लगता है कि निजी दूरसंचार सेवा प्रदाताओं ने सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनी को कुछ नीतियों की ओट में पूरी तरह से ख़त्म करने की मंशा पाल रखी है और इस पूरी प्रक्रिया में नियम भी इसके विपरीत होते जा रहे हैं इसी क्रम में सबसे ताज़ा घटना क्रम से यह बात समझी जा सकती है कि कहीं न कहीं से निजी सेवा प्रदाताओं के मन में भारत संचार का डर घुसा हुआ है तभी वे कुछ नियमों का वास्ता देकर अपने मन की बात मनवा लेते हैं क्योंकि संचार निगम की पैरवी करने के लिए सरकार में किसी के पास समय नहीं है जिससे इस भारी भरकम उपक्रम को रोज़ ही करोड़ों रूपये का चूना लगाया जा रहा है. जून माह में ही संचार निगम ने पूरे देश में ११ और १२ रु० के एसटीवी निकले थे जिनके माध्यम से कोई भी उपभोक्ता रोमिंग के दौरान १५ दिनों के लिए फ्री इनकमिंग कॉल की सुविधा उठा सकता था पर निगम की यह सुविधा निजी सेवा प्रदाताओं को रास नहीं आई जिसके बाद उन्होंने ट्राई में इस बात की शिकायत कर दी और ४४ वें संशोधन की दुहाई देते हुए यह सेवा बंद करने के लिए दबाव बनाया जिससे २० जुलाई को संचार निगम यह सेवा बंद करने को मजबूर हुआ.
यह नियम की बात नहीं पर देश के आम मोबाइल उपभोक्ताओं से जुड़ी बात है जिसके लिए निजी सेवा प्रदाता हमेशा ही पीछे की तरफ कदम खींचते रहते हैं ? आज जब कॉल दरें इतनी कम हो चुकी हैं तो किसी भी तरह की रोमिंग का कोई मतलब ही नहीं होना चाहिए और जो उपभोक्ता रोज़ ही रोमिंग के क्षेत्र में रहते हैं उन सभी के पास दो सिम वाले मोबाइल होते हैं जिनका उपयोग वे अपने काम में सुविधानुसार करते रहते हैं. अगर ये उपभोक्ता वास्तव में एक सिम से ही काम चला सकें तो रोज़ ही स्पेक्ट्रम का रोना रोने वाली निजी कम्पनियों को अपने इस तरह के दोहरे उपभोक्ताओं से राहत भी मिल जाएगी और संसाधन का बेहतर उपयोग भी हो सकेगा. आज जिन नियमों की दुहाई देकर निगम की ये सेवा बाद करायी गयी है उसी तरह से ट्राई के न जाने कितने आदेश धूल फांक रहे हैं पर उनसे आम उपभोक्ताओं को असुविधा होती है पर इससे किसी को क्या ? देश में हर काम अपनी तरह से करने की मंशा ही नियमों को चलने नहीं देती है जिस तरह से ट्राई ने इस एसटीवी को वापस करवाने में तेज़ी दिखाई वैसे ही कभी उपभक्ताओं को लगाये जा रहे करोड़ों रुपयों के चूने पर नहीं दिखायी देती है ? आम उपभोक्ता ट्राई तक पहुँच कर शिकायत नहीं कर सकता है तो उसके हितों का ध्यान कौन रखेगा ? नंबर पोर्टिबिलिटी पर निजी सेवा प्रदाता किसी भी तरह से किसी भी उपभोक्ता को छोड़ने पर राज़ी नहीं हैं पर ट्राई ने कोई आंकड़ा जुटाने की कोशिश की की वास्तव में जो अपने सेवा प्रदाता को बदलना चाहते थे उनको वह सुविधा उनके पुराने सेवा प्रदाता ने दी भी और उपभोक्ता उससे संतुष्ट है भी या नहीं ?
यह संचार निगम को ख़त्म करने की एक बहुत बड़ी साज़िश है और इस मसले पर केवल संचार मंत्री ही नहीं वरन मंत्रियों के समूह की बैठक होनी चाहिए क्योंकि एक चलते हुए लाभ वाले सरकारी निगम को धीमा ज़हर देकर मारने का प्रयास किया जा रहा है तो ऐसे में सरकार इसके कर्मचारियों के भविष्य के लिए कब सोचेगी ? इस पूरे मामले में अब प्रधानमंत्री का हस्तक्षेप आवश्यक हो गया है. अगर ट्राई में इस तरह का कोई बेकार का संशोधन है भी तो संचार मंत्रालय को उसे ख़त्म करवाने के लिए तुरंत ही प्रयास करना चाहिए और इस तरह से संचार निगम को लावारिस हालत में नहीं छोड़ा जाना चाहिए. २ जी घोटाले में किस तरह से अभी भी मामले में रोज़ नए खुलासे हो रहे हैं फिर भी अभी तक सरकार ने मंत्रालय और निगम के स्तर से ट्राई को कुछ भी करने के लिए छोड़ रखा है. अब ट्राई का यह रोना भी नहीं चलने वाला है क्योंकि वह किस हद तक उपभोक्ताओं की मदद करता है यह तो २ जी मामले में तत्कालीन ट्राई अध्यक्ष के भी तिहाड़ में होने से पता चल ही जाता है इसलिए अब नियमों को किसी की सुविधा के अनुसार बनाये जाने की आवश्यकता नहीं है बल्कि देश को अब नागरिकों और उपभोक्ताओं के लिए कानून बनाने की ज़रुरत है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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