मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 11 जुलाई 2011

रेल हादसों से सबक

एक ही दिन में हुए दो रेल हादसों के बाद अब सरकार पर इस बात को लेकर दबाव बढ़ता ही जा रहा है कि वह जल्दी से किसी को पूर्ण कालिक रेल मंत्री के रूप में शपथ दिलाये. अभी तक ममता दी के बंगाल की मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही रेल मंत्रालय की ज़िम्मेदारी उनकी पार्टी के ही मुकुल राय द्वारा संभाली जा रही है और इसके चलते रेलवे फिलहाल प्रधानमंत्री के पास ही है. अब संभावित मंत्रिमंडल के फेरबदल में इस बात पर अटकलें लगनी शुरू हो चुकी हैं कि अब आख़िर किसे यह मंत्रालय दिया जायेगा. अभी तक ममता दी की ज़िद के चलते ही मनमोहन सिंह ने यह मंत्रालय रेल राज्य मंत्री के स्तर पर चलाने का फैसला लिया हुआ था पर जब इन हादसों के समय रेल राज्य मंत्री के सामने आने की बारी थी तो वे अपने कर्त्तव्य का निर्वहन ठीक से नहीं कर सके जिसके चलते विपक्ष को सरकार पर हमला करने का एक और अवसर मिल ही गया.
      देश में विशाल रेल नेटवर्क को देखते हुए तो कम से कम ५ रेल राज्य मंत्री होने ही चहिये क्योंकि जब तक काम काज का सही ढंग से बंटवारा नहीं किया जायेगा कोई भी अपनी ज़िम्मेदारी समझ कर ठीक ढंग से काम नहीं कर पायेगा. रेल को चलाने के लिए जितने परिश्रम की आवश्यकता होती है और उसकी देखभाल करने के लिए जो कुछ भी किया जाना चाहिए उसमें कोई कोताही नहीं होनी चाहिए क्योंकि जब तक रेल के पास काम करने की एक परंपरा विकसित नहीं होती है तब तक उसका सुचारू ढंग से काम कर पाना बहुत ही मुश्किल है. यह सही है कि पहले के मुकाबले अब रेल दुर्घटनाओं में कमी आई है पर कहीं से भी ऐसा नहीं लगता है कि आने वाले समय में दुर्घटनाओं को पूरी तरह से रोका जा सकेगा ? जिस तरह से राजनैतिक कारणों से अभी तक रेलवे ने कई वर्षों से किराये में बढ़ोत्तरी नहीं की है रेलवे के अच्छे सञ्चालन में वह भी बहुत बड़ी बाधा है. आज ईंधन के दाम कहाँ से कहाँ पहुँच गए हैं फिर भी रेल उसी पुराने किराये पर ही चल रही है ?
     किसी भी तंत्र को चलाने के लिए जिस तरह से काम करने वाले हाथों की आवश्यकता होती है ठीक उसी तरह से उसे संसाधनों की भी ज़रुरत होती है पर आज के समय में रेलवे के पास अपने खर्चे चलाने के लिए ही पैसों की कमी पड़ रही है ऐसे में लोक लुभावन नीतियों को छोड़कर अविलम्ब किराये में बढ़ोत्तरी की जानी चाहिए जिससे रलवे अपनी सेहत को खुद ही दुरुस्त रख सके. दुर्घटनाओं को पूरी तरह से रोका तो नहीं जा सकता है पर कुछ विशेष प्रयास करके इनकी तीव्रता को कम तो किया ही जा सकता है. परिचालन से सम्बंधित हर खर्च को पूरी तरह से गुणवत्ता के साथ किये जाने की आवश्यकता है. कालका मेल की दुर्घटना के पीछे क्या कारण रहे यह तो समय ही बताएगा पर आने वाले समय में इस तरह की घटनाएँ कम की जा सकें इस बारे में रेलवे को अभी से ही प्रयास  शुरू करने होंगें.      
 
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