समय के साथ किस तरह से घाव भरने लगते हैं इसका ताज़ा उदाहरण भारत-पाक के बीच इस्लामाबाद में चल रही विदेश सचिव स्तर की बात चीत से समझा जा सकता है. अभी कुछ समय पहले तक पाक से किसी भी तरह की बात चीत का विरोध करने वाले भारत ने थिम्पू बैठक के बाद से ही लगातार मिलने के बारे में जो संकल्प लिया था वह अब शुरू हो चुका है. ऐसा नहीं है कि दक्षिण एशिया में भारत अपनी ज़िम्मेदारी नहीं समझता है पर आज के समय में अधिक महत्वपूर्ण यह है कि पाक कब अपनी जिम्मेदारियों का एहसास करेगा ? अभी तक जिस तरह से पाक लगातार भारत विरोधी आतंकियों को हर तरह की सहायता करने पर लगा हुआ है उसके बाद इस तरह की बातचीत की फ़र्ज़ी कवायद से किसी को क्या हासिल होने वाला है ? हाँ इतना अवश्य हो सकता है कि भारत की जो नीति अभी तक रही है कि वह हर विवाद को शान्ति के साथ निपटाता रहा है उसका एक बार फिर से अनुमोदन हो जायेगा. पर पाक क्या अपने झूठे अहम् को छोड़ पायेगा ?
ऐसा नहीं है कि भारत के लोगों में २६/११ को लेकर उठा उबाल कम हो गया है पर इस तरह की बातचीत का कोई मतलब नहीं है क्योंकि पाक अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आने वाला है अगर किसी भी तरह से इन बैठकों से कुछ सार्थक निकलने की गुंजाईश होगी तो पाक में बैठे कट्टर पंथी भारत में कहीं पर बड़ा हमला करके इस पूरी प्रक्रिया को आगे बढ़ने ही नहीं देंगें ? आज पाक को यह समझने की ज़रुरत है कि अभी तक वह जिस तरह से गैर-ज़िम्मेदाराना हरकतें करता रहा है अब उनको भारत किसी भी तरह से बर्दाश्त करने की स्थिति में नहीं है. आज भारत में आतंक से जुड़ी घटनाओं में कमी का एक बड़ा कारण यह भी हो सकता है कि कहीं न कहीं से पाक को भी यह लगने लगा है कि भारत से किसी भी तरह की बातचीत को रोकने के लिए ही इसको प्रयोग में लाया जाये ? क्योंकि आज भी पाक में ऐसे लोग बड़ी संख्या में हैं जो भुट्टो की मसिकता से आगे नहीं बढ़ पाए हैं वे केवल भारत के विरोध के दम पर ही जिंदा हैं.
भारत को पाक को यह स्पष्ट रूप से समझा देना चाहिए कि आने वाले समय में केवल बात करने से ही यह मसले सुलझने वाले नहीं हैं और इनके लिए सभी को मिलकर प्रयास करने ही होंगें. केवल वार्ता की मेज़ पर बैठकर फोटो खिंचवाने और खुश होने से कुछ भी नहीं मिलने वाला है. पाक को यह वास्तविकता स्वीकार करनी ही होगी कि भारत के बराबर खड़े होने की अभी उसकी सोच ही विकसित नहीं हुई है जब वह केवल पूरे विश्व में नकारात्मक ऊर्जा फ़ैलाने में लगा हुआ है तो वह खुद उसकी आंच से कैसे बच सकता है. भारत से पाक की तभी कुछ सार्थक बात हो सकती है जब वह अपने यहाँ पर अड्डा जमाये आतंकियों को यह ठीक से समझा दे कि भारत में हमला करने से उनको पाक छोड़ने के लिए भी कहा जा सकता है ? पर पाक ने जिन लोगों को खुद ही पैदा किया है क्या वह केवल शांति की ख़ातिर उन पर लगाम लगाना चाहेगा ? इन्हीं आतंकियों के भय दिखाकर वह अमेरिका से जो पैसे सहायता के रूप में ऐंठता है उसका क्या होगा ? फिर भी भारत के अधिकारियों के लिए इस्लामाबाद और पाक के समकक्षों के लिए भारत घूमने के लिए बात चीत का यह बहाना बड़ा अच्छा है....
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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