देश में टेलीफोन धारकों के लिए अनचाही काल्स से छुटकारा पाने के लिए अभी एक साल और इंतजार करना पड़ सकता है क्योंकि सार्वजनिक क्षेत्र की देश की सबसे बड़ी दूरसंचार कम्पनी भारत संचार निगम के साथ महानगर टेलीफोन ने भी अपने उपकरणों के उन्नयन के लिए १० माह का समय माँगा है. इन कम्पनियों का कहना है कि इस तरह की व्यवस्था लागू करने के लिए जो आवश्यक उपकरण चाहिए होंगें अभी वे उसके पास नहीं है और उन्हें सरकारी नियमों के तहत निविदा मंगा कर खरीदना पड़ेगा और देश भर में फैले ३८००० टेलीफोन एक्सचेंज में इस तरह के आधुनिक उपकरण लगाने ही होगें तभी इनसे आने वाली काल्स की पहचान हो पायेगी. ट्राई के आदेश पर दूर संचार विभाग ने १४० से शुरू होने वाली नयी श्रंखला जारी कर दी है जिससे उपभोक्ताओं के सामने यह विकल्प भी रहे कि वे इस श्रंखला से आने वाली काल्स को उठायें या नहीं. अगर उपभोक्ता न चाहे तो सिर्फ श्रंखला से पहचान कर वह इस तरह की काल्स को अनदेखा कर सकता है.
इस मामले में सवाल यह नहीं है कि आख़िर इतनी देर क्यों लगती है पर सवाल यह है कि जब हमारे यहाँ सूचना तकनीकी का इतना जोर है और आज के समय पूरी दुनिया हमारी प्रतिभाओं का लोहा मान रही हैं तब भी हम आख़िर किस बात का इंतजार करते हैं ? जब कोई नयी तकनीकी सामने आती है तो उसे अपने आप ही लागू करवाने के स्थान अपर इसे नियमों के सरकारी मकड़जाल में आखिर क्यों उलझाने का प्रयास किया जाता है ? जब आज के समय में नित नयी तकनीकि आती जा रही है तो हमारी व्यवस्था आख़िर उसे समय से अपनाने में क्यों पीछे रह जाती है ? देश में व्याप्त भ्रष्टाचार का भी इसमें बहुत बड़ा योगदान होता है और सिर्फ इसी कारण से निविदा प्रक्रिया में जानबूझकर देरी की जाती है और बहुत सारा काम नियम विरुद्ध करने में भी कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाई जाती है. यदि इतने बड़े स्तर पर मचाये जा रहे भ्रष्टाचार पर भी किसी की नज़र नहीं जा रही है तो उसके लिए कौन ज़िम्मेदार है ?
कुछ भी हो भारत संचार निगम और महानगर टेलीफोन की अपनी तकनीकि मजबूरी हो सकती है अब यह सरकार पर है कि वह कितनी जल्दी इस काम को करने में रूचि दिखाती है क्योंकि जब तक इन सार्वजिक क्षेत्र की कंपनियों का नेटवर्क आधुनिक नहीं होगा तब तक आम उपभोक्ता को इससे छूट नहीं मिलेगी. एक तरफ जहाँ निजी कम्पनियाँ यह बदलाव १ हफ्ते में करने की बात कर रही हैं वहीँ सरकारी कम्पनियों को प्रक्रियागत नियमों के कारण इसे करने में १० माह का समय लगने वाला है. ट्राई को चाहिए कि जब तक इन सरकारी निगमों में यह उन्नयन हो रहा हैर तब तक निजी कम्पनियों को यह व्यवस्था लागून करने के लिए आदेश तो जारी ही कर दे जिससे काफी हद तक इस तरह की काल्स से लोगों को छुटकारा मिल जायेगा और साथ ही सरकार को यह निर्देश भी जारी किया जाये कि वह प्राथमिकता के आधार पर निगमों में तेज़ी से उन्नयन का काम कराये.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
इस मामले में सवाल यह नहीं है कि आख़िर इतनी देर क्यों लगती है पर सवाल यह है कि जब हमारे यहाँ सूचना तकनीकी का इतना जोर है और आज के समय पूरी दुनिया हमारी प्रतिभाओं का लोहा मान रही हैं तब भी हम आख़िर किस बात का इंतजार करते हैं ? जब कोई नयी तकनीकी सामने आती है तो उसे अपने आप ही लागू करवाने के स्थान अपर इसे नियमों के सरकारी मकड़जाल में आखिर क्यों उलझाने का प्रयास किया जाता है ? जब आज के समय में नित नयी तकनीकि आती जा रही है तो हमारी व्यवस्था आख़िर उसे समय से अपनाने में क्यों पीछे रह जाती है ? देश में व्याप्त भ्रष्टाचार का भी इसमें बहुत बड़ा योगदान होता है और सिर्फ इसी कारण से निविदा प्रक्रिया में जानबूझकर देरी की जाती है और बहुत सारा काम नियम विरुद्ध करने में भी कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाई जाती है. यदि इतने बड़े स्तर पर मचाये जा रहे भ्रष्टाचार पर भी किसी की नज़र नहीं जा रही है तो उसके लिए कौन ज़िम्मेदार है ?
कुछ भी हो भारत संचार निगम और महानगर टेलीफोन की अपनी तकनीकि मजबूरी हो सकती है अब यह सरकार पर है कि वह कितनी जल्दी इस काम को करने में रूचि दिखाती है क्योंकि जब तक इन सार्वजिक क्षेत्र की कंपनियों का नेटवर्क आधुनिक नहीं होगा तब तक आम उपभोक्ता को इससे छूट नहीं मिलेगी. एक तरफ जहाँ निजी कम्पनियाँ यह बदलाव १ हफ्ते में करने की बात कर रही हैं वहीँ सरकारी कम्पनियों को प्रक्रियागत नियमों के कारण इसे करने में १० माह का समय लगने वाला है. ट्राई को चाहिए कि जब तक इन सरकारी निगमों में यह उन्नयन हो रहा हैर तब तक निजी कम्पनियों को यह व्यवस्था लागून करने के लिए आदेश तो जारी ही कर दे जिससे काफी हद तक इस तरह की काल्स से लोगों को छुटकारा मिल जायेगा और साथ ही सरकार को यह निर्देश भी जारी किया जाये कि वह प्राथमिकता के आधार पर निगमों में तेज़ी से उन्नयन का काम कराये.
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