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मंगलवार, 30 नवंबर 2010

उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था ?

लगता है कि चुनावों की आहट ने उत्तर प्रदेश की मुख्य मंत्री मायावती की नींदें उदा दी हैं तभी अचानक उनको इस बात का ध्यान आ गया कि प्रदेश में कानून व्यवस्था की भी ज़रुरत है ? अभी तक पता नहीं किस दुनिया में जी रही सरकार को अचानक ही यह लगने लगा है कि प्रदेश में कानून व्यवस्था गड़बड़ है ? लगता है कि बिहार चुनावों ने उनकी सोच बदल दी है कि जब नितीश इसी दम पर सरकार बना सकते हैं तो वह क्यों नहीं ? पर यहाँ पर यह सरकार यह भूल जाती है कि कहीं न कहीं से कुछ ऐसा ज़रूर चल रहा है जो इस सरकार के वोटों को रोज़ ही कम कर रहा है ? आम आदमी को सबसे ज्यादा परेशानी कानून व्यवस्था से ही होती है. हर व्यक्ति का कोई काम रोज़ सरकार से नहीं पड़ता है.
         सपा सरकार के समय जिस तरह से कानून की धज्जियाँ उड़ाई जाती थीं उनसे ऊबकर ही जनता ने एकमुश्त समर्थन मायावती की बसपा को दिया था क्योंकि इससे पहले जब भी वे सत्ता में आयीं थीं तो उन्होंने अपराधियों पर कड़ी कार्यवाही करके एक अच्छा सन्देश दिया था. पर इस बार जब पूर्ण बहुमत के साथ उनकी सरकार है तो प्रदेश में कानून का राज कहीं भी नहीं दिखाई देता है और जो तेवर पहले उनके होते थे अब वे भी नहीं रह गए हैं ? साथ ही अधिकारियों को उनकी रग मालूम हो गयी है जिससे अब उनकी बार बार दी जाने वाली चेतावनियों का भी असर कहीं नहीं दिखाई देता है ? बातें करके वोट पाना एक बात है और अपनी बात पर कायम रहकर उन्हें बचाते हुए और अधिक वोट पाना बिलकुल दूसरी बात है.
      क्या कानून व्यवस्था भी ऐसी चीज़ है कि जब सूबे की मुखिया को लगे कि अब यह ठीक होनी चाहिए वह तभी ठीक की जाये ? आखिर क्या कारण है कि इसे हमेशा चुस्त दुरुस्त नहीं रखा जा सकता है ? नहीं क्योंकि इसे चुस्त दुरुस्त रखने में हर सरकार के छुट्भैय्यों को दिक्कतें आने लगती हैं और यह हर सरकार जानती है कि चुनाव के समय यही ज़मीनी नेता उनके काम आने वाले हैं ? अब सरकार अपने वोट देखे या इन छोटे नेताओं को ? फिलहाल अब यह कि कानून व्यवस्था सुधर जानी चाहिए एक नारे से अधिक कुछ भी नहीं लगता है ? 

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