मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 29 जुलाई 2011

यू० पी० और पुलिस फिटनेस

     वैसे तो भ्रष्टाचार के लिए पूरे देश की पुलिस ही बुरी तरह से बदनाम है पर इस मामले में उत्तर प्रदेश की पुलिस हर मामले में कानून से बहुत दूर ही रहती आई है. आजकल पूरे प्रदेश में उप निरीक्षकों की प्रोन्नति के लिए विभागीय परीक्षा में उत्तीर्ण सिपाहियों की शारीरिक क्षमता का आंकलन किया जा रहा है जिस कारण अभी तक २ सिपाहियों की मृत्यु हो चुकी है और लगभग ७० के करीब सिपाही बीमार पड़ जाने के कारण अस्पताल में भर्ती हो चुके हैं. देश की सबसे बड़ी आबादी को सँभालने वाला प्रदेश जो आजकल आतंकी गतिविधियों और संवेदन शील स्थलों के कारण हमेशा से अधिक सुरक्षा चाहता है वहां उप निरीक्षक स्तर के ही ५००० से अधिक पद खाली पड़े हैं. प्रदेश में पिछले कुछ दशकों से पुलिस विभाग में किस तरह से काम हो रहा है यह इस बात की बानगी भर है हर बात के लिए केंद्र का मुंह ताकने वाली प्रदेश की पिछली कुछ सरकारें सुरक्षा के नाम पर कितनी संजीदा है यह इस बात से ही पता चल जाता है. इन सरकारों के पास इस बात का समय ही नहीं रहा कि वे देख सकें कि पुलिस विभाग में सिपाही और अधिकारी बचे भी हैं या नहीं ?
                किसी भी स्तर पर सुरक्षा व्यवस्था को सँभालने वाले लोग ही जब मेहनत पड़ने पर इस तरह से बीमार होने लगेंगें तो वे किस तरह से सुरक्षा व्यवस्था संभालेंगें यह बहुत बाद का प्रश्न है. यहाँ पर यह बात भी विचारणीय है कि क्या इन सिपाहियों की नियमित परेड आदि नहीं करायी जाती है ? आखिर फ़ोर्स से जुड़े हुए लोगों को कैसे इस कदर आराम पसंद बनाया जा सकता है कि वे अपने काम को करने के अलावा सारे काम आसानी से कर सकें ? जब वे ख़ुद ही चल पाने में सक्षम नहीं है तो उनसे कोई भी सरकार कैसे सुरक्षा जैसा महत्वपूर्ण काम ले सकती है ? पर जब पुलिस का पूरी तरह से राजनैतिक कारणों से दुरूपयोग ही किया जा रहा है तो फिर आख़िर कौन इसे रोकेगा ? आज भी पुलिस पूरी तरह से आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी हुई है उत्तर प्रदेश के किसी भी नाके पर हर समय सिपाही किसी ट्रक, ट्रैक्टर ट्राली से वसूली करते हुए आसानी से दिखाई देते हैं और आश्चर्य यह है कि कभी किसी बड़े अधिकारी को यह सब नहीं दिखाई देता है या फिर हो सकता है कि इस सब में उनको भी कुछ हिस्सा मिलता हो क्योंकि इस दुनिया में केवल बेईमानी का धंधा ही पूरी ईमानदारी के साथ किया जाता है.
      पुलिस की फिटनेस तो ज़रूरी है ही और जब आम पुलिस जन की सुविधाओं की बात होती है तो अधिकांश समय केवल उनको वायदों के झुनझुने दिए जाते हैं जिसे वे पूरे एक साल तक बजाते रहते हैं फिर से कोई पुलिस सप्ताह मनाया जाता है और कोई बड़ा नेता आकर फिर से वही झूठ बोल जाता है. कभी भी किसी नेता ने यह नहीं सोचा कि उनके दरवाज़े पर आने जाने वाले लोगों की आवभगत में जितना रोज़ खर्च होता है पुलिस अधिकारियों को भी उससे कम वेतन मिलता है. ऐसे में पुलिस से पूरी तरह से ईमानदारी के साथ काम करने की आशा कैसे की जा सकती है ? पूरी व्यवस्था में सुधार के लिए सबसे पहले तो बिना किसी पेंच के इनके वेतन भत्तों में उचित बढ़ोत्तरी की जानी चाहिए और प्रतिवर्ष एक फिटनेस टेस्ट होना चाहिए जिसको उत्तीर्ण करने पर ही चेतावनी के साथ इन्हें कम महत्व के स्थानों पर रखा जाना चाहिए और लगातार फिटनेस में अनुत्तीर्ण होने पर इन्हें सेवानिवृत्त कर देना चाहिए. जब सरकार अपनी मंशा को दिखाएगी तभी पुलिस जन भी पूरे मनोयोग से काम कर पयांगें और सुरक्षा व्यवस्था भी अच्छी हो सकेगी.    
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