मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 20 अप्रैल 2011

अरुणिमा और घटिया राजनीति

            उत्तर प्रदेश में खिलाड़ी अरुणिमा के लुटेरों के शिकार बनने और अपना एक पैर गंवाने के बाद जिस तरह से राज्य के स्तर पर घोर लापरवाहियां बरती गयीं उससे यही लगता है कि प्रदेश सरकार को किसी की भी जान से कोई भी मतलब नहीं है ? जिस तरह से राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी के साथ इस तरह की घटना हुई और फिर उसके इलाज़ में जिस तरह से कोताही बरती गयी उसे देखते हुए यही कहा जा सकता है कि प्रदेश में कानून व्यवस्था का ढिंढोरा पीटने वाली माया सरकार अपनी कमियों को छिपाने के लिए हमेशा ही दूसरों पर तोहमत लगाती रहती है. इस तरह की दुर्घटना कहीं भी किसी के साथ हो सकती है पर कुछ हो जाने के बाद कहीं से भी मानवता का परिचय नहीं दिए जाने से राज्य सरकार की संवेदन शीलता का पता भी चलता है. इस मामले में जब प्रधान मंत्री कार्यालय ने रिपोर्ट मांग ली तब जाकर प्रदेश सरकार को यह एहसास हुआ कि इस मामले में कोई गंभीरता भी होनी चाहिए ? और जिस तरह से वह केवल राजनीति करने के लिए ही सक्रिय हुई वह बेशर्मी की हद है.
              जब सोमवार को लखनऊ में यह पता चला कि केंद्रीय खेल मंत्री अजय माकन अरुणिमा से मिलने आ रहे हैं तो लखनऊ चिकित्सा विश्वविद्यालय के ट्रामा सेंटर में प्रदेश सरकार के मंत्रियों की आवाजाही बढ़ने लगी क्योंकि शायद सरकार को यह लगने लगा था कि कहीं से भी केंद्र सरकार इस मामले में बाज़ी न मार ले ? इस खबर के बाद ही प्रदेश के खेल मंत्री अयोध्या पाल और परिवहन मंत्री रामअचल राजभर ने दौरा करके सभी को दिशा निर्देश जारी किये. क्या इससे पहले इन मंत्रियों कि यह ज़िम्मेदारी नहीं बनती थी कि वे लखनऊ में ही कुछ समय निकाल कर अपनी देखरेख में अरुणिमा को अच्छा इलाज़ दिलाने का प्रयास करते ? जब दिल्ली से मंत्री के आने का पता चला तो प्रदेश के खेल मंत्री को भी खिलाड़ियों के प्रति प्रेम जग गया और तभी परिवहन मंत्री को भी यह पता चल गया कि अरुणिमा का सम्बन्ध उनके गृह जनपद अंबेडकर नगर से है इसलिए वे भी अपने नंबर जनता के सामने बढ़वाने के लिए हाज़िरी लगा आये ? पर जिस स्तर पर इलाज़ करवाने की बात होनी चाहिए थी वह कहीं से भी नहीं दिखाई दी.
    अचानक ऐसा क्या हुआ कि जो प्रदेश सरकार पहले कान में तेल डालकर बैठी हुई थी अचानक ही उसने अरुणिमा को अच्छे इलाज की बात कहकर दिल्ली भेज दिया ? क्या लखनऊ में चिकित्सा विश्वविद्यालय इस काम को ठीक से नहीं कर सकता था ? लखनऊ मेडिकल कॉलेज की अपनी एक छवि है और वह इससे भी कठिन केस पर काम कर सकता है पर जब मामले नाक ऊंची नीची होने का हो तो नेता कभी भी नाक नीची नहीं चाहता है ? इस मामले को जिस संवेदन शीलता के साथ निपटना चहिये था प्रदेश सरकार उसमें पूरी तरह से अक्षम हो चुकी थी और केंद्र की तरफ से पहल होने पर ही अरुणिमा को अच्छा इलाज़ संभव हो सका यह चिंता की बात है क्योंकि पता नहीं ऐसे कितने ही केस होते रहते हैं और उनमें आम जनता पिसती रहती है. इस तरह की घटनाओं के बाद फिर से इस बात पर विचार करने की आवश्यकता हो जाती है कि क्यों नहीं रेलवे के पास पूरी सुविधा और अधिकार से युक्त एक सुरक्षा बल हो जो पूरी तरह से राज्य सरकारों के नियंन्त्रण से मुक्त हो और रेलवे के लिए एक अखिल भारतीय पुलिस सेवा में अलग से एक कैडर भी बना दिया जाना चाहिए जिससे उसके पास अधिकारियों की कोई कमी न रहने पाए. और यह काम छोटे राज्यों में प्रायोगिक तौर पर करके देखना भी चाहिए फिर इसके परिणामों पर विचार करके इसे पूरे देश में लागू करवाने के बारे में सोचना चाहिए.     
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