मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 14 अक्तूबर 2010

सफल राष्ट्रमंडल खेल....

आज शाम जब भारत में चल रहे राष्ट्रमंडल खेलों के समापन की घोषणा की जाएगी और साथ ही सभी को ग्लासगो में २०१४ में फिर से जुड़ने के लिए स्काटलैंड की तरफ से न्योता मिलेगा तो देश अपने आप में एक और इतिहास रचने के करीब होगा. यह सही है कि इस तरह के बहुत बड़े आयोजनों में बहुत सारी खामियां रह जाती हैं पर इस बार इन खामियों की जिस तरह से मीडिया ने धज्जियाँ उडायीं उससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि को बहुत धक्का लगा. मीडिया देश में पूरी तरह से काम करने के लिए स्वतंत्र है पर कहीं न कहीं से ऐसा भी तो दिखाई देना चाहिए कि कुछ खामियों के बीच में भी देश ने इस तरह के आयोजन को पूरी सफलता से आयोजित का लिया है.
          मीडिया ने जिस तरह से अचानक ही जून में सक्रिय होकर इन खेलों की नकारात्मक छवि बनानी शुरू कर दी उससे भाग लेने वाले देशों और खिलाड़ियों के बीच में बहुत ही गलत सन्देश गया. खिलाड़ियों को तो पूरी तरह से खेल गाँव में ही रहना था पर खेल देखने आने वाले पर्यटकों और खेल प्रेमियों के बीच यह झूठी छवि ही भारी पड़ गयी और इन खेलों के लिए देश के पर्यटन उद्योग को जो कुछ हासिल हो सकता था वह नहीं मिल सका. देश ने इन नकारात्मक छवि प्रस्तुतीकरण के कारण ही बहुत कुछ वह हासिल नहीं किया जो उसे मिल सकता था. देश में भ्रष्टाचार बहुत फ़ैल चुका है तो हम सुरेश कलमाड़ी से यह कैसे उम्मीद लगा सकते हैं कि वे बिलकुल साफ़ सुथरा काम करने वाले लोगों को ढूंढ कर लायेंगें और सारे काम उनसे ही कराये जायेंगें. फिलहाल कुछ लोगों ने नियोजित तरीके से इन खेलों का विरोध करने का जो तरीका अपनाया था उसमें उन्हें कुछ हद तक कामयाबी भी मिल गयी पर इन सबके चक्कर में देश का बहुत नुकसान हो गया.
          बहुत से लोगों को इस बात पर भी आपत्ति है कि जब देश में भूख और गरीबी है तो इस तरह के खेलों का कोई मतलब नहीं है ? पर यह सवाल उठाने वाले इस मसले का कोई समाधान क्यों नहीं ढूंढते ? आलोचना करना बहुत आसान है और जब धरातल पर कुछ करना पड़ता है तो सब कुछ पता चलता है. खेल सभ्य समाज का एक हिस्सा हैं और जब पहले और १९८२  में सीमित संसाधनों से हमने एशियाई खेल करा लिए थे तो अब आर्थिक रूप से संभालता भारत आखिर यह सब क्यों नहीं कर सकता है ? खेलों के आलोचना करने वाले अगर अपनी यह शक्ति सरकारी योजनाओं को सही व्यक्ति तक पहुँचाने का संकल्प ही ले लें तो देश सुधर जाये. फिलहाल देश में इन खेलों के सफल आयोजन के बाद अब भारत को ओलंपिक खेलों की मेजबानी मिलने में बहुत देर नहीं लगेगी.        

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