मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 17 नवंबर 2010

प्राधिकार और मनमोहन

लगता है कि राजा का मामला केवल द्रमुक पर छोड़े जाने के कारण अब प्रधानमंत्री को बहुत कुछ ऐसा भी सुनना पड़ेगा जो उन्हें असहज कर सकता है. देश में बहुत सारे कानून हैं और कुछ स्थानों पर कानूनों की व्याख्या को सीमित कर उसे सम्बंधित अधिकार प्राप्त व्यक्ति पर ही छोड़ दिया गया है. २ जी स्पेक्ट्रम घोटाले में जनता पार्टी के सुब्रामनियम स्वामी द्वारा दायर की गयी याचिका के सम्बन्ध में कोर्ट ने प्राधिकार व्यक्ति की स्थिति पर गंभीर टिप्पणियां की हैं. इस मामले में मनमोहन पर यह आरोप है कि उन्होंने जान बूझकर राजा पर अभियोग चलाने की अनुमति देने में अनावश्यक समय लिया और कोई फैसला भी नहीं किया.
    कोर्ट ने यह भी कहा कि प्राधिकार (इस मामले में मनमोहन ) को किसी भी मसले पर समय से जवाब अवश्य देना चाहिए पर इस मामले में ३ महीने की समय सीमा के स्थान पर १६ महीने बाद भी कोई उत्तर नहीं दिया गया है इस मामले में प्राधिकार की चुप्पी परेशान करने वाली है. उसे यह अधिकार है कि वह इसे ठुकरा भी सकता है, पर यहाँ पर १६ महीनों तक चुप्पी का माहौल ही है. कोर्ट ने यह भी कहा कि ३ महीने की समय सीमा केवल सुशासन के लिए निर्धारित है इसका मतलब यह नहीं है कि इतना समय लिया जाना आवश्यक है. बहुत सारे मामलों में जब स्थिति साफ़ हो तोअभियोग चलाने की अनुमति तुरंत ही दी जानी चाहिए.
   कोर्ट ने इस मसले से निपटे जाने के प्राधिकार के रवैये की भी आलोचना की, यह एक गंभीर मामला था और इसे जिस संजीदगी से लिए जाना चाहिए था प्राधिकार ने उसमें भी रूचि नहीं दिखाई. ऐसे मामलों में प्राधिकार महाधिवक्ता की राय भी ले सकता है और जब यह मामला देश के सर्वोच्च प्राधिकार की तरफ़ से था तो इसकी भाषा भी उचित होनी चाहिए थी पर यह एक नगर के प्राधिकार के जैसा उत्तर मालूम पड़ रहा था. यह अच्छा ही है कि इस तरह के मसलों पर कोर्ट ने पहली बार देश के सर्वोच्च प्राधिकार पर गंभीर सवाल खड़े किये हैं जिससे आगे आने वाले समय में कोई भी प्राधिकार अगर इस तरह से अनावश्यक देरी करता है तो उसे इस मामले की नज़ीर दी जा सकती है.
   एक बात का ध्यान मनमोहन समेत देश के सभी प्राधिकारों को रखना चाहिए कि कानून अच्छे शासन के लिए होता है न कि इसलिए कि उसकी कमियों को ढूंढकर उसको ठेंगा दिखाया जाने लगे ? अभी तक इस तरह के मामलों कोर्ट कहती ही रहती है और कभी राजनैतिक मजबूरियां तो कभी अपने चहेतों को बचाने के लिए प्राधिकार द्वारा इसकी अवहेलना की जाती रहती है. आशा है कि इस मसले के उखड़ने के बाद अब भविष्य में किसी भी प्राधिकार द्वारा अनावश्यक विलम्ब करने से बचने का प्रयास किया जायेगा ..  और कानून से देश को चलाने का प्रयास होगा न कि कानून से लाभ उठाने की कोशिश की जाएगी ? 

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