मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

माया का नाटक

                    उत्तर प्रदेश में जिस तरह से माया ने अपने दो मंत्रियों से इस्तीफे लिए हैं उनसे कोई भी बात हल होने वाली नहीं है. इन मंत्रियों में परिवार कल्याण मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा और स्वास्थ्य मंत्री अनंत मिश्र के इस्तीफे केवल जनता का ध्यान बँटाने के लिए ही लिए गए हैं. बाबू सिंह कुशवाहा माया के बहुत ही करीबी लोगों में हैं और कालिदास मार्ग स्थित उनके आवास पर सारी ज़िम्मेदारी आज भी वही उठाते हैं और अनंत मिश्र माया के खास सतीश चन्द्र मिश्र के कोटे से मंत्री हैं. इन मंत्रियों के इस्तीफे से इनकी सेहत पर कोई अंतर नहीं पड़ने वाला है क्योंकि जब तक प्रदेश में माया सरकार है इनका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता है ? जिस तरह से अचानक माया सरकार को यह लगने लगा है कि इस तरह से इस्तीफे लेने से जनता में अच्छा संदेश जाने वाला है तो वे बहुत बड़ी भूल कर रही हैं. जिस तरह से पूरे प्रदेश में हर जगह पर भ्रष्टाचार मचा हुआ है उसे देखते हुए इस तरह के कदमों से कुछ भी नहीं होने वाला है. यदि वास्तव में वे भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ कुछ करना चाहती हैं तो उन्हें सबसे पहले अपने विधायकों की पिछले ४ वर्षों में अनैतिक ढंग से जमा की गयी संपत्ति पर नज़र डालनी चाहिए. जनता को यह सब दिखाई दे रहा है कि विधायक बनने से पहले उनकी औकात क्या थी और आज वे किस तरह से लाखों की गाड़ियों में बैठे घूम रहे हैं और करोड़ों की संपत्ति के मालिक बन गए है ? आख़िर क्या कारण है कि इन माननीयों के अचानक अमीर होने पर सरकार की नज़रें कभी भी नहीं जाती हैं ? कहीं ऐसा तो नहीं कि आने वाले चुनावों के लिए इन विधायकों को पैसे बटोरने की खुली छूट मिली हुई है ?
                    वास्तव में लखनऊ में ६ महीनों में  परिवार कल्याण के २ मुख्यचिकित्सधिकारियों की जिस तरह से हत्या की गयी है उससे इस विभाग में बड़े पैमाने में हो रही धांधली तो सामने आ ही गयी है कि पूरे प्रदेश में लूट मची हुई है. केवल कानून व्यवस्था की लम्बी चौड़ी बातें ही की जाती हैं पर जब कुछ करने का समय आता है तो वे हवा हवाई ही साबित होती हैं. प्रदेश में भी पूरे देश की तरह ही भ्रष्टाचार का घुन लगा हुआ है और ईमानदारी से काम करने वालों को अपनी जान देकर इसकी कीमत चुकानी पड़ रही है ? यदि माया सरकार भ्रष्टाचार के मामलों के प्रति इतनी ही संवेदनशील है तो प्रदेश के सभी विभागों पर नज़र डाले और यह देखे कि क्या कोई एक विभाग भी ऐसा बचा है जहाँ पर कहा जा सके कि भ्रष्टाचार नहीं चल रहा है ? कोई भी प्रयास जब तक पूरे मन से नहीं किया जाता है वह सफल नहीं हो सकता है पर यहाँ पर जिस तरह से भ्रष्टाचार के पेड़ को उखाड़ने के स्थान पर केवल पत्तों को ही हिलाया जा रहा है उससे यही लगता है कि सरकार के मन में इन भ्रष्टाचारी देशद्रोहियों के खिलाफ कड़े कदम उठाने का दम ही नहीं बचा है. देश में इस मसले पर बहुत सारे प्रयास किये गए हैं अपर अभी तक इन प्रयासों को कभी भी अमली जमा नहीं पहनाया गया जिससे भ्रष्टाचार की यह दीमक पूरे तंत्र को तेज़ी से खाए जा रही है और सरकार चलाने वालों को लगता है कि चलो ५ साल बाद फिर से इसी जगह पर आना है तो फिर किस बात की चिंता की जाये ?
                   अब समय है कि जनता के सामने इस तरह की राजनीति को अविलम्ब बंद कर दिया जाये जिससे आने वाले समय में जनता नेताओं से हद दर्ज़े तक नफ़रत न करने लगे. आज भी समय है कि ईमानदारी से प्रयास किये जाने पर सब कुछ पाया जा सकता है. माया से जनता को इसलिए भी बहुत सारी आशाएं थीं क्योंकि उनके पिछले छोटे छोटे कार्यकालों में उन्होंने सख्त प्रशासक के रूप में अपनी छवि बनायीं थी और उन्होंने पहले कभी भी किसी भी दबाव को नहीं माना था पर जब उनकी पूर्ण बहुमत से सरकार बनी तो वे अन्य दलों की सरकारों से भी निम्न साबित हुईं. उनकी तेज़ छवि को देखते हुए ही जनता ने पूरे प्रदेश में उनको एक साथ बहुमत के साथ शासन करने की छूट दी थी अगर वे चाहती तो इस अवसर का लाभ उठाकर वे पूरे प्रदेश में अपनी पकड़ को और मज़बूत कर सकती थीं पर सत्ता के मद ने उन्हें और उनकी पार्टी को भी जकड़ लिया और जनता ने अपना एक और सपना भी टूटते हुए देख लिया. जिससे कुछ अच्छे की आशा थी उनसे भी बहुत निराशा मिली. अब चुनावी वर्ष में इस तरह के घटिया हथकंडों से बात नहीं बनने वाली है और आने वाला समय और भी कठिन होने वाला है.               मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

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