तभी कोई भी इस मसले में अपने को कमज़ोर नहीं दिखाना चाहता है ? जबकि उनके इस लालच की देश को हर बार बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है ?
         वैसे तो अब यह सारा मसला ९० के बाद पैदा हुए लोगों के लिए उतना महत्त्व नहीं रखता है जितना उनका अपना भविष्य ? जिस तरह से उत्तर प्रदेश में पुलिस ने बहुत अच्छा काम करते हुए पहले से ही लोगों को सामाजिक सद्भाव बनाये रखने के लिए प्रेरित करना शुरू किया और अशांति फ़ैलाने वाले लोगों को जिस तरह से पाबंद करना शुरू किया उसके अच्छे परिणाम सामने आने वाले हैं. क्यों नहीं इस मसाले पर भी एक सर्वदलीय बैठक बुलाई गयी जिसमें यह तय कर दिया जाता कि कोई भी राज्य सरकार इस मसले पर एक निश्चित कदम ही उठाएगी सभी की प्राथमिकता केवल और केवल शांति बनाये रखने की ही होगी और किसी को भी मनमानी नहीं करने दी जाएगी. देश में अगर कहीं भी किसी स्थान पर कोई झगड़े होते हैं तो फिर उसके बाद अफवाहें फैलने का क्रम शुरू होता है जिससे जो पूरे देश के लिए घातक होते हैं. इस समय फैसला चाहे जो भी आये दोनों पक्षों के पास सर्वोच्च न्यायालय जाने के विकल्प खुले हुए हैं जब आने वाला यह फैसला आखिरी नहीं है तो इसको लेकर जनता को भी बिलकुल भी उत्तेजित नहीं होना चाहिए क्योंकि देश में बहुत सारी सद्भाव की मिसालें मौजूद हैं तो इस मसले पर इतना परेशान होने की कोई ज़रुरत भी नहीं है.        

मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

4 टिप्‍पणियां:

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    डॉ आशुतोष,

    शायद हम सब कहीं न कहीं बेहद डरे हुए हैं, की क्या होगा फैसला और फैसले की प्रतिक्रिया । बस यही प्रार्थना है की फैसला देश के हित में हो और चारों और शांति बनी रहे।

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  2. इस मसले पर इतना परेशान होने की कोई ज़रुरत भी नहीं है.

    -फिर भी सतर्क तो रहना ही होगा...

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  3. बाबर एक आक्रान्ता था जो मंदिरों को तोड़ कर मस्जिदे बनाता था, शायद उसकी नजरो में इस्लाम की स्थापना करना यही था, बाबर हमारा पूर्वज नहीं था, राम हम सब भारत वासियो के पूर्वज थे, इसे समझना होगा, अयोध्या का नाम राम से जुड़ा है, ऐसे में हिन्दू मुस्लिम मिलकर वहां राम का मंदिर बनाये और पूरी दुनिया को शांति और सद्भाव का सन्देश दे.

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  4. अयोध्‍या विवाद पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच का बहुप्रतीक्षित फैसला सामने आ गया है. कोर्ट ने विवाद से जुड़े सभी केसों पर फैसला सुनाते हुए सुन्‍नी वक्‍फ बोर्ड का दावा खारिज कर दिया है.
    तीन जजों ने की पीठ ने 2-1 से सुन्‍नी वक्‍फ बोर्ड का दावा खारिज किया. सूट नंबर चार भी खारिज कर दिया गया है. कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि विवादित स्‍थान से रामलला की मूर्ति हटाई नहीं जाएगी. मूर्ति पर किसी का अधिकार नहीं रहेगा और वह आमजन की होगी.

    जजों ने माना कि विवादित जगह भगवान राम की जन्‍मभूमि है और वह जगह हिन्‍दुओं की दी जाएगी.

    कोर्ट ने तीनों पक्षों को बराबर-बराबर हिस्‍सेदारी देने की बात कही है. एक हिस्‍सा निर्मोही अखाड़े को, दूसरा मुसलमानों को और तीसरा हिस्‍सा हिंदुओं को देने की बात कही गई है.

    पीठ के तीन जजों में से एक धर्मवीर शर्मा ने माना कि पूरा परिसर रामलला का है. जस्टिस अग्रवाल ने रामलला का परिसर माना. राम चबूतरा और सीता रसोई निर्मोही अखाड़े की होगी. कोर्ट का पूरा फैसला 10 हजार पन्‍नों का है. हिन्‍दू महासभा के वकील पी एल मिश्रा ने यह जानकारी दी.

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