मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 8 अक्तूबर 2011

दिल्ली धमाका और पाक

      भारत में अस्थिरता फैलाने के पाकिस्तान के मंसूबे एक बार फिर से सामने आने लगे हैं अभी तक विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मंचों से पाक यही कहता रहा है कि भारत में चल रहे किसी भी आतंकी आन्दोलन और आतंकियों से उसका कोई सम्बन्ध नहीं है पर इस बार दिल्ली उच्च न्यायालय विस्फोट के तार एक बार फिर से कश्मीर के माध्यम से पाकिस्तान तक जाते दिख रहे हैं. किश्तवाड़ से गिरफ्तार किये गए बांग्लादेश में यूनानी मेडिसिन की पढ़ाई कर रहे वसीम अकरम मलिक से यही पता चलता है कि आज भी पाक अपने काम में लगा हुआ है. एक तरफ वह अपने को वैश्विक आतंक के ख़िलाफ़ चलने वाली लड़ाई का अहम् हिस्सा बताता है तो वहीं दूसरी ओर वह आतंकियों को पोषित करने से नहीं चूकता है. यह सही है कि पिछले कुछ वर्षों में कश्मीर में आतंकी घटनाओं में कमी आई है जिससे पाक को अब यहाँ पर अपने आतंकियों के पैर ज़माने में कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है फिर भी आज भी वह अपने काम में लगा हुआ है.
   एनआईए ने जो सबूत जुटाए हैं उनसे यही लगता है कि किश्तवाड़ से मेल भेजने में इन्हीं आतंकियों की संलिप्तता थी और इस मामले में पहले जिन ३ लोगों को हिरासत में लिया गया था उनमें से एक को छोड़ा जा चुका है और बाक़ी २ अभी भी हिरासत में हैं. आज भी पाक के साथ आम कश्मीर की सहानुभूति आतंकियों के साथ होने के कारण ही पूरे देश में कश्मीर के लोगों के प्रति समर्थन घटता हा रहा है क्योंकि ये आतंकी देश भर में कहीं भी विस्फोट करके भाग जाते हैं और बाद में यही सामने आता है कि यह काम किसी कश्मीरी का है. सुरक्षा बलों के द्वारा होने वाली किसी भी चूक में पत्थर बरसवाने वाली हुर्रियत और अन्य गुट कभी इस तरह की घटनाओं की निंदा क्यों नहीं करते हैं ? वे चुप इसलिए रहते हैं क्योंकि ये उनके ही काम हैं भारतीय सुरक्षा बलों की छाया में रहने वाले ये कश्मीरी नेता आज भी भारत को ही दोषी बताने में नहीं चूकते हैं क्योंकि उन्हें पता है जिस दिन उन्होंने भारत की सही बातों का समर्थन किया तो उसी दिन पाकिस्तान उन्हें मरवा देगा.
   आज फिर से पूरी दुनिया और खासकर अमेरिका और नाटो के सामने यही मुद्दा फिर से है कि भारत आख़िर कब तक पाकिस्तान की इस तरह की हरकतों पर चुप रहे ? ख़ुद अमेरिका ने पाक में घुसकर ओसामा को मारा था पर भारत को वह शांति का सन्देश देने से नहीं चूकता है जबकि वास्तविकता यह है कि पूरी दुनिया में अधिकांश जगहों पर चलने वाली लड़ाइयों में कहीं न कहीं से अमेरिका की संलिप्तता हमेशा ही रही है ? आज समय है कि अमेरिका यह तय करे कि उसे आतंक के ख़िलाफ़ लड़ाई में एक झूठा और मक्कार सहयोगी चाहिए जो उसका हमेशा से ही फायदा उठता रहा है या फिर उसे उससे पीछा छुड़ाकर पूरी दुनिया में वास्तविक आतंक से निपटने के लिए कुछ ठोस करना भी है ? अभी तक भारत के संयम को लोग उसकी कमजोरी मानते रहे हैं पर यह तय है कि किसी समय भारतीय नेतृत्व पूरी क्षमता के साथ पाक को सबक अवश्य ही सिखाएगा और यह वह समय होगा जब पूरी दुनिया इसके बारे में सोच भी नहीं सकेगी कि आख़िर भारत ने ऐसा क्यों किया ?    

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