एक ऐसी रिपोर्ट जो देश के लिए जान देने वालों की दुर्दशा के बारे में सब कुछ बयान करती है पढ़कर वास्तव में सर शर्म से झुक जाता है. नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में जिस तरह से विषम परिस्थितयों में जवान अपनी जान की परवाह किये बिना ही देश की सेवा में जुटे रहते हैं उनके लिए अत्याधुनिक हथियारों और वाहनों की मांग की गयी है ? देश के कर्णधारों को शायद यह पता ही नहीं है कि दिल्ली में बैठकर बड़ी बड़ी बातें करने और ज़मीनी हकीकत में बहुत बड़ा अंतर होता है तभी वे इन जवानों के बारे में कुछ भी सोच नहीं पाते हैं. आज जिस तरह से देश में नक्सलियों का ख़तरा बढ़ता ही जा रहा है उसके बाद भी अगर इन सुरक्षा बलों के मुख्यालयों से इस तरह की मांग सरकार से करनी पड़े तो इसे क्या कहा जाए ? जबकि सरकार की यह ज़िम्मेदारी बनती है कि वह बिना कहे इन बलों कि हर ज़रूरतों को पूरा करने में कोई कसर न छोड़े ?
जब सरकार को भी यह बात पता है कि देश के दूर दराज़ के क्षेत्रों में किस तरह से इन जवानों को रोज़ ही कितनी ही समस्याओं से जूझना पड़ता है फिर भी सरकारी मशीनरी की संवेदन हीनता इस हद तक बढ़ी हुई है कि वे उन्हें ज़रुरत भर आधुनिक हथियार तक नहीं दिलवा पाते हैं और कोई चूक होने पर हमेशा ही इन बालों को दोषी ठहराने से भी नहीं चूकते हैं ? आखिर कौन सा बल बिना आधुनिक हथियारों के इन नक्सलियों से सुगमता से लड़ सकता है ? आज सरकारों के पास केवल बातें करने का काम ही रह गया है जिससे मंत्री और बाबू लोग रोज़ ही नयी बातें बताते रहते हैं पर सुरक्षा से जुड़े मामलों में कुछ भी जल्दी से नहीं किया जाता है ? हर बार रोना रोया जाता है और लाखों कोशिशों के बाद भी बाद में यह पता चलता है कि इस सौदे में भी किसी ने दलाली खा ली है ? इसे देश का दुर्भाग्य न कहा जाये तो और क्या कहा जाये ? वैसे मनमोहन सरकार ने देश की सुरक्षा के बारे में कुछ प्रयास किये हैं पर इस तरह की बातों में कोई बाधा नहीं होनी चाहिए और सेना और बलों को हर सामान जल्दी से जल्दी मिलना चाहिए.
क्या कभी ऐसा हुआ है कि सांसदों और मंत्रियों के वेतन भत्ते बढ़ाने के बारे में कोई विलम्ब होता है ? क्या इनकी रेल यात्रा और हवाई यात्रा में कुछ सोचा जाता है ? नहीं क्योंकि ये जनता के प्रतिनिधि हैं पर जो लोग इनकी और देश की जनता की सुरक्षा में लगे हुए हैं उनके लिए किसी भी सुविधा की बात करने के लिए सैकड़ों कानूनों की बातें सामने आने लगती है ? हर बार हथियारों की खरीद में अनावश्यक विलम्ब किया जाता है और कुछ अनपढ़ सांसदों के लिए भी लैपटॉप जैसी सुविधा बिना मांगे ही मुहैया करा दी जाती है ? आख़िर क्यों देश के पास एक हथियारों को खरीदने के लिए एक समुचित व्यवस्था नहीं है ? बात चाहे सेना के लिए हो या फिर अन्य बलों के लिए हर बार अनावश्यक पेंच फंसाकर खरीद को रोकने की कोशिशें होती रहती हैं ? चाहे किसी भी तरह के हथियारों की खरीद करनी हो अब इसके लिए सेना अर्ध सैनिक बलों के विशेषज्ञ और संसद की सुरक्षा मामलों की समिति के अध्यक्ष या सदस्य को लेकर एक स्थायी समिति होनी चाहिए जो देश की सुरक्षा ज़रूरतों के हिसाब से खरीदे जा सकने वाले हथियारों के बारे में पूरी तैयारी करके रखे और ज़रुरत पड़ने पर वे ही हथियार तुरंत खरीदे जाएँ. देश की सुरक्षा के मामलों में अब इस तरह की कोताही बर्दाश्त नहीं की जा सकती है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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