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मंगलवार, 12 जुलाई 2011

मंत्रिमंडल में फेर बदल

काफ़ी दिनों से एक के बाद एक मंत्री के विभिन्न कारणों से इस्तीफ़ा देने के बाद अब मनमोहन मंत्रिमंडल में व्यापक फेरबदल की आशा जताई जा रही है. अभी तक राजा, मारन समेत कई मंत्रियों ने त्यागपत्र दिया है जबकि ममता के बंगाल में मुख्यमंत्री पद सँभालने के बाद से खाली पड़े रेल मंत्रालय को भी एक अदद मंत्री की तलाश है. यह सही है कि बहुत दिनों के बाद मनमोहन सिंह एक ऐसे प्रधानमंत्री के रूप में सामने आये हैं जो अनावश्यक रूप से मंत्रियों के काम काज में किसी भी तरह के दख़ल के सख्त ख़िलाफ़ रहते हैं और उनका मानना है कि आम तौर के सरकारी काम में हर बात में हस्तक्षेप से काम करने की क्षमता पर असर पड़ता है और शायद यही एक बड़ा कारण भी रहा जिसने कई मंत्रियों को मनमानी करने की पूरी छूट दे दी. अब यह सहयोगी मंत्रियों पर था कि उन्हें मिले इस अवसर को वे किस तरह से उपयोग में लाते हैं पर अफ़सोस कि कुछ लोगों ने पाने पद और मिली हुई स्वतंत्रता के साथ न्याय नहीं किया.
       कई बार राजनैतिक दबाव या फिर किसी व्यक्ति की राजनीतिक स्वीकार्यता के चलते कुछ लोगों को मंत्री बनाना ही पड़ता है भले ही वे अपने पद के साथ न्याय कर पायें या नहीं पर कहीं न कहीं से इससे सरकार के काम पर तो असर पड़ता ही है. सरकार का हर मंत्री जब पूरे मनोयोग से काम करता है तो उसकी छवि बेहतर हो सकती है पर जब अधिकांश लोग केवल मंत्री पद को एक शोभा की वस्तु मानकर ही खुश होते हैं तो वे देश और अपने पद के साथ क्या न्याय कर पायेंगें ? जो लोग बेहतर काम करने के इच्छुक हों केवल उन्हें ही इस तरह से आगे लाना चाहिए क्योंकि जब मंत्री अकर्मण्य ही होंगें तो वे सरकार की नीतियों के अनुपालन में कहाँ तक सफल हो पायेंगें ? ऐसा नहीं है कि देश में अच्छे लोगों की कोई कमी है पर आज के समय में जिस तरह की राजनैतिक धारा चल रही है उसमें बहुत अच्छे लोग समाज से निकल कर राजनीति में आना ही नहीं चाहते देश हित में राजनेताओं की बनी गन्दी छवि को तोड़ना ही होगा जिससे अच्छे लोग भी आगे आकर अपनी कश्मता से देश को आगे बढ़ने का काम कर सकें. 
     बेशक संविधान हर प्रधानमंत्री को यह अधिकार देता है कि वह किसी को भी मंत्री बना सकें पर देश में चल रही गठबंधन की राजनीति ने पिछले कई दशकों से प्रधानमंत्री के पास से यह अधिकार जाता रहा है कि वे अपने मनपसंद लोगों को अपने हिसाब से जगह दे सकें क्योंकि अब सहयोगी दल अपनी संख्या के हिसाब से मंत्रालय की मांग करने लगे हैं. इस तरह से जहाँ एक तरफ सरकार के काम पर दबाव बनता है वहीं काम करने वाले लोग कहीं पीछे छूट जाते हैं. मनमोहन सिंह बहुत सख्त कदम उठा सकते हैं पर जब गठबंधन के कारण उनके हाथ बांध जाते है तो इससे सरकार का कम पर देश का अधिक नुकसान होता है और यह बात किसी भी प्रधानमंत्री पर लागू होती है. आज आवश्यकता है कि सभी सहयोगी दलों को यह बात समझा दी जाये और उनको ऐसे किसी भी दबाव को बनाए से रोका भी जाये तभी किसी फेरबदल का असली असर दिखाई देना शुरू होगा..... 
 
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