मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011

भ्रष्ट अफसरों का बहिष्कार

          देश के प्रशासनिक अधिकारियों की बैठक को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का यह कहना कि अब अधिकारियों को नेताओं को सलाह देते समय निर्भीकता का परिचय देना चाहिए और भ्रष्ट अधिकारियों का बहिष्कार करना चाहिए. यह सब इतनी आसानी से कही जाने वाली बातें नहीं थीं पर दिल्ली में सामाजिक संगठनों की पहल पर जन लोकपाल विधेयक बनाए की मांग को लेकर जो अभियान चलाया गया उससे यही लगता है कि अब सरकार ने भी यह तय कर लिया है कि वह भी कहीं न कहीं से भ्रष्टाचार पर अपनी कठोरता को जनता के सामने प्रदर्शित करती रहे क्योंकि बिना इसके सरकार की विश्वसनीयता पर ही संदेह होने लगता है ? जिस तरह से जनता का दबाव बढ़ता ही जा रहा है उसके बाद अब नेताओं के पास इस तरह की बातें कहने के अलावा कोई चारा भी नहीं रह गया है पर अब जनता का ध्यान केवल बातें करके नहीं बंटाया जा सकता है और मनमोहन सिंह से साफ़ सुथरी छवि वाला नेता जब कुछ कहता है तो उस बात का असर अधिक होता है. फिर भी केवल कहने के स्थान पर अगर कुछ ठोस कदम भी उठाये जाएँ तो वे अधिक कारगर होंगें. 
        जिस तरह से सोनिया और मनमोहन ने भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ अपने कड़े रुख का प्रदर्शन करना शुरू कर दिया है उससे यही लगता है कि आने वाले समय में कांग्रेस पार्टी और सरकार के स्तर पर इसमें और सख्ती आने वाली है. पर जो बात सबसे अहम् है कि अधिकारियों और नेताओं के ख़तरनाक भ्रष्टाचारी गठजोड़ को तोड़ने के लिए अभी तक कोई ठोस पहल नहीं की जा सकी है जिसके चलते ये सभी बहुत आसानी से छूट जाया करते हैं और जनता में यह संदेश चला जाता है कि इन लोगों द्वारा चाहे जितना भी भ्रष्टाचार फैलाया जाए इनका बाल भी बांका नहीं होने वाला है ? जनता के बीच में इस तरह का संदेश जाना और जनता की तरफ से जंतर मंतर पर बैठे अन्ना हजारे और उनके समर्थकों द्वारा सरकार पर दबाव बनाया जाना अपने आप में बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि देश के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि भ्रष्टाचार पर पूरे का पूरा देश एक साथ उठा खड़ा हुआ है और जनता की इस आवाज़ के आगे अब कोई भी सरकार भ्रष्टाचारियों के ख़िलाफ़ बोलने से खुद को नहीं रोक पायेगी क्योंकि तब लोगों को यह कहने का मौका मिलगा कि सरकार ख़ुद ही इस मामले पर बिलकुल चुप थी. 
      सवाल यह नहीं है कि मनमोहन सिंह ने इस बात पर ज़ोर दिया है बल्कि सवाल यह ज्यादा बड़ा है कि इस तरह से केवल कहने से अगर स्थितियां सुधरने वाली होती तो आज देश को यह दिन नहीं देखने पड़ते. भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वालों की सुरक्षा के बारे में सरकार के पास क्या है ? अगर कोई अधिकारी ही कड़ा रुख़ अपनाता है तो उसे सरकार में बैठे बड़े और भ्रष्ट अधिकारियों और नेताओं से ख़तरा होने लगता है और देश के हर हिस्से में इस तरह के उदाहरण मिल जायेंगें कि सख्ती करने पर अधिकारी का तबादला कर दिया गया या उसकी हत्या तक कर दी गयी. ऐसी स्थिति में जब तक देश में भ्रष्टाचार से निपटने के लिए एक कड़ा कानून नहीं होगा इससे जुड़े लोगों पर सख्ती करना आसान नहीं होगा. अब भी जिस तरह से यह प्रक्रिया आगे बढ़ रही है उससे यही लगता है कि अब कुछ सही दिशा में होने का समय आ गया है. सरकार को आज के सूचना प्रौद्योगिकी के समय में इस तरह की किसी भी शिकायत को सही लोगों तक पहुँचाने का काम करने के लिए एक वेबसाइट बनानी चाहिए और जिसमें किसी को भी किसी भी तरह के भ्रष्टाचार की शिकायत करने की छूट होनी चाहिए. साथ ही इसमें नाम आदि देने की कोई बाध्यता नहीं होनी चाहिए और किसी भी तरह की शिकायत की निष्पक्ष तरह से जांच करने की तरफ बढ़ना चाहिए.     

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2 टिप्‍पणियां:

  1. कौन करेगा बहिष्कार?
    जनता!
    उस के लिए उसे संगठित होना पड़ेगा।

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  2. भ्रष्ट अधिकारियों का बहिष्कार ? कहने में तो आसान है मगर करने में कितना मुश्किल शायद प्रधानमंत्री जी को इसका अंदाजा नहीं है |

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