मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 26 अप्रैल 2011

आईएसआई आतंकी संगठन

         आख़िरकार अमेरिका ने गुपचुप तरीके से ही यह माना कि पाक की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई भी उसकी नज़रों में आतंकी संगठन से बढ़कर कुछ भी नहीं है. ब्रिटेन के प्रमुख अखबार में इस आशय की छपी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पाक की यह एजेंसी अल कायदा और तालिबान की तरह ही काम करती है और कई मामलों में इसकी संलिप्तता पाई गयी है जहाँ पर यह पश्चिमी देशों और अन्य देशों की आतंक के विरुद्ध लड़ाई में इस्लामी चरमपंथियों का साथ देती रही है. आख़िर अमेरिका को यह बात मानने में क्या समस्या है जबकि वह पाकिस्तान कि हर सच्चाई से वाकिफ़ है ? शायद अमेरिका को एक ऐसा सहयोगी या पिछलग्गू चाहिए जो उसकी अनुदान राशि पाने के बाद किसी भी तरह के सवाल न करे और अपने यहाँ खुलकर काम करने की छूट दे सके और इसके लिए भारतीय उप महाद्वीप में पाक से अच्छा उसे कोई और दिखाई भी नहीं देता है.
      यह बात जो भारत पंजाब में आतंक बढ़ने के समय से कहता चला आ रहा है कि पाक हर तरह की आतंकी गतिविधियों में शामिल रहता है और जब भी कुछ कहा जाता है तो वह अपना पल्ला झाड कर बेशर्मों की तरह खड़ा हो जाता है कि हमारा किसी मसले से कुछ भी लेना देना नहीं है. सारी दुनिया जानती है कि पाक ने ही किस तरह से पंजाब में आग लगायी थी और १९८९ से वह किस तरह से मासूम कश्मीरियों की लाशें बिछाकर वहां पर इस्लामी मुद्दों पर राजनीति करना चाह रहा है ? पाक को इस बात का बिलकुल भी एहसास नहीं है कि भारत ने कश्मीरियों के लिए जो कुछ भी किया है उसका थोड़ा सा भी पाक ने नहीं किया है उसने केवल अपने हितों को साधने के लिए आम कश्मीरी को कभी आतंकी बनाया तो कभी भारतीय बलों के ख़िलाफ़ उकसा कर उन्हें मौत के मुंह में धकेला ?
     अब जब पाक के बारे में इस तरह की आधिकारिक बातें भी सामने आ गयी हैं तो यह देखना दिलचस्प होगा कि अब अमेरिका और पाक इस पूरे मसले की किस तरह से लीपा पोती करते हैं ? आज दोनों को अपनी ग़लतियों को छिपाने के लिए एक दूसरे की ज़रुरत है और अब दोनों ही इस आशय की किसी भी खबर को बेशर्मी से झुठलाते हुए दिखाई देंगें क्योंकि इन बातों को मान लेने से पाक को पैसे और अमेरिका को जी हजूरी करने वाला वाला देश कहाँ से मिलेगा ? अब भी समय है कि अमेरिका वास्तविकता को देखे और समझे क्योंकि आँखें मूँद लेने से स्थिति बदल नहीं जाती है और कभी न कभी आँखें खोलने पर उसका सामना तो करने ही पड़ता है.        
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