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रविवार, 3 अप्रैल 2011

परिवार नियोजन और भ्रष्टाचार

             लगता है कि उत्तर प्रदेश में अपराधियों ने हर परिस्थिति और हर जगह पर पैसे कमाने के नए नए ज़रिये तलाश कर लिए हैं. शनिवार को लखनऊ की महत्वपूर्ण कालोनी गोमतीनगर में सुबह की सैर करने निकले परिवार कल्याण के मुख्य चिकित्साधिकारी की गोली मारकर हत्या करके अपराधी आराम से भाग गए. पिछले ६ महीनों के अन्दर परिवार कल्याण से जुड़े ये दूसरे मुख्य चिकित्साधिकारी हैं जिनकी हत्या हुई है. आख़िर क्या कारण है कि इस विभाग में तैनात अधिकारी अपराधियों की गोलियों का निशाना बन रहे है ? इस पूरे मसले का सम्बन्ध इस विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार ही है जिसके चलते अभी तक प्रदेश में यह कार्यक्रम पूरी तरह से असफल साबित हो रहा है. जिस तरह से इस विभाग को देश और प्रदेश की जनसँख्या को नियंत्रित करने के लिए लोगों को प्रशिक्षित करने का ज़िम्मा मिला हुआ है उसके तहत इसके पास बहुत धन होता है और यह एक ऐसा मद है जिसमें पैसे का खेल बहुत बड़े स्तर पर खेला जाता है.
        सरकार की किसी भी परियोजना को चलाने का ज़िम्मा उसके अधिकारियों पर ही होता है पर जिस तरह से उत्तर प्रदेश में हर विभाग ने भ्रष्टाचार में रोज़ ही नए आयाम बनाये हैं उसे देखते हुए इस तरह की घटनाएँ होना कोई बहुत बड़ी बात नहीं है और वह दिन दूर नहीं जब ये अपराधी इतने प्रभावशाली और दबंग हो जायेंगें कि वे मंत्रियों तक पर वार करने से भी नहीं चूकेंगें ? आख़िर क्या कारण है कि ६ माह पहले इन्हीं परिस्थितियों में इसी पद पर तैनात डॉ विनोद आर्या की भी इन्हीं परिस्थियों में हत्या होने के बाद भी सरकार की नींद नहीं टूटी और इसे वे केवल एक सामान्य सी घटना मानकर कुंडली मारकर बैठ गयी ? बड़े बड़े दावे करने वाली पुलिस ने भी आख़िर क्या किया उस मामले में ? अगर उस मामले में कुछ तेज़ी दिखाई जा रही होती तो शायद अपराधी फिर से उन्हीं परिस्थितयों में उसी पद पर बैठे व्यक्ति कि हत्या करने के बारे में नहीं सोचते ? 
      प्रदेश में कानून व्यवस्था की स्थिति किसी से भी नहीं छिपी है और फिर भी सरकार कानून व्यवस्था में सुधार की बड़ी बड़ी बातें करने से नहीं चूकती है ? हद है बेशर्मी कि इस मामले में भी पुलिस हमेशा की तरह लीपा पोती ही करती नज़र आई. इन परिस्थितियों में बोलना उतना ज़रूरी नहीं होता जितना सख्ती से काम करना पर जब पुलिस के काम से ज्यादा उसकी ज़बान चलती है तो ऐसा ही होता है. यह सही है कि पुलिस हर जगह पूरी तरह से सुरक्षा नहीं कर सकती है फिर भी जिन परिस्थियों में एक अधिकारी मारा जाता है ठीक उसी तरह से उसी पर पर बैठे दूसरे अधिकारी की भी हत्या कर दी जाती है ? पुलिस इस मामले को कहीं का कहीं जोड़ने का प्रयास ही करती रहती है. अगर पहले के मामले में सही दिशा में तफ्तीश की जा रही होती तो ऐसा दोबारा तो नहीं होता ? आज आवश्यकता है पिछले एक वर्ष में इस विभाग से लाभान्वित होने वाले हर व्यक्ति की सघन जांच करने की क्योंकि कहीं न कहीं यह पूरा खेल पैसे बनाए से ही जुड़ा हुआ ही है. हो सकता है कि इस पूरे मामले में कुछ बड़े भी शामिल हों और पुलिस को इस बात की जानकारी भी हो तभी वह पूरी तरह से मामले को ठंडा करने में लगी हुई है.           
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