चित्र साभार बी बी सी हिंदी
भ्रष्टाचार ने देश में किस तरह से नागरिकों को परेशान करके रखा हुआ है इस बात का अंदाज़ा उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले की हरैया तहसील के सांप प्रकरण से समझा जा सकता है. पूरे मामले में तहसील प्रशासन के निचले स्तर के कर्मचारियों के भ्रष्टाचार से परेशान होकर हक्कुल नामके संपेरे ने अपने पास वर्षों से जमा किये हुए दर्ज़नों सांप तहसील के अन्दर लाकर छोड़ दिए जिससे वहां पर बैठे भ्रष्टाचारी भुजंगों के भी होश उड़ गए. पूरा मामला यह था कि हक्कुल स्थानीय संपेरा है और उसने साँपों को पकड़ने में महारत हासिल कर रखी है उसके पास एक से एक ज़हरीले और दुर्लभ सांप थे जिन्हें उसने लोगों के घरों से पकड़ा था. हक्कुल ने प्रशासन से इन साँपों को सुरक्षित रखने के लिए सरकार से कुछ भूमि की मांग की थी पर इस मामले में तहसील के कर्मचारी उसे लगातार परेशान कर रहे थे जबकि उसे कुछ भूमि आवंटित किये जाने के आदेश पारित किये जा चुके थे. अगर देखा जाये तो यह एक ऐसा मामला था जो केवल प्रशासनिक स्तर पर निपटा जा सकता था और स्थानीय वन विभाग भी हक्कुल का सहयोग कर सकता था पर जब सबको केवल पैसे कमाने की भूख हो तो किसे इन बातों की चिंता रहती है.
हक्कुल को अगर भूमि मिल जाती तो शायद वह दुर्लभ प्रजातियों के साँपों के लिए एक सही स्थान बना पाता और आम जनता के घरों से पकडे जाने वाले साँपों को वहां पर सुरक्षित रख सकता जिससे पर्यावरण के अनुकूल रहने के कारण ये सांप भी जी जाते और जनता को भी परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ता पर सरकार द्वारा बनाये गए चिड़िया घरों में साँपों की कमी है और इस तरह से जो समाज को दोहरा लाभ दिलाने में सक्षम हैं उनकी अवहेलना की जा रही है. यह पर एक बात समझने लायक है कि कहीं न कहीं से हमारे सरकारी कर्मचारियों में इस बात की बहुत कमी है जिससे वे स्थानीय स्तर पर इस तरह के कामों को निपटा सके और ग्राम समाज या परती की भूमि से कुछ हिस्सा इस तरह के कामों के लिए सुरक्षित रख सकें ? पर सरकारी कर्मचारियों को केवल किसी भी तरह से पैसे कमाने की धुन सवार रहती है और वे बिना किस बड़े दबाव के कोई भी काम करना ही नहीं चाहते हैं जिससे इस तरह की संवेदनहीनता अक्सर ही दिखाई देती है.
इस मामले में अभी तक तहसील प्रशासन ने हक्कुल के ख़िलाफ़ कुछ भी नहीं किया है और न ही भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ तथाकथित जंग लड़ने वाले किसी व्यक्ति ने भी इस मामले में दिलचस्पी दिखाई है ? हो सकता है कि मामला उछल जाने की वजह से हक्कुल के ख़िलाफ़ कुछ न हो ? देश के इन मामलों के लिए किसी के पास समय नहीं है पर राजनीति के लिए है ? इस मामले में प्रदेश सरकार को भी कुछ सोचना चाहिए कि आख़िर यह स्थिति कैसे आ जाती है कि कोई व्यक्ति जो हर पर ख़तरों से खेलता हो वह अचानक ही इस तरह की हरक़त करने पर मजबूर हो जाता है ? ख़बर का महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि इन साँपों ने किसी भी व्यक्ति को नुकसान नहीं पहुँचाया अब इस बात पर भी विचार किये जाने की ज़रुरत है कि आख़िर ये सांप चुपचाप कैसे चले गए ? शायद इसलिए कि सापों के भी अपने कुछ नियम होते होंगें और वे इस तरह के भ्रष्टाचारियों के मामले में अपना ज़हर बर्बाद नहीं करना चाहते होंगें क्योंकि जिसने मनुष्य होते हुए ही साँपों जैसा काम करना शुरू कर दिया हो उसका भला सांप भी क्या बिगाड़ सकते हैं...
