देश में भ्रष्टाचार एक तरह से संस्था का रूप लेता जा रहा है क्योंकि जिस तरह से नेता लोग एक दूसरे पर कीचड़ उछालने के साथ ही खुद को पाक साफ़ बताने से नहीं चूकते हैं फिर भी समय आने पर सभी एक जैसे ही दिखाई देते हैं ? ताज़ा घटनाक्रम में कर्नाटक भाजपा में चल रहा घमासान इस स्थायी भाव का एक नया रूप है भ्रष्टाचार अपनी जगह है बस इस बार केवल नाम ही बदल गए हैं. यह बिलकुल उस तरह से है जैसे कोई बहुत प्रभावी नाटक वर्षों तक मंचित किया जाता रहता है और उसके बाद भी उसके बारे में दिलचस्पी कम नहीं होती है हाँ ऐसा अवश्य होता है कि समय के साथ उसके पात्र को निभाने वाले लोग बदलते जाते हैं.
२ जी और राष्ट्रमंडल खेल घोटाले में कांग्रेस को कल तक घेर रही भाजपा आज अपने को बचाने में ही लगी हुई है कल तक दक्षिण में कमल खिलने वाले येदुरप्पा आज खलनायक बन चुके हैं. इसे देश का दुर्भाग्य न कहा जाए तो और क्या कहा जाए ? क्योंकि यदि भाजपा पर ऐसे दाग़ न लगे होते तो वह संसद में अपनी बात को मुखरता से उठा सकती थी और एक सच्चे और तेज़ विपक्ष कि भूमिका भी निभा सकती थी पर सत्ता का घुन सभी को लगता है और कोई भी इससे बच नहीं सकता है. अब जब देश की दो मुख्य पार्टियाँ ही इस तरह के घपले में फँसी हुई लगती हैं तो संसद में क्या होने वाला है यह आसानी से समझा जा सकता है ? जब देश को इस बात की आवश्यकता थी कि वह विभिन्न घोटालों के बारे में जाने तो नए घोटालों ने भाजपा की भी बोलती बंद कर दी है. भ्रष्टाचार की काली कोठरी अब सभी को काले रंग में रंगने में लगी हुई है.
बात यहाँ पर किसी पार्टी की नहीं है बल्कि सिद्धांतों की है क्योंकि देश और पार्टी सिद्धांतों से चला करती हैं और बिना इनके आख़िर किस तरह से पूरे सामजिक और राजनीतिक तंत्र की परिकल्पना पूरी की जा सकती है ? पर लगता है कि देश में जनता को भूलने की बहुत बड़ी बीमारी है और चुनावों के बढ़ते हुए खर्चों ने हर पार्टी को अपने सिद्धांतों से समझौता करने पर मजबूर कर दिया है. अब हो सकता है कि किसी के समझौते छिपे ही रहते हों और कुछ ऐसे भी रहते हैं जिनको सर मुंडाते ही ओलों का सामना करना पड़ता है. अब सभी को कानून से अधिक इस बात पर ध्यान देना होगा कि कहीं से भी किसी भी तरह से कोई भ्रष्टाचार विधान सभा और लोकसभा का मुंह न देखने पाए और यह बात केवल जनता के हाथ में है.... जागो भारत जागो....
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
२ जी और राष्ट्रमंडल खेल घोटाले में कांग्रेस को कल तक घेर रही भाजपा आज अपने को बचाने में ही लगी हुई है कल तक दक्षिण में कमल खिलने वाले येदुरप्पा आज खलनायक बन चुके हैं. इसे देश का दुर्भाग्य न कहा जाए तो और क्या कहा जाए ? क्योंकि यदि भाजपा पर ऐसे दाग़ न लगे होते तो वह संसद में अपनी बात को मुखरता से उठा सकती थी और एक सच्चे और तेज़ विपक्ष कि भूमिका भी निभा सकती थी पर सत्ता का घुन सभी को लगता है और कोई भी इससे बच नहीं सकता है. अब जब देश की दो मुख्य पार्टियाँ ही इस तरह के घपले में फँसी हुई लगती हैं तो संसद में क्या होने वाला है यह आसानी से समझा जा सकता है ? जब देश को इस बात की आवश्यकता थी कि वह विभिन्न घोटालों के बारे में जाने तो नए घोटालों ने भाजपा की भी बोलती बंद कर दी है. भ्रष्टाचार की काली कोठरी अब सभी को काले रंग में रंगने में लगी हुई है.
बात यहाँ पर किसी पार्टी की नहीं है बल्कि सिद्धांतों की है क्योंकि देश और पार्टी सिद्धांतों से चला करती हैं और बिना इनके आख़िर किस तरह से पूरे सामजिक और राजनीतिक तंत्र की परिकल्पना पूरी की जा सकती है ? पर लगता है कि देश में जनता को भूलने की बहुत बड़ी बीमारी है और चुनावों के बढ़ते हुए खर्चों ने हर पार्टी को अपने सिद्धांतों से समझौता करने पर मजबूर कर दिया है. अब हो सकता है कि किसी के समझौते छिपे ही रहते हों और कुछ ऐसे भी रहते हैं जिनको सर मुंडाते ही ओलों का सामना करना पड़ता है. अब सभी को कानून से अधिक इस बात पर ध्यान देना होगा कि कहीं से भी किसी भी तरह से कोई भ्रष्टाचार विधान सभा और लोकसभा का मुंह न देखने पाए और यह बात केवल जनता के हाथ में है.... जागो भारत जागो....
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
"भ्रष्टाचार एक स्थायी भाव... जो संचारी भाव बन कर देश की रग रग में फैलता ही चला जा रहा है "
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