एक बार फिर से नोयडा मामले को उत्तर प्रदेश सरकार अजीब तरह से डील करने में लग गयी है जिस तरह से उसने दनकौर थाने में बंद किसान नेता मनवीर तेवतिया पर गैंगस्टर एक्ट लगाया है उससे कहीं से भी यह मसला सुलझने की तरफ़ नहीं जाने वाला है. जिस तरह से पहले से ही जेल में बंद मनवीर पर इतने दिनों बाद इस तरह की दफाएँ लगायी गयी हैं उससे किसानों में बहुत रोष है. यह सही है कि जिस तरह से मनवीर के नेतृत्व में किसानों ने पहले राज्य परिवहन के कर्मचारियों को बंधक बनाया और फिर उसके बाद आने वाले अधिकारियों को भी काफी देर तक रोके रखा तो उसके बाद सरकार को कुछ कड़े कदम उठाने ही थे पर अब जब सर्वोच्च न्यायालय से भी उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अधिग्रहीत की गयी भूमि को निरस्त कर दिया गया है उसके बाद तो सरकार को इस तरह से कुछ भी करने से पहले सोचना चाहिए था कि ग़लती की शुरुवात कहाँ से हुई थी ?
उत्तर प्रदेश में भट्टा पारसौल ने एक ऐसा मसला पैदा कर दिया है जिससे निपटना किसी भी सरकार के लिए बहुत मुश्किल साबित होगा पर जिस तरह से अब दमनात्मक कार्यवाही की जा रही है उसके पीछे की सरकारी मंशा समझ में नहीं आती है. सवाल यहाँ पर यह नहीं है कि इन लोगों से किस तरह से निपटा जाये बल्कि यह है कि कि ऐसे मामलों से निपटने के लिए संवेदन शीलता कहाँ से लायी जाए ? सरकार और प्रशासन अचानक से कुछ भी करने लगते हैं जिसके बाद लोगों में आक्रोश फैलने लगता है जब मामला लोगों की रोज़ी रोटी से सीधे जुड़ा होता है तो उस समय हर कदम सोच समझ कर ही उठाया जाना चाहिए जिससे बात और अधिक न बिगड़ने पाए. इस तरह के आन्दोलनों से निपटने के लिए किसी भी सरकार के पास कोई ठोस कार्य योजना कभी नहीं होती है जिससे वहां के स्थानीय प्रशासन को कुछ भी करने की छूट मिल जाया करती है और आजकल के माहौल में अधिकारी अपने को अच्छा दिखाने के चक्कर में कुछ अधिक ही सख्ती कर देते हैं.
जब मामला जन संवेदनाओ से जुड़ा होता है तो लोगों को किसी उग्र आन्दोलन के लिए भड़काना आसान हो जाता है जिससे कुछ नेता लोग अपना उल्लू सीधा करने में सफल हो जाते हैं. सरकार के ख़ुफ़िया तंत्र को ऐसे मामलों में पूरी तरह से सजग रहना चाहिए जिससे सही सूचनाएँ होने पर समय पर कड़े और सही कदम उठाये जा सकें और इस तरह के अनावश्यक पीड़ित किये जाने के लिए मुक़दमे दर्ज करने बंद किये जाएँ. अब भी समय है कि सरकार कानून के अनुसार काम करे और जन भावनाओं को देखते हुए इस पूरे मामले में बहुत अधिक सख्ती करने से भी बचे क्योंकि कहीं ऐसा न हो कि एक आन्दोलन के सख्ती से परेशान लोग फिर से सड़क पर न उतर आयें. अब इस तरह के मसलों को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक तीनों मोर्चों पर ही निपटना चाहिए क्योंकि केवल एक से अब काम चलने वाला नहीं है.
Nice post.
जवाब देंहटाएंआपके बोल हैं प्यारे प्यारे
लेकिन हमारा लिंक है न्यारा न्यारा
यक़ीन न आए तो ख़ुद देख लीजिए
बिना लाग लपेट के सुना रही हैं खरी खरी Lady Rachna