उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य विभाग में चल रहे करोड़ों के खेल में लगता है कि अब माल खाने वाले लोगों के लिए बुरे दिन आने वाले हैं क्योंकि जेल में बंद किसी भी व्यक्ति की हत्या के बाद जो न्यायिक जांच की जाती है उसकी रिपोर्ट में यह निष्कर्ष निकाला जा चुका है कि डॉ० सचान ने आत्म हत्या नहीं की है बल्कि उनकी हत्या की गयी है. इस बेहद चर्चित मामले में जिस तरह से अब उत्तर प्रदेश सरकार को हर तरफ़ से निराशा मिल रही है उससे यही लगता है कि आने वाले दिनों में शायद कुछ ठोस बात सामने आ पाए. अभी तक इस हत्या की जिस तरह से लखनऊ पुलिस ने रिपोर्ट लिखी वह भी कोर्ट को नागवार गुज़री है और इसके लिए कोर्ट की तरफ़ से पुलिस को कड़ी फटकार भी लगायी जा चुकी है. जिस तरह से प्रदेश सरकार उच्च स्तरीय जांच से इनकार करती आ रही है उससे यही लगता है कि वह पूरे मसले पर पर्दा डालना चाहती है जबकि हो सकता है कि सरकार की ऐसी मंशा न हो और केंद्र से तल्ख़ रिश्तों के चलते वह उस पर भरोसा नहीं करना चाहती है. इस बात का सबूत बहस के दौरान भी दिखा जब प्रदेश सरकार की दलील थी कि सीबीआई स्वतंत्र जांच एजेंसी नहीं है.
आज के समय में कुछ ऐसा होता चल जा रहा है कि देश के हर तंत्र का राजनातिक दुरूपयोग इस हद तक बढ़ गया है कि केंद्र और राज्य के बीच इस तरह की खींचा तानी बहुत आम हो गयी है. जहाँ हर तरह के मामलों में विपक्ष निष्पक्ष जांच की मांग करता है वहीं सरकारें अपने हितों को देखते हुए अपनी एजेंसियों से ही लीपा पोती कराने में जुटी रहती हैं ? देश के लिए मज़बूत तंत्र का होना आवश्यक है पर इन राजनेताओं के निहित स्वार्थों ने केंद्रीय और राज्य की जांच एजेंसियों को पंगु बना दिया है और जब यही दल सत्ता के नशे में होते हैं तो इन्हें सब ठीक लगता है क्योंकि तब ये दबाव बनाकर कुछ तलवे चाटने वाले अधिकारियों के माध्यम से अपने हितों को साधते रहते हैं और जब यही विपक्ष में बैठते हैं तो इन्हें घोर अन्धकार और भ्रष्टाचार दिखाई देने लगता है ? कहीं ऐसा तो नहीं कि सदनों में केवल विपक्षी बेंचों पर बैठकर ही आँखे खुली रहती हैं और सत्ता में होने पर उसकी खुमारी उतरती ही नहीं है ? देश को अब इस तरह के दो चश्मे पहन कर नहीं चलाया जा सकता है क्योंकि नियम हर समय एक जैसे होने चाहिए और कहीं न कहीं से सरकारों की इस तरह की मनमानी के ख़िलाफ़ ठोस कार्यवाही होनी ही चाहिए.
बात यहाँ पर एक हत्या की नहीं है और न ही किसी एक मामले की पर जब इस तरह से देश के पूरे जांच तंत्र को सरकारों के हाथ गिरवी रखने की परंपरा बन जाएगी तो किसी भी मामले में कैसे पूरी तरह से न्याय किया जा सकेगा ? अभी तक जो कुछ भी हो रहा है उससे देश की जनता पूरी तरह से खिन्न है और अब भी समय है कि ये राजनेता चेत जाएँ क्योंकि अपनी सरकारें चलाने और बचाने तक तो सब ठीक है पर नियमविरुद्ध जाकर आख़िर कब तक सब कुछ ग़लत ही किया जाता रहेगा और सरकारें उलटी सीधी दलीलें देकर आने को बचाने का प्रयास करती दिखाई देती रहेंगीं ? बात यहाँ एक डॉ सचान की हत्या की नहीं है वरन उस मानसिकता के बढ़ने की है जो भ्रष्टाचार के दलदल में पूरे देश के हर तंत्र को धकेलने में लगा हुआ है ? अगर स्वास्थ्य विभाग में इतना पैसा नहीं आता तो क्या ६ महीनों के अन्दर सरकार की नाक के नीचे २ आला अधिकारियों की हत्या इतनी आसानी से की जाती ? ग़लती चाहे जिसकी हो पर इस पूरे मसले में एक बार फिर से देश की आम जनता हार रही है और अगर नुक्सान हो रहा है तो केवल देश के संसाधनों का हो रहा है तभी तो ग़लती करके बेशर्मी से अपनी बात रखने वाले लोग आज आराम से घूम रहे हैं.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें