मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 25 अगस्त 2011

हम भी नंगे तुम भी नंगे....

        जिस तरह से सर्वदलीय बैठक के बाद सभी राजनैतिक दलों ने एक सुर में जन लोकपाल बिल के बारे में एकमत होकर इसे ख़ारिज़ में ज़रा सी भी देर नहीं लगायी उससे यही लगता है कि आने वाले समय में देश के लिए भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए देश की जनता को बहुत संघर्ष करना पड़ेगा. इस बैठक से पहले जहाँ ऐसा लग रहा था कि शायद इस मुद्दे पर कोई राजनैतिक समाधान निकल आये और अन्ना की टीम भी शायद कुछ मसलों पर झुक जाये पर अब फिर से बात वहीं पर जाकर अटक गयी है. भ्रष्टाचार पर संप्रग सरकार को पानी पी कर कोसने वाले विपक्षी दलों को भी पता नहीं क्या हुआ कि वे भी सरकार की भाषा में बोलने लगे ? इस बात पर जो आक्रोश कल तक केवल कांग्रेस के ख़िलाफ़ था अब वह देश के पूरे राजनैतिक तंत्र के ख़िलाफ़ होने वाला है. अब उन लोगों के पास क्या जवाब है जो कल तक भ्रष्टाचार के बारे में ही बातें कर रहे थे और आज उन्हें कैसा लगा रहा है ? भ्रष्टाचार एक वैश्विक समस्या है जिससे निपटने के लिए सजग तंत्र का होना बहुत आवश्यक है. कांग्रेस ने यहाँ पर सर्वदलीय बैठक से दो निशाने एक साथ साध लिए एक तरफ अन्ना को सन्देश दे दिया कि सभी दल ऐसा नहीं चाहते तो दूसरी तरफ़ विपक्षियों को भी इस हमाम में नंगा दिखा दिया ?
           एक तरह से यह कहा जा सकता है कि कल तक सरकार टीम अन्ना की कई बातें लोकपाल बिल में डालने पर सहमत थी पर जब उसे ऐसा लगा कि सभी दल उसकी बात से सहमत हैं तो उसने कुछ भी ऐसा करने से मना कर दिया. इस मामले में अड़ने के कारण जो कुछ सुधार तात्कालिक तौर पर लोकपाल बिल में कुछ कड़े प्रावधान करके मिल सकता था वह भी जाता रहा. क्या हुआ विपक्षी दलों के मनोबल को आखिर क्यों उन्होंने इस तरह से चुपचाप सरकार के साथ समर्थन दिखाया ? वज़ह साफ़ है कि जो भी सत्ता में है वह दलाली में लगा हुआ है और इस तरह के कड़े कानून से उसकी दुकान बंद होने की पूरी संभावनाएं हैं ? जब देश का पूरा राजनैतिक तंत्र इस क़दर सड़ा हुआ है तो कोई किससे क्या कहे ? मनमोहन सिंह के पास अब भी बहुत कुछ करने के लिए शेष है क्योंकि पूरे देश के साथ सरकार भी चाहती है कि अन्ना का अनशन समाप्त हो. चूंकि मनमोहन इस देश के राजनैतिक तंत्र की उपज नहीं हैं इस लिए ही वे मतभेद के बाद भी पीएम को लोकपाल के तहत लाने में सहमत हो गए हैं अब उनसे देश को यही आशा है कि वे उतना तो अवश्य करें जितना देश का स्थापित राजनैतिक तंत्र नहीं कर सका ?
   सरकार को तत्काल इस बात पर विचार करना चाहिए जो आश्वासन दो दिन पहले उसने अन्ना की टीम को दिया था उस पर अमल करे और पीएम को लोकपाल बिल में शामिल करवाएं. जहाँ तक बात सभी सरकारी कर्मचारियों के और सांसदों को इसमें लाने की है तो इसके लिए आगे बात की जा सकती है. साथ ही सरकार को यह बिल जल्दी से जल्दी पारित करवाना चाहिए जिससे देश को ७०% प्रावधानों वाला लोकपाल ही मिल सके. अन्ना के यह कहने से देश को राहत मिली है कि उन्हें अस्पताल ले जाते समय किसी तरह से शक्ति प्रदर्शन न किया और बाद में नेताओं के आवासों पर शांति पूर्वक प्रदर्शन किया जाये. अब समय है कि टीम अन्ना को वर्तमान में सरकारी लोकपाल बिल को स्वीकार कर लेना चाहिए और साथ ही उससे होने वाले असर को आने वाले समय में देखना चाहिए. इसमें आने वाली कमियों और अन्य बातों पर भी ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है जिससे लोकसभा के आम चुनावों से पहले एक बार फिर इस तरह की मांग को लेकर अनशन किया जाना चाहिए.  जनता में भूलने की बीमारी लगी हुई है जिससे वह चुनावों तक इन नेताओं के पापों को भूल जाएगी और फिर से इनके चंगुल में फंसेगी. आने वाले लोकपाल कानून की गहन समीक्षा टीम अन्ना को करनी होगी और इस तरह के माहौल को एक बार फिर से बनाना ही होगा.        

मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

2 टिप्‍पणियां:

  1. बिलकुल सटीक अभिव्यक्ति...आभार

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  2. Nice post .

    डा. अमर कुमार जी को श्रृद्धांजलि,
    डा. अमर कुमार जी आज हमारे बीच नहीं हैं।
    मौत एक ऐसा सच है जिसे न तो झुठलाया जा सकता है और न ही बदला जा सकता है। कामयाब वही इंसान है जो एक रब का होकर जिये।
    डा. साहब अक्सर टिप्पणी पर मॉडरेशन लगाए जाने के विरोधी थे।
    इसके खि़लाफ़ वह अक्सर ही आवाज़ बुलंद किया करते थे।
    उनकी ख़ुशी के लिए कम से कम एक दिन सभी लोग अपने ब्लॉग से मॉडरेशन हटा लें तो उनके लिए हमारी तरफ़ से यह एक सम्मान होगा।
    वह एक ज्ञानी आदमी थे।
    उनकी टिप्पणी उनके ज्ञान का प्रमाण है।
    जिसे आप देख सकते हैं इस लिंक पर
    सारी वसुधा एक परिवार है

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