मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 6 अक्तूबर 2011

भ्रष्टाचार की भेंट दो और


उत्तर प्रदेश में आख़िर भ्रष्टाचार में शामिल दो और मंत्रियों को हटाकर मायावती ने एक बार फिर से अपने को साफ़ साबित करने की कोशिश की है जबकि स्थिति यह है कि आज बसपा के अधिकांश मंत्रियों, सांसदों,विधायकों और निगम अध्यक्षों के ख़िलाफ़ बहुत सारे मामले लंबित पड़े हुए हैं पर सरकार अपनी सुविधा के अनुसार उन्ही लोगों को हटाने में विश्वास करती है जो उसके लिए राजनैतिक तौर पर कम महत्त्व वाले हैं. ऐसा नहीं है कि बहुत सारे अन्य लोगों के ख़िलाफ़ सबूत नहीं मिले या फिर उनके ख़िलाफ़ कार्यवाही करने की संस्तुति नहीं की गयी पर अपने राजनैतिक नफ़े नुकसान को देखते हुए ही मायावती ने हमेशा कार्यवाही करने में दिलचस्पी दिखाई है. अब यह बात माया को भी पता है कि अन्ना का असर प्रदेश के चुनावों में भी साफ़ नज़र आने वाला है इसलिए वे कुछ भ्रष्टाचारियों को हटाकर मंच से यह बोलने का हक लेना चाहती हैं कि उन्होंने अपनी पार्टी के लोगों को हटाने में भी देर नहीं लगायी. पर जिस तरह से आम लोगों का इस सरकार के कार्यकाल के दौरान भ्रष्टाचार के नए स्वरुप से पाला पड़ा ही उससे यह नहीं लगता कि कोई मंच से बोली जाने वाली फालतू की बात को गंभीरता से भी लेगा.
    उत्तर प्रदेश में भ्रष्टाचार की यह स्थिति है कि कोई भी काम इसके बिना नहीं हो पा रहा है राजनैतिक दलों को चुनाव के लिए चंदा भी चाहिए इसलिए सभी उगाही करने में लगे हुए हैं और सबसे बड़ी समस्या यह है कि ऐसे में किसी को भी कानून की सुध नहीं रह जाती है. सत्ता में होने के कारण जहाँ एक तरफ उस दल को बढ़त मिल जाती है वहीं अन्य दल भी अपने स्तर से धन जुटाने की पूरी कोशिश करते रहते हैं. यहाँ पर सवाल यह नहीं है कि कौन क्या कर रहा है या फिर वह क्या कहना चाह रहा है पर आज सबसे बड़ा सवाल यह है कि आख़िर यह सब कब तक चलता रहेगा ? अगर कोई सरकार पूरी ईमानदारी से काम करे तो उसे बहुत सारे भ्रष्टाचारियों से अपना पीछा छुड़ाना होगा जबकि आज किसी भी दल के किसी भी नेता में इतनी इच्छा शक्ति दिखाई ही नहीं देती है क्योंकि सरकार और पार्टी की गतिविधियाँ ठीक से चलने के लिए जो धन अब लगने लगा है वह केवल चंदे से मिलने वाला तो नहीं है इसलिए राजनैतिक तंत्र भ्रष्टाचार के नए तरीके खोजने में लगा हुआ है.
  आज उत्तर प्रदेश में भ्रष्ट मंत्रियों की लिस्ट इतनी लम्बी हो गयी है जिन्हें लोकायुक्त की सिफारिश के बाद हटाया गया है कि लोगों के लिए नाम याद रख पाना भी मुश्किल होता जा रहा है फिर भी सरकारी ख़ुफ़िया तंत्र या फिर भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत किसी को सरकार ने खुद ही क्यों नहीं पकड़ा ? शायद इसलिए कि सरकार को भी पता है कि ज्यादा शोर शराबा होने से अब उसकी प्रतिष्ठा ही दांव पर लगने वाली है और चुनावी वर्ष होने के कारण माया कभी नहीं चाहेंगीं कि इस तरह से उन्हें अपने भ्रष्टाचारी लोगों के ख़िलाफ़ कुछ करना पड़े ? वैसे इस तरह से बर्खास्त होने वाले मंत्रियों की संख्या में निरंतर बढ़ोत्तरी होने से माया सरकार के लिए भी बड़ी मुश्किल आने वाली हैं क्योंकि आज भी बहुत सारे मंत्रियों और सांसदों के ख़िलाफ़ जांचे जारी हैं और उनके लिए लोकायुक्त की सिफारिशें कभी भी आ सकती हैं. दलितों के हितों के लिए काम करने का दावा करने वाली सरकार के अधिकांश लोग दौलत के लिए काम करते दिखने से प्रदेश में बाकी जनता के साथ दलित वर्ग भी अपने को ठगा महसूस कर रहा है और उसको भी कुछ समझ नहीं आ रहा है.        

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2 टिप्‍पणियां:

  1. congress me to koi bhrashtachari hua hi nahi! hai na pandat ji..

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  2. जी नहीं.... हर दल में हर तरह के लोग हुए हैं पर उँगलियाँ केवल कांग्रेस की तरफ ही उठती है..? बाकियों को आइना दिखाने पर आप जैसे लोगों को दिक्कत होती है...

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