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शुक्रवार, 8 अक्तूबर 2010

रेलवे और तकनीक

रेल मंत्री ममता बनर्जी ने कोल्कता में मेट्रो स्टेशन का उद्घाटन करते समय इस बात पर जोर दिया कि अब जल्दी ही रेलवे बिलकुल नयी टक्कर रोधी सिग्नल प्रणाली लागू करने जा रही है जिससे मानवीय भूल और अन्य कारणों से होने वाली रेल दुर्घटनाओं को रोकने में काफी मदद मिलने वाली है. ममता ने यह भी कहा कि अब रेलवे ने यह तय कर लिया हैं कि जल्दी ही पूरे देश में इस नयी तकनीक पर आधारित प्रणाली को चरण बद्ध तरीके से लागू किया जायेगा. यह सही है कि भारतीय रेल आज बहुत सारी चुनौतियों से जूझ रही है पर इस बात बहाना बनाकर किसी नयी प्रणाली को सामने आने से रोकना नहीं चाहिए. असल में देश के सामने आज चुनौतियाँ बहुत हैं अपर हम लोग केवल कुछ से ही टकराने की हिम्मत दिखाते हैं और बाकी को भाग्य के सहारे छोड़ कर बैठ जाना पसंद करते हैं .
                    यह सही है कि रेल तंत्र में कुछ भी एकदम से बदला नहीं जा सकता है पर यदि कोई नयी तकनीक लागू की जानी हैं तो उन्हें चरण बद्ध तरीके से शुरू किया जाना चाहिए क्योंकि इतने बड़े पैमाने पर कुछ भी करने के लिए जितने संसाधनों और धन की आवश्यकता होती है वह रेलवे नहीं जुटा सकती है. इसलिए देश के व्यस्ततम मार्गों पर इस नयी तकनीकी का प्रयोग शुरू कर दिया जाना चाहिए जिससे परिचालन में सहायता मिलेगी और साथ ही यात्रियों की सुरक्षा में भी मजबूती आयेगी. इस काम के लिए सबसे पहले दिल्ली-हावड़ा और दिल्ली-मुंबई मार्गों का ही चयन होगा क्योंकि ये भारतीय रेल के व्यस्ततम मार्ग हैं. नयी प्रणाली किसी भी स्तर पर लागू करना और वो भी सरकारी उपक्रमों में हमेशा से ही बड़ी चुनौती रहा है क्योंकि सरकारी कर्मचारी कुछ भी नया करने में पता नहीं क्यों कतराते रहते हैं हालांकि यह परिवर्तन आगे चलकर उनको ही सुविधाएँ देते हैं पर परिवर्तन को करवा पाना बहुत मुश्किल होता है.
               रेल तंत्र में आज भी बहुत सी खामियां मौजूद हैं और उनसे निपटने के लिए बहुत कुछ किया जाना बाकि है. सबसे पहले आरक्षण प्रक्रिया को पूरी तरह से ऑनलाइन कर दिया जाना चाहिए ४ घंटे पहले चार्ट ज़रूर बन जाएँ पर खाली पड़ी सीटों को उसके बाद भी ऑनलाइन या आरक्षण केन्द्रों से भरने की सुविधा दी जानी चाहिए. आज भी इन बची हुई सीटों और यात्रा करने के बीच में बहुत सारा भ्रष्टाचार रेल कर्मचारियों द्वारा फैलाया जा रहा है. यह सही है कि हमेशा ही सीटें खाली नहीं रहती हैं पर जब वे खाली हों तब उनका उपयोग यात्रियों के हित में न कि कर्मचारी अपनी जेबें भरने के लए यात्रियों को लूटते रहें ?    

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