मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 30 अक्तूबर 2010

राहुल की बर्निंग ट्रेन

राहुल गाँधी की ट्रेन यात्रा इस बार फिर से उत्तर प्रदेश सरकार को खल गयी है. वैसे तो माया सरकार को राहुल का प्रदेश में आना कभी भी अच्छा नहीं लगता है पर जब उनका पुश्तैनी सम्बन्ध और राजनैतिक प्रभाव ही प्रदेश में है तो उनके आने जाने पर कैसे पाबन्दी लगायी जा सकती है ? असर में जिस अंदाज़ में राहुल हर मसले पर ध्यान देते हैं सरकार को उससे बहुत बड़ी परेशानी है ?  राज्य में ख़ुफ़िया तंत्र कितना सजग है और अयोध्या मामले पर सतर्क किया गया तंत्र किस तरह से काम कर रहा है यह इस बात से ही पता चल जाता है कि राहुल गाँधी हवाई अड्डे से रेलवे स्टेशन तक जाकर ट्रेन में बैठकर आसानी से चले जाते हैं और उन्हें कोई भी पहचान या जान नहीं पाता है ? किस तरह से गोरखपुर जैसे बड़े स्टेशन पर तैनात रेलवे पुलिस लोगों की सुरक्षा में लगी हुई है यह तो अब सभी को पता चल ही गया है ?
       अब खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे वाली कहावत को उत्तर प्रदेश की पुलिस सही साबित करने में लगी हुई है, राज्य पुलिस का दावा है कि उसे इस बारे में पूरी खबर थी कि राहुल इस तरह से ट्रेन से यात्रा करने वाले हैं. अगर पुलिस की इस नयी कहानी को मान भी लिया जाये तो आख़िर किस कारण से अभी तक राज्य पुलिस ने एसपीजी और केंद्रीय गृह मंत्रालय से शिकायत नहीं की थी ? असल में राज्य पुलिस को कुछ पता ही नहीं था पर जब बात अख़बारों तक में फ़ैल गयी तो पुलिस के पास इससे अच्छा तरीका था ही नहीं कि वह कुछ बयान देकर अपना पीछा छुड़ा ले. आख़िर क्या कारण है कि राहुल राज्य की पुलिस पर भी भरोसा नहीं कर रहे हैं ? क्यों वे बिना बताये इस तरह की औचक यात्रायें करने में लगे हुए हैं ? क्योंकि राज्य में पुलिस का जिस तरह से राजनैतिक करण किया गया अहि उसके बाद कोई भी उस पर भरोसा नहीं कर सकता है. पहले भी सरकार को राहुल का इस तरह से जनता के साथ सीधा संवाद अच्छा नहीं लगा था और अब तो यह बात उसे नागवार गुजरी है.
         अच्छा हो कि राज्य सरकार इस मसले को इस तरह का मुद्दा बनाने के स्थान पर अपने ख़ुफ़िया तंत्र को मज़बूत करे और सीखे राहुल से कि किस तरह से वास्तव में जनता की समस्या को जाना जा सकता है ? दलितों के हितों का ढिंढोरा पीटने वाली उत्तर प्रदेश सरकार के माननीय मंत्री गण अब एसी के इतने आदी हो चुके हैं कि उन्हें आम आदमी कि तरह चलने फिरने में भी कष्ट होने लगा है और जब केंद्रीय सत्ता से जुड़ा राहुल जैसा व्यापक जन समर्थन रखने वाल नेता कोई भी कदम इस तरह से उठा लेता है तो सरकार को लगता है कि यह काम तो हमारे द्वारा किया जाना चाहिए था क्योंकि वे समाज के दबे कुचले लोगों के मसीहा हैं ? इस तरह की जन समस्याओं से जुड़ी बातों में अगर हमारे नेता होड़ करने लगें तो यह देश और लोकतंत्र के लिए बहुत शुभ संकेत होगा. पर कितने लोग इस तरह की सोच भी रखते हैं ? अब तो सारे राजनैतिक दल भी इस मसले पर अपनी अपनी जुबान खोलकर कुछ न कुछ भड़ास निकलने का प्रयास करेंगें ही फिलहाल राहुल तुम आगे बढ़ते रहो देश तो तुम्हारे साथ है ही भले ही राजनैतिक प्रचार के लिए यह कुछ किया जा रहा हो पर फिर भी कहीं से कोई परिवर्तन की किरण दिखती तो है  ?   

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