मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 10 अप्रैल 2011

बाबा रामदेव का पूर्वाग्रह

                              जन लोकपाल विधेयक पर बनने वाली समिति को लेकर जिस तरह से योग गुरु बाबा रामदेव ने अपनी आपत्ति दिखाई उसकी कोई आवश्यकता नहीं थी. यह समिति पूरी तरह से सरकार और अन्ना हजारे के मंच द्वारा बनाये जाने वाली समिति की प्रस्तावित योजना के अनुसार ही है फिर भी इसमें केवल विरोध के लिए ही विरोध किये जाने को कहाँ तक उचित ठहराया जा सकता है ? जिस तरह से बाबा रामदेव ने समिति में बाप-बेटे शांति भूषण और प्रशांत भूषण के होने पर अपनी असहमति जताई उससे तो यही लगता है कि उन्होंने इस बारे में विचार नहीं किया और केवल विरोध करने के लिए ही विरोध पर आमादा हो गए. उनके इस तरह के बर्ताव पर अन्ना हजारे ने स्वयं कहा कि उन पर आरोप लगाया जा सकता है पर इन दोनों पर कोई भी ऊँगली नहीं उठा सकता है क्योंकि इनका सामाजिक जीवन बेदाग़ रहा है और ये कानून के विशेषज्ञ हैं.
       इन दोनों सदस्यों में से शांति भूषण को सरकार ने और प्रशांत भूषण को अन्ना हजारे के मंच ने प्रस्तावित किया है. सबसे बड़ी बात यह है कि यदि बाप और बेटे में इतनी क़ाबलियत है कि वे एक साथ देश के लिए इतने बड़े बदलाव के लिए काम कर सकें तो फिर कहीं से इस बात को उठाने का मतलब ही नहीं बनता है और योग गुरु को इस बात से परहेज़ करना चाहिए था. पहले उन्हें पूरी बात समझने का प्रयास करना चाहिए था कि आख़िर किन परिस्थितयों में ये दोनों विद्वान वकील इस समिति में कैसे हैं ? क्या केवल उनके में पिता पुत्र के रिश्ता होने से ही देश को उनके अनुभवों से लाभ उठाने से वंचित कर दिया जाना चाहिए ? अन्ना हजारे ने जिस तरह से अपनी बात रखी वह भी अपने आप में महत्वपूर्ण है अगर किसी में इतनी क़ाबलियत है कि वह देश के लिए नए मानदंड स्थापित करने में अपना योगदान दे सके तो फिर किस तरह से उन्हें इसके लिए रोका जा सकता है ?
     अभी तक राजनेताओं ने ही अपने परिवार को आगे बढ़ाने का काम किया है और शायद पहली बार ऐसा होने जा रहा है कि इतने महत्वपूर्ण मुद्दे पर सरकार और सामाजिक संगठनों को इन दोनों नामों पर विचार कर इन्हें स्वीकृत किया गया है. अगर उनकी कानूनी विशेषज्ञता इतनी अधिक है कि वे देश के लिए प्रस्तावित लोकपाल विधेयक के लिए अपना योगदान दे सकें तो फिर इस बात पर किसी भी तरह का प्रश्न उठाना ही नहीं चाहिए बल्कि इसे इस तरह से भी देखना चाहिए कि कभी किसी भी तरह का गतिरोध उत्पन्न होने पर ये विद्वान पिता पुत्र अपने रिश्तों के कारण आसानी से बैठकर कोई अच्छा मार्ग तलाशने में सफल हो जाएँ ? फिलहाल इस तरह कई बातें करने का कोई तुक नहीं बनता है पर लगता है कि अपने को राजनीति के क्षेत्र में स्वीकार्य बनाने के लिए योग गुरु भी राजनेताओं कई तरह केवल विरोध को ही प्राथमिकता देने लगे हैं. 
 
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5 टिप्‍पणियां:

  1. शांतिभूषण और प्रशांत भूषण की ईमानदारी पर कोई सवाल नहीं उठा सकता...

    आशुतोष जी, शांतिभूषण भी अन्ना हजारे की ओर से ही कमेटी में को-चेयरमैन के लिए प्रस्तावित किए गए हैं, न कि सरकार की ओर से....

    जय हिंद...

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  2. 120 करोड़ के देश में अन्ना हजारे की भ्रषटाचार से जंग में पूरा देश शामिल रहा किरण बेदी और स्वामी अग्निवेश तो अन्ना के साथ जंतर मंतर पर जमे भी रहे, ऐसे में बाप बेटे में से एक को लेकर अन्ना किरण बेदी या अग्निवेश को ले सकते है, अभी भी भूल सुधारी जा सकती है, मैं बाबा रामदेव से सहमत हूँ

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  3. इस तरह के विवादों की तो पहले से ही संभावना थी- यह स्वभाविक है इतने बड़े प्रारुप में.

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