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
भ्रष्टाचार ने देश में किस तरह से नागरिकों को परेशान करके रखा हुआ है इस बात का अंदाज़ा उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले की हरैया तहसील के सांप प्रकरण से समझा जा सकता है. पूरे मामले में तहसील प्रशासन के निचले स्तर के कर्मचारियों के भ्रष्टाचार से परेशान होकर हक्कुल नामके संपेरे ने अपने पास वर्षों से जमा किये हुए दर्ज़नों सांप तहसील के अन्दर लाकर छोड़ दिए जिससे वहां पर बैठे भ्रष्टाचारी भुजंगों के भी होश उड़ गए. पूरा मामला यह था कि हक्कुल स्थानीय संपेरा है और उसने साँपों को पकड़ने में महारत हासिल कर रखी है उसके पास एक से एक ज़हरीले और दुर्लभ सांप थे जिन्हें उसने लोगों के घरों से पकड़ा था. हक्कुल ने प्रशासन से इन साँपों को सुरक्षित रखने के लिए सरकार से कुछ भूमि की मांग की थी पर इस मामले में तहसील के कर्मचारी उसे लगातार परेशान कर रहे थे जबकि उसे कुछ भूमि आवंटित किये जाने के आदेश पारित किये जा चुके थे. अगर देखा जाये तो यह एक ऐसा मामला था जो केवल प्रशासनिक स्तर पर निपटा जा सकता था और स्थानीय वन विभाग भी हक्कुल का सहयोग कर सकता था पर जब सबको केवल पैसे कमाने की भूख हो तो किसे इन बातों की चिंता रहती है.
हक्कुल को अगर भूमि मिल जाती तो शायद वह दुर्लभ प्रजातियों के साँपों के लिए एक सही स्थान बना पाता और आम जनता के घरों से पकडे जाने वाले साँपों को वहां पर सुरक्षित रख सकता जिससे पर्यावरण के अनुकूल रहने के कारण ये सांप भी जी जाते और जनता को भी परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ता पर सरकार द्वारा बनाये गए चिड़िया घरों में साँपों की कमी है और इस तरह से जो समाज को दोहरा लाभ दिलाने में सक्षम हैं उनकी अवहेलना की जा रही है. यह पर एक बात समझने लायक है कि कहीं न कहीं से हमारे सरकारी कर्मचारियों में इस बात की बहुत कमी है जिससे वे स्थानीय स्तर पर इस तरह के कामों को निपटा सके और ग्राम समाज या परती की भूमि से कुछ हिस्सा इस तरह के कामों के लिए सुरक्षित रख सकें ? पर सरकारी कर्मचारियों को केवल किसी भी तरह से पैसे कमाने की धुन सवार रहती है और वे बिना किस बड़े दबाव के कोई भी काम करना ही नहीं चाहते हैं जिससे इस तरह की संवेदनहीनता अक्सर ही दिखाई देती है.
इस मामले में अभी तक तहसील प्रशासन ने हक्कुल के ख़िलाफ़ कुछ भी नहीं किया है और न ही भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ तथाकथित जंग लड़ने वाले किसी व्यक्ति ने भी इस मामले में दिलचस्पी दिखाई है ? हो सकता है कि मामला उछल जाने की वजह से हक्कुल के ख़िलाफ़ कुछ न हो ? देश के इन मामलों के लिए किसी के पास समय नहीं है पर राजनीति के लिए है ? इस मामले में प्रदेश सरकार को भी कुछ सोचना चाहिए कि आख़िर यह स्थिति कैसे आ जाती है कि कोई व्यक्ति जो हर पर ख़तरों से खेलता हो वह अचानक ही इस तरह की हरक़त करने पर मजबूर हो जाता है ? ख़बर का महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि इन साँपों ने किसी भी व्यक्ति को नुकसान नहीं पहुँचाया अब इस बात पर भी विचार किये जाने की ज़रुरत है कि आख़िर ये सांप चुपचाप कैसे चले गए ? शायद इसलिए कि सापों के भी अपने कुछ नियम होते होंगें और वे इस तरह के भ्रष्टाचारियों के मामले में अपना ज़हर बर्बाद नहीं करना चाहते होंगें क्योंकि जिसने मनुष्य होते हुए ही साँपों जैसा काम करना शुरू कर दिया हो उसका भला सांप भी क्या बिगाड़ सकते हैं...
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
ab yahi karna parega....
जवाब देंहटाएंकौन किस पर भारी।
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