अन्ना की हालत को देखते हुए जिस तरह से पूरे देश में चिंता बढ़ती जा रही है उसे देखते हुए जिस तरह से विलम्ब से ही सही संप्रग सरकार ने जिस तरह से अन्ना की सभी मांगों पर शुक्रवार को संसद में नियम १८४ के तहत चर्चा करने करने का जो निर्णय लिया है वह स्वागत योग्य है. जिस तरह से अन्ना का स्वास्थ्य निरंतर बिगड़ रहा था उसे देखते हुए अब कोई बड़ा कदम उठाने की आवश्यकता थी. देश के राजनैतिक तंत्र में इस बिल को लेकर जिस तरह का असमंजस दिखाई दिया वह समझ से परे है. यह सही है कि अभी तक संप्रग सरकार को किसी बड़े आन्दोलन का सामना नहीं करना पड़ा था और मनमोहन सिंह को ऐसे किसी जन आन्दोलन से निपटने का कोई अनुभव भी नहीं है क्योंकि वे केवल सरकार को चला रहे थे और सभी तरह की राजनैतिक गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए सोनिया ख़ुद मौजूद रहती थीं पर इस बार जब सरकार को सबसे बड़ी परीक्षा से गुज़ारना पड़ा तो फैसले लेने के लिए कोई भी एक व्यक्ति या समूह अधिकृत नहीं था जिससे यह सरकार अनिर्णय का शिकार होती चली गयी.
सरकार ने जिस तरह से लोकसभा में चर्चा की मांगें मानी और उसके बाद देर रात को भाजपा ने भी अन्ना के लोकपाल बिल को समर्थन दिया वह भारत के राजनैतिक तंत्र के विकृत स्वरुप को दिखाता है. सरकार किस तरह से मानी और भाजपा ने क्यों समर्थन दिया यह सब राजनीति की बातें हैं पर जब देश इन राजनैतिक दलों से कड़े कानून की मांग कर रहा था तब ये अपने बिलों में छिपे हुए थे अब भ्रष्टाचार से लड़ाई में अपने को बड़ा पुरोधा साबित करने की होड़ लगी हुई है. जो काम भाजपा ने देर रात किया अगर वह शुरू से कर देती तो सरकार पर बहुत बड़ा नैतिक दबाव भी बन जाता पर वह तो अन्ना के बिल को मानने के लिए ही तैयार नहीं थी ? अब कहीं कांग्रेस से वह इस लड़ाई में पिछड़ न जाये इसलिए वह भी समर्थन दे चुकी है. कोई कुछ भी कहे पर नेता भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ाई में किस तरह से संजीदा हैं यह "दैनिक हरिभूमि" के पहले पन्ने की खबर से ही पता चल जाता है कि अन्ना के इतने बड़े आन्दोलन के समय भी भ्रष्टाचार पर चर्चा के दौरान सदन ख़ाली रहा और आवश्यक कोरम भी पूरा नहीं रहा.
अब संसद को एक सार्थक बहस करनी ही होगी और इस दौरान किसी भी तरह का शोर शराबा देश की जनता नहीं देखना चाहती है इस बहस को उच्च स्तर तक जाना चाहिए जिससे देश यह भी देखा सके कि हमारे नेता वास्तव में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ कितने गंभीर हैं ? अब यह देश के फेल हुए राजनैतिक तंत्र पर है कि वह आज से शुरू होने वाली इस बहस में अपने को गंभीर दिखाना चाहता है या फिर से वही सब घटिया हरकतें करके अपने को निकम्मा साबित करना चाहता है ? यह बहस गंभीरता से हो और इसमें नेताओं को पार्टी लाइन से छूट दी जाये जिससे यह भी पता चल सके कि वास्तव में सांसद क्या चाहते हैं ? देश में पहले से ही बहुत कुछ बिगड़ा पड़ा है और अब इसे सुधारने का अवसर आ गया है. इसे किसी एक पक्ष की विजय नहीं कहा जा सकता है क्योंकि अगर अन्ना को कुछ होता तो वह देश की हार होती पर अब कहीं न कहीं से देश जीतता नज़र आ रहा है....
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
सरकार ने जिस तरह से लोकसभा में चर्चा की मांगें मानी और उसके बाद देर रात को भाजपा ने भी अन्ना के लोकपाल बिल को समर्थन दिया वह भारत के राजनैतिक तंत्र के विकृत स्वरुप को दिखाता है. सरकार किस तरह से मानी और भाजपा ने क्यों समर्थन दिया यह सब राजनीति की बातें हैं पर जब देश इन राजनैतिक दलों से कड़े कानून की मांग कर रहा था तब ये अपने बिलों में छिपे हुए थे अब भ्रष्टाचार से लड़ाई में अपने को बड़ा पुरोधा साबित करने की होड़ लगी हुई है. जो काम भाजपा ने देर रात किया अगर वह शुरू से कर देती तो सरकार पर बहुत बड़ा नैतिक दबाव भी बन जाता पर वह तो अन्ना के बिल को मानने के लिए ही तैयार नहीं थी ? अब कहीं कांग्रेस से वह इस लड़ाई में पिछड़ न जाये इसलिए वह भी समर्थन दे चुकी है. कोई कुछ भी कहे पर नेता भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ाई में किस तरह से संजीदा हैं यह "दैनिक हरिभूमि" के पहले पन्ने की खबर से ही पता चल जाता है कि अन्ना के इतने बड़े आन्दोलन के समय भी भ्रष्टाचार पर चर्चा के दौरान सदन ख़ाली रहा और आवश्यक कोरम भी पूरा नहीं रहा.
अब संसद को एक सार्थक बहस करनी ही होगी और इस दौरान किसी भी तरह का शोर शराबा देश की जनता नहीं देखना चाहती है इस बहस को उच्च स्तर तक जाना चाहिए जिससे देश यह भी देखा सके कि हमारे नेता वास्तव में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ कितने गंभीर हैं ? अब यह देश के फेल हुए राजनैतिक तंत्र पर है कि वह आज से शुरू होने वाली इस बहस में अपने को गंभीर दिखाना चाहता है या फिर से वही सब घटिया हरकतें करके अपने को निकम्मा साबित करना चाहता है ? यह बहस गंभीरता से हो और इसमें नेताओं को पार्टी लाइन से छूट दी जाये जिससे यह भी पता चल सके कि वास्तव में सांसद क्या चाहते हैं ? देश में पहले से ही बहुत कुछ बिगड़ा पड़ा है और अब इसे सुधारने का अवसर आ गया है. इसे किसी एक पक्ष की विजय नहीं कहा जा सकता है क्योंकि अगर अन्ना को कुछ होता तो वह देश की हार होती पर अब कहीं न कहीं से देश जीतता नज़र आ रहा है....
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
सही बात.
जवाब देंहटाएंयदि मीडिया और ब्लॉग जगत में अन्ना हजारे के समाचारों की एकरसता से ऊब गए हों तो मन को झकझोरने वाले मौलिक, विचारोत्तेजक आलेख हेतु पढ़ें
अन्ना हजारे के बहाने ...... आत्म मंथन http://sachin-why-bharat-ratna.blogspot.com/2011/08/blog-post_24.html