मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 23 दिसंबर 2011

बीएसएनएल बेस्ट है मेरे लिए

        जैसा कि हर सरकारी विभाग और निगम में होता आया है उसी तरह से हमारा भारत संचार निगम लिमिटेड भी काम करने में सरकारी ऐंठ में जीने का आदी बन चुका है पर आज भी ऐसे अधिकारी और कर्मचारी मौजूद हैं जो किसी भी स्थिति में पूरी लगन से काम करने की कोशिश किया करते हैं. मैं यहाँ पर अपना अनुभव सबके साथ साझा करना चाहता हूँ जिसमें मुझे पूरी समस्या के साथ २५ दिन जीने के बाद अचानक ही १० मिनट में अपनी समस्या का समाधान मिल गया था. पूर्वी उत्तर प्रदेश परिमंडल में दूसरी बार जनवरी २००३ में आये सिम में मैंने भी संचार निगम के साथ