देश में राजनीति किस तरफ जा रही है वह आजकल के घटनाक्रमों से अच्छी तरह से समझा का सकता है. बाबा रामदेव ने जिस तरह से अड़ कर अपनी सारी बातें सरकार से मनवानी चाहीं- सरकार ने बलपूर्वक उनके अनशन को हटवाया- मुख्य विपक्षी दल भाजपा के मुस्कुराते चेहरों ने इस पर अफ़सोस जताया-राजघाट पर अनशन में ख़ुशी मनाते भाजपाइयों के साथ नाचती हुई वरिष्ठ नेता सुषमा.... फिर इसके बाद शुरू हुई राजनीति की राजनीति ? जिस तरह से केंद्र ने बाबा से निपटा और फिर भाजपा ने अपने लाभ के लिए बाबा का उपयोग किया पर इस सारी राजनीति में एक बार फिर से कहीं न कहीं भारत की आत्मा और गाँधी जी के विचारों को बहुत धक्का लगा. पर केवल वोटों की आग में अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकने वाले राजनैतिक दलों के लिए इससे अच्छा और क्या हो सकता है कि हर एक ने अपने निहित स्वार्थों के चलते आम लोगों के साथ एक बार फिर से गद्दारी की ?
अब अगर इस मुद्दे पर कांग्रेस ने कुछ कहा तो सुषमा की तरफ से यह कहा गया कि जब तक जान है तब तक नाचूंगी. अब समय का फेर यही है कि भ्रष्टाचार का मुद्दा कहीं दूर हो गया है और कोरी ज़बानी बकवास हर दल के द्वारा शुरू कर दी गयी है जिससे केवल भारत का ही नुक्सान होने वाला है. देश के किसी भी राजनैतिक दल को बाबा रामदेव से कोई सहानुभूति नहीं है उसे अगर कुछ है तो केवल अपने वोटों की चिंता जो हर समय उन्हें ऐसी हरकतें करने के लिए उकसाती रहती हैं और उनके अन्दर का घिनौना राजनैतिक कीड़ा हमेशा ही इसका लाभ उठाने की कोशिश करता रहता है ? देश की चिंता में जब भ्रष्टाचार का मुद्दा कहीं पीछे छूट गया है तो अब कहीं न कहीं बाबा रामदेव को भी यही लगने लगा है कि सभी अपने हितों के लिए उनके साथ या विरोध में खड़े हैं ? शायद इसीलिए उन्होंने दोबारा संतों के गुण को धारण करते हुए केद्र सरकार को क्षमा कर दिया है ?
अब भी समय है कि इस तरह के सामाजिक कामों में लगे हुए लोगों को यह समझना चाहिए कि कोई भी राजनैतिक दल केवल समर्थन की बात ही क्यों करता रहता है ? भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सभी राजनैतिक दल एक जैसे हैं कर्नाटक में भाजपा में रेड्डी बंधुओं को लेकर कितने मतभेद क्यों और किसलिए हैं ? देश के हर हिस्से में भ्रष्टाचार ने अपने घटिया रूप दिखा रखा है. बाबा और भ्रष्टाचार का मुद्दा कहीं पीछे छूट गया है और अब राजनैतिक दल केवल एक दूसरे पर कीचड़ उछालने में लगे हुए हैं. गांधीजी की आत्मा भी इस बात पर रो रही होगी कि किस तरह से उनके सत्याग्रह के नाम पर इकट्ठे हुए लोग कितने नीचे गिर सकते हैं. देश के वरिष्ठ गांधीवादियों ने भी खुली ज़बान से सुषमा के नाच को गांधीजी की समाधि पर किया गया अक्षम्य अपराध करार दिया है. इसके बाद भी सुषमा का यह कहना कि वे जान रहने तक नाचेंगी यही बताता है कि हमारे राजनेता किस तरह से नूरा कुश्ती करने में माहिर हैं और देश के मुख्य मुद्दे से वे कभी भी जनता को भटकाने की महारत रखते हैं....
शायद जब तक चरम पतन न हो, उत्थान शुरु नहीं हो सकता? वैसे तो लगता है अधिकांश राजनीतिज्ञ नैतिक पतन की सब सीमाएँ पार कर चुके, लेकिन सामान्य जन मानव में अब भी इतना धैर्य है कि वह उनकी बातें सुनता है और उस विश्वास करता रहता है!
जवाब देंहटाएंइस देश का दुर्भाग्य देखिये - अब टी.वी. पर अन्ना और रामदेव की बजाय नेता छाए हुए हैं. नेताओं के हाथ जैसे लौटरी लग गई हो. तरह तरह के मुद्दों को उछाला जा रहा है. मुख्य मुद्दा तो कहीं छिप गया है.
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