मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 31 अक्तूबर 2010

त्यौहार और सतर्कता...

देश में इस समय फिर से त्योहारों का मौसम चल रहा है और इस समय हम सभी अपने अपने बहुत सारे कामों के लिए रोज़ ही अपना बहुत सा समय बाज़ारों आदि में बिताते हैं. ऐसे में जब दीपावली के समय ही ओबामा की भी भारत यात्रा हो रही है तो सुरक्षा के लिहाज़ से पूरे देश के सामने एक बड़ी चुनौती है. आतंकी इस समय देश में कहीं भी आतंकी हमला करके पूरे विश्व के सामने यह सन्देश देना चाहेंगें कि भारत में कश्मीरियों के साथ बहुत ज़्यादती की जा रही है ? खैर ओबामा की सुरक्षा की चिंता हम आम लोगों को नहीं करनी चाहिए क्योंकि उनके लिए पूरा अमला लगा हुआ है पर अपनी सुरक्षा के बारे में हमें इस समय पहले से अधिक सचेत रहने की ज़रुरत है क्योंकि जब कड़े सुरक्षा माहौल में आतंकी कुछ नहीं कर पायेंगें तो वे हताशा में कहीं भी किसी भी भीड़ भरे बाज़ार को अपना निशाना बनाने से नहीं चूकेंगें ?
          यह सही है कि अब अमेरिकी राष्ट्रपति की दुनिया के किसी भी हिस्से की यात्रा के समय उनकी बहुत कड़ी सुरक्षा की जाती है और यही सब उनके भारत दौरे के समय होने वाला है उनकी सुरक्षा के लिए अमेरिकी तंत्र के साथ ही भारतीय बल भी चौकन्ने रहने वाले हैं. हम भारतीयों में जो सबसे बड़ी कमी है कि हम आज केवल अपने तक ही सिमट गए हैं पर जब हमारे इस सिमटने के कारण होने वाले नुकसान सामने आते हैं तो हम उस समय चाहकर भी कुछ करने की स्थिति में नहीं होते हैं ? देश में कहीं भी किसी भी आतंकी घटना में अगर इसी की भी जान जाती है तो वह कोई भारतीय ही होता है तो फिर क्यों नहीं हम अपने आस-पास अपने मोहल्ले कालोनी में इस तरह की संस्कृति विकसित कर लेते हैं कि जिससे हमें कभी भी किसी भी संदिग्ध व्यक्ति को ढूँढने और पुलिस को सूचित करने में सफल हो सकें ?
       पूरे देश में जिस तरह से पुलिस बल की कमी है उससे यह तो तय है कि बिना जन सहभागिता के हम सुरक्षा के माहौल को नहीं सुधार सकते हैं. और इसके लिए जो कुछ किया जाना चाहिए वह अभी तक हो नहीं पाया है. किसी भी छोटे से क्षेत्र में प्रयोग के तौर पर १० से १५ साल के बच्चों को ही अपने आस पास के माहौल से सचेत रहने की शिक्षा दी जानी चाहिए तभी जाकर आगे चलकर वे कुछ सहयोग करने लायक हो सकेंगें. १५ से २५ साल वाली युवा पीढ़ी को हर आने जाने वाले पर निगाह रखने की सलाह होनी चाहिए और महिलाओं को भी यह बताना चाहिए कि घर पर सामान बेचने या मोहल्ले में रेहड़ी पर निकलने वालों पर वे भी नज़र रखें. यह सब कुछ ऐसे प्रयास हैं जिनको  हम बिना किसी अतिरिक्त मदद के चला सकते हैं और अपने आस पास के सुरक्षा माहौल को बेहतर कर सकते हैं जब आतंकियों को यह पता होगा कि मोहल्लों में इस तरह की कोई व्यवस्था काम कर रही है तो उनके लिए कुछ भी कर पाना उतना आसान नहीं रह जाएगा.     

मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

2 टिप्‍पणियां:

  1. सबको चेतना होगा. खुफिया वाले सोते हैं. और हम भी नहीं चेते तब भी कोई बात नहीं, मोमबत्तियां लेकर एक मार्च और सही...

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