५ अप्रैल से भ्रष्टाचार के खिलाफ़ पूरे देश में अलख जगाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हज़ारे की सभी मांगों पर अंततः केंद्र सरकार ने सार्थक रुख अपना कर जनता की जीत को एक बार फिर से तय कर दिया है. इस देश में जहाँ गाँधी एक आवाज़ नहीं विचारधारा के सामान हैं और आज़ादी के बाद से संभवतः यह दूसरी बार है कि जनता ने उनके गांधीवाद पर चलते हुए इतनी बड़ी जीत दर्ज़ की है. इस मांग के माने जाने से सबसे बड़ी बात यह हुई है कि अभी तक जिन मुद्दे पर पूरे देश के नेता सांप की तरह कुंडली मारे बैठे हुए थे आज वे इस पर विचार करने के लिए राज़ी हो गए हैं. देश के सभी राजनैतिक दल एक जैसे है और जनता के हित की बात करने में आख़िर वे हमेशा पीछे ही हटते रहे हैं इस बार भी वे पीछे ही रहते पर इस आन्दोलन को मिल रहे जनसमर्थन ने सभी नेताओं को यह सोचने के लिए मजबूर कर दिया कि अब जनता के सामने बहुत सारे विकल्प मौजूद हैं और इनके बिना कुछ भी नहीं किया जा सकता है ?
जिस तरह से सरकार ने जन लोकपाल विधेयक के लिए अपनी सहमति दिखाई है और उसके पैनेल में ५ सरकारी और ५ समाजसेवी लोगों को रखने की बातें भी की गयी है उससे यही लगता है कि भले ही यह कदम देश से भ्रष्टाचार को पूरी तरह से न हटा पाए पर उसको हटाने की दिशा में एक बहुत ही सार्थक कदम के रूप में इसको हमेशा ही याद किया जायेगा. आज देश में भ्रष्टाचार का जो स्वरुप है उसको देखते हुए सभी लोगों को इसके दायरे में लाने की आवश्यकता है जिससे आने वाले समय में सभी लोगों को यह समझ में आ जाये कि अभी भी जनता में बहुत दम बचा हुआ है और भ्रष्टाचारियों को यह सन्देश भी चला जाये कि अब इस तरह के किसी भी मुद्दे पर देश सभी को साथ लेकर चलने की दिशा में बहुत आगे बढ़ गया है. अब जनता भ्रष्टाचार से ऊब चुकी है और अब आने वाले समय में भ्रष्टाचारियों को बचने के लिए कोई भी हथकंडे नहीं चल पायेंगें भले ही वह किसी भी पद पर क्यों न बैठा हो ?
यह हुंकार ऐसी होनी चाहिए जिससे आने वाले समय में देश के संशाधनों का दुरूपयोग करने वाले अपने अंजाम को सोच कर ही दहल उठें ? अभी तक जो भी कानून हैं उनके सही अनुपालन न हो पाने से अधिकांश मामलों में अभी तक किसी बड़े को किसी भी तरह कि कोई सजा नहीं हो पाती है और केवल भ्रष्टाचार के लिए वे कुछ भी करने के बाद आसानी से बच जाया करते हैं इस मामले में सरकार द्वारा मांगें मानी जाना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना इस विधेयक को बनाते समय दोषियों को कड़ा दंड देने का प्रावधान करने का है. अभी यह सारा मामले आगे ही बढ़ा है और अगर सरकार इस मामले में और ढीला रुख अपनाती है तो हो सकता है कि मानसून सत्र के समय एक बार फिर से दबाव बनाने के लिए जनता को फिर से यह करना पड़े. आख़िर देश हमारा है तो इसके लिए सोचेगा कौन ? हम सभी तैयार हैं बस अब सही समय की ज़रुरत है और इस बार जनता ने यह दिखा भी दिया है कि अगर उसकी ऊर्जा को सही दिशा में लगाने का प्रयास किया जाये तो भारत का भाग्य आज भी बदलने का माद्दा उसमें है...
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
लोकपाल बिल का कानून बनने की ओर बढ़ना अच्छा है। हो सकता है व्यवस्था परिवर्तन के लिए एक औजार और मिल जाए।
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