मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 7 अप्रैल 2011

महिला आयोग का प्रस्ताव

                        देश में लड़कियों और महिलाओं के विरुद्ध बढ़ रहे अपराधों के चलते राष्ट्रीय महिला आयोग ने महिलाओं का पीछा करने को अभी अपराध की श्रेणी में रखने की सिफारिश सरकार को भेजी है. महिला आयोग की अध्यक्षा गिरिजा व्यास ने इस पहल के बारे में बताते हुए कहा कि अधिकतर परिस्थितयों में यह पीछा करना ही सूनसान जगहों पर छेड़ छाड़ और अन्य यौन अपराधों को बढ़ावा देता है. आयोग ने इस तरह से पीछा करने को छेड़ छाड़ के तहत रखे जाने का विरोध भी किया है और प्रस्तावित यौन उत्पीड़न विधेयक में इसके लिए भारतीय दंड संहिता में ५०९ बी के रूप में एक नयी धारा को बनाए का प्रस्ताव भी किया है. जहाँ तक महिलाओं से जुड़े अपराधों की बात है तो इसमें सबसे पहले महिलाओं को ही जागरूक करने की आवश्यकता है और साथ ही पुलिस और समाज को अपनी मानसिकता बदलने की भी ज़रुरत है क्योंकि कोई भी कानून पुलिस के माध्यम से ही लागू किया जाता है. 
      सबसे पहले महिलाओं और लड़कियों के विद्यालय और कार्यस्थल के आस पास की जगहों पर इस तरह के असामाजिक तत्वों की आवाजाही को रोकने का प्रयास किया जाना चाहिए क्योंकि अगर स्थानीय पुलिस चाहे तो लड़कियों के विद्यालयों के आस पास थोड़ा सा ध्यान देकर ही इस तरह की घटनाओं को काफी हद तक रोक सकती है पर आज के समय में शायद सरकार और पुलिस की सूची में महिलाओं की सुरक्षा का मुद्दा काफी पीछे छूट गया लगता है ? जहाँ तक इस तरह की घटनाओं को रोकने की बात है तो इसके लिए सामाजिक जागरूकता की बहुत बड़ी आवश्यकता है क्योंकि जब तक हम ख़ुद ही अपने आस पास महिलाओं के साथ होने वाले इस तरह के कृत्यों को रोकने केलिए सजग नहीं होंगें तब तक उनकी सुरक्षा खतरे में ही रहने वाली है. इस पूरे प्रयास में लड़कियों को यह भी समझाने की आवश्यकता है कि वे इसका विरोध करना भी सीखें.
     अब भी समय है कि पुलिस को इस बात पर लगाया जाये कि वह विद्यालय के समय पर अपने अपने शहरों और कस्बों में इस तरह के असामाजिक तत्वों पर नज़र रखे क्योंकि इस तरह के अपराध अचानक नहीं हुआ करते हैं जब लम्बे समय तक असामजिक तत्वों को यह लगता है कि इस पूरे मामले में पुलिस कहीं है ही नहीं तो वे और निरंकुश होकर लड़कियों और महिलाओं का जीना हराम किये रहते हैं ? कानून में संशोधन की इसलिए भी बहुत आवश्यकता है क्योंकि कई बार लड़कियों द्वारा हिम्मत दिखने पर इन तत्वों को पकड़ तो लिया जाता है पर सख्त कानून न होने के कारण ये जल्दी ही छूट जाते हैं और फिर से इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने लगते हैं. जो बात हम अपने से शुरू कर सकते हैं कि अपने घरों के बच्चों को यह सिखाएं कि वे हर परिस्थिति में महिलाओं की इज्ज़त करना सीखें और कहीं पर भी इस तरह की किसी भी घटना में शामिल न हों. यह मुद्दा कानून से अधिक सामाजिक ताने बाने से जुड़ा हुआ है और यदि सामाजिक स्तर पर कहीं से भी इसके लिए कोई प्रयास किये जाये तो वे ही अधिक कारगर साबित होंगें.     
   
 
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