संप्रग सरकार ने किसी भी विवाद के बीच भी लोकपाल विधेयक मसौदा तैयार करने की समिति के साथ मिलकर काम करने की आशा जताई है और यह भी कहा है कि समिति के गैर सरकारी सदस्यों पर उठ रही उंगलियों से उसे कुछ लेना देना नहीं है और वह इन सदस्यों के साथ मिलकर पूरे मनोयोग से इसे बनाने में लगी हुई है. सोनिया गाँधी की अध्यक्षता में कांग्रेस कोर ग्रुप की बैठक के बाद सरकार के संकट मोचक प्रणब मुखर्जी ने संवाददाताओं को यह जानकारी दी. जिस तरह से समिति में शामिल शांति भूषण पर आरोप लगाये जा रहे हैं उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि अब सरकार ने अपनी मंशा साफ़ करके यह संदेश देने की कोशिश की है वह भ्रष्टाचार की इस लड़ाई में जनता के साथ है. अच्छा ही है कि अब इस समिति के सदस्यों को लेकर चल रहे विवादों से इसके काम काज पर अधिक असर नहीं पड़ेगा और एक प्रभावशाली और कानूनी रूप से मज़बूत विधायक सामने आएगा.
भ्रष्टाचार के मामले पर देश में किस हद तक राजनीति की जा सकती है इसका उदाहरण हम सभी के सामने है और आज भी इस समिति में शामिल लोगों के शामिल होने और न होने पर विवाद चल रहा है. जैसा कि सभी जानते हैं कि देश की राजनीति में कोई भी बड़ा काम उत्तर प्रदेश से होकर ही जाता है और जब बात यहाँ पहुँच जाये तो दलित की बातें न की जाएँ यह भी संभव नहीं है. लोग किस तरह से गेंद एक दूसरे के पाले में डालने में लगे हुए हैं इसका ताज़ा उदाहरण दिग्विजय सिंह और माया के बीच होने वाली तकरार से मिल जाता है. प्रदेश सरकार के भ्रष्ट होने पर माया यह कहकर अपना पल्ला झाड लेती हैं कि उन्हें यह सब विरासत में मिला है पर ऐसा बयान देते समय उन्हें शायद यह याद नहीं रहता कि प्रदेश की जनता यहाँ बदलाव के लिए ही वोट दिए थे और उनके ४ वर्षों के कार्यकाल को जनता देख चुकी है. अब चुनाव के वर्ष में इस तरह की बातें करने का कोई तुक नहीं है क्योंकि अगर उनके मन में सुधार करने के बारे में होता तो बिहार की तरह वे भी यहाँ से भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ फेंकने का सकल्प तो कर ही सकती थीं . किसी भी अच्छे काम की शुरुवात के लिए ४ साल कहीं से भी कम नहीं होते हैं.
जिस तरह से माया अपनी हर नाकामी को दलित कार्ड के पीछे छिपाने का प्रयास हमेशा ही करती रहती हैं तो वे इस बार कैसे चूक सकती थीं तो उन्होंने इस समिति में एक दलित सदस्य की भी मांग कर डाली . ऐसा कहकर उन्होंने साफ़ तौर पर बाबा साहब अम्बेडकर का अपमान किया है क्योंकि जब वे संविधान सभी की अध्यक्षता कर रहे थे तो वे वहां पर दलित होने का कारण नहीं वरन अपनी क़ाबलियत के कारण थे और आज जिस तरह से माया इस बात को बार बार कहकर आगे बढ़ते दलितों के कदम रोकने की कोशिश करती रहती हैं उनका कोई मतलब नहीं है. आज के समय में बिना किसी आरक्षण के भी दलित वर्ग के लोग अपनी प्रतिभा को दिखा रहे हैं. आवश्यकता दलितों में शिक्षा बढ़ने की है न कि उनको इस बात का एहसास दिलाने की कि वे दलित हैं ? क्या भ्रष्टाचार से निपटने का दलितों का कोई और फार्मूला है ? कल को कोई इसमें जाति और धर्म के आधार पर आरक्षण मांगने लगे तो क्या यह समिति भी केवल दिखावटी नहीं रह जाएगी ? अच्छा हो कि माया समिति में दलित की बातें न करके भ्रष्टाचार पर वार करने का काम करें.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
भ्रष्टाचार के मामले पर देश में किस हद तक राजनीति की जा सकती है इसका उदाहरण हम सभी के सामने है और आज भी इस समिति में शामिल लोगों के शामिल होने और न होने पर विवाद चल रहा है. जैसा कि सभी जानते हैं कि देश की राजनीति में कोई भी बड़ा काम उत्तर प्रदेश से होकर ही जाता है और जब बात यहाँ पहुँच जाये तो दलित की बातें न की जाएँ यह भी संभव नहीं है. लोग किस तरह से गेंद एक दूसरे के पाले में डालने में लगे हुए हैं इसका ताज़ा उदाहरण दिग्विजय सिंह और माया के बीच होने वाली तकरार से मिल जाता है. प्रदेश सरकार के भ्रष्ट होने पर माया यह कहकर अपना पल्ला झाड लेती हैं कि उन्हें यह सब विरासत में मिला है पर ऐसा बयान देते समय उन्हें शायद यह याद नहीं रहता कि प्रदेश की जनता यहाँ बदलाव के लिए ही वोट दिए थे और उनके ४ वर्षों के कार्यकाल को जनता देख चुकी है. अब चुनाव के वर्ष में इस तरह की बातें करने का कोई तुक नहीं है क्योंकि अगर उनके मन में सुधार करने के बारे में होता तो बिहार की तरह वे भी यहाँ से भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ फेंकने का सकल्प तो कर ही सकती थीं . किसी भी अच्छे काम की शुरुवात के लिए ४ साल कहीं से भी कम नहीं होते हैं.
जिस तरह से माया अपनी हर नाकामी को दलित कार्ड के पीछे छिपाने का प्रयास हमेशा ही करती रहती हैं तो वे इस बार कैसे चूक सकती थीं तो उन्होंने इस समिति में एक दलित सदस्य की भी मांग कर डाली . ऐसा कहकर उन्होंने साफ़ तौर पर बाबा साहब अम्बेडकर का अपमान किया है क्योंकि जब वे संविधान सभी की अध्यक्षता कर रहे थे तो वे वहां पर दलित होने का कारण नहीं वरन अपनी क़ाबलियत के कारण थे और आज जिस तरह से माया इस बात को बार बार कहकर आगे बढ़ते दलितों के कदम रोकने की कोशिश करती रहती हैं उनका कोई मतलब नहीं है. आज के समय में बिना किसी आरक्षण के भी दलित वर्ग के लोग अपनी प्रतिभा को दिखा रहे हैं. आवश्यकता दलितों में शिक्षा बढ़ने की है न कि उनको इस बात का एहसास दिलाने की कि वे दलित हैं ? क्या भ्रष्टाचार से निपटने का दलितों का कोई और फार्मूला है ? कल को कोई इसमें जाति और धर्म के आधार पर आरक्षण मांगने लगे तो क्या यह समिति भी केवल दिखावटी नहीं रह जाएगी ? अच्छा हो कि माया समिति में दलित की बातें न करके भ्रष्टाचार पर वार करने का काम करें.
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