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रविवार, 8 मई 2011

भूमि अधिग्रहण

ग्रेटर नोयडा में भूमि अधिग्रहण के लिए एक बार फिर से ख़ूनी संघर्ष में कई लोगों की जानें चली गयी हैं अभी तक इस मामले को जिस हलकेपन से लिया जा रहा था यह उसी की परिणिति है. गौतम बुद्ध नगर या नोयडा प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती का गृह जनपद भी है जिस कारण पुलिस / प्रशासन को वहां पर मामले की संवेदन शीलता को समझना चाहिए था पर हर मामले में तानाशाहों जैसा रवैया अपनाने वाली अपनी मुखिया की तरह प्रदेश में सरकारी तंत्र भी उतना ही संवेदनहीन और निरंकुश हो चुका है. कारण चाहे कुछ भी हो आज भूमि की कीमत आसमान को छू रही हैं और ऐसे में सरकार अपनी प्रिय परियोजनाओं के लिए कुछ भी करने के लिए आमादा हो जाती है जिससे इस तरह के मामले पूरे देश में कई बार सामने आ जाते हैं. यह सही है कि जिस भूमि पर अभी तक किसान अपनी आजीविका के लिए काम कर रहे थे वह उनके हाथ से जा रही है और इसका उचित मुआवजा भी नहीं दिया जा रहा है जिससे लोगों में आक्रोश होना स्वाभाविक ही है.
        जिस तरह से भीड़ में से कुछ लोगों ने जिलाधिकारी के नेतृत्व में गए पुलिस बल पर गोलियां चलायीं उसे कहीं से भी उचित नहीं कहा जा सकता है इस तरह का काम करके प्रदर्शनकारियों ने अपने लिए बहुत बड़ी मुसीबत मोल ले ली है क्योंकि अब तिलमिलाया प्रशासन अपनी पर उतर आएगा और वहां के आस पास के गाँवों के लोगों पर कई तरह के झूठे मुक़दमें भी लादे जायेंगें ? किसी भी आन्दोलन को करने से पहले उसके सारे परिणामों पर विचार कर लेना चाहिए क्योंकि जब भीड़ का तंत्र काम करता है तो कुछ भी संभालना आसान नहीं रह जाता है. सबसे पहले इस बात पर विचार करना चाहिए की कहीं से भी आन्दोलन की मूल भावना को चोट न पहुंचे क्योंकि आम जनता किसी भी आन्दोलन को तब तक समर्थन करती है जब तक वह सत्य के मार्ग पर चलता है. हो सकता है कि जिला प्रशासन ने बलपूर्वक बंधक बनाये गए परिवहन निगम के कर्मचारियों को छुड़ाने के लिए आवश्यकता से अधिक बल का प्रयोग किया हो ? हो यह भी सकता है कि इस आन्दोलन को कमज़ोर करने के लिए कुछ ऐसे तत्व भी वहां पर पहुँच गए हों जिनका उद्देश्य ही दूसरा हो ?
      अब देश को भूमि अधिग्रहण करने के लिए स्पष्ट दिशा निर्देश बनाने चाहिए क्योंकि आज यह सब उ० प्र० में हो रहा है तो कल कहीं और भी होगा ? यह सब देश कई बार देख चुका है जिससे विकास की परियोजनाएं तो लटकती ही हैं और साथ ही जनता में भी गलत संदेश जाता है. असली समस्या तो तब आती है जब कुछ स्वार्थी तत्व किसानों को उचित धनराशि का भुगतान करने में आना-कानी करने लगते हैं जिससे लोगों में असंतोष फैलता है. अब भूमि तो utni ही है और इसका उपयोग भी करना है आने वाले समय में अनाज का संकट न हो इसके लिए अँधा धुंध भूमि अधिग्रहण से बचना चाहिए और केवल आर्थिक मामले से जुड़े अधिग्रहण में उस संस्था पर यह दायित्व डाला जाना चाहिए कि वह अपने क्षेत्र में यह सब अच्छे से देखने का प्रयास भी करे. सरकार को इस तरह के आन्दोलन कारियों से narmi से पेश आना चाहिए और इन प्रदर्शन कारियों को भी समझना चाहिए कि इस तरह के संघर्ष में कीमती जाने चली जाती हैं जिनकी किसी भी तरह से भरपाई नहीं की जा सकती है.         
  
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