मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 7 अगस्त 2011

भारतीय रेल....

      देश की सही मायने में धड़कन भारतीय रेल के बारे में जो भी कहा जाये कम ही है आजकल इसके गिरते हुए स्तर के बारे में हर एक व्यक्ति अपनी नाराज़गी जता रहा है पर जब बार रेल के लिए संसाधन जुटाने की होती है तो कोई भी किसी भी तरह के किराये को बढ़ाये जाने के पक्ष में नहीं दिखाई देता है. रेल एक ऐसे दबाव में दबी जा रही है जिसमें राजनैतिक आकांक्षाएं तो बहुत हैं पर उसकी सार्वजनिक ज़िम्मेदारी के बारे में कोई भी कुछ भी नहीं करना चाहता है. आख़िर कैसे एक इतना बड़ा तंत्र केवल मामूली से मुनाफे की बदौलत लम्बे समय तक जिंदा रह सकता है ? रेल में वैसे भी २४ घंटे कम चलते रहने के कारण कर्मचारियों की बहुत बड़ी संख्या को रखना पड़ता है जिसके कहते भी उस पर आर्थिक बोझ बढ़ता है पर वह इसके कुशल सञ्चालन के लिए अति आवश्यक भी है.
       पिछले कितने ही वर्षों से रेल ने अपने यात्री किराये में कोई वृद्धि नहीं की है जबकि समय के अनुसार इसमें बढ़ोत्तरी होनी चाहिए थी. जो लोग आज रेलवे के रखरखाव को ख़राब बताने से नहीं चूकते हैं वही किसी भी तरह के किराये में बढ़ोत्तरी को जनविरोधी कहने से भी नहीं चूकते हैं. देश के गौरव भारतीय रेल को पूरी तरह से बचाए रखने के लिए इस बात पर अब गौर करने का समय आ ही गया है की इसके किराये अगले रेल बजट का इंतज़ार किये बगैर ही तुरंत सामयिक किये जाएँ जिससे रेल के घाटे को कुछ हद तक कम किया जा सके. आज भी समय है कि अगर हम इस बारे में सोचेंगें तो समय रहते रेल के स्वास्थ्य को ठीक रख पायेंगें वर्ना एक बार अगर इसमें संसाधनों का टोटा हो गया तो आने वाले कई दशकों तक रेल इससे उबर भी नहीं पायेगी.
   एक बात जो और की जानी चाहिए कि जिन रेलगाड़ियों को किसी दबाव के कारण चलाया गया था या फिर जिन मार्गों पर यह अपने खर्चे नहीं निकाल पा रही है वहां पर इसे तुरंत बंद कर देना चाहिए और हर मंडल में बड़े स्टेशनों पर उचित संख्या में डिब्बे रखे जाने चाहिए जिनका उपयोग आवश्यकता पड़ने पर कम क्षमता वाली लम्बी दूरी की ट्रेनों में लगाकर यात्रियों की समस्याएं कम की जा सकें और साथ ही रेलवे के मुनाफे को भी बढाया जा सके. आज भी देश के अधिकांश मार्गों पर रेल अपनी क्षमता से कम संख्या में कोच लगाकर कम चल रही है. सबसे पहले संसाधनों को विकसित करना चाहिए जिससे रेलवे के साथ आम लोगों का भी भला हो सके और आने वले समय में भी रेल अपनी गौरव शाली परंपरा के साथ देश की सेवा करती रह सके.     
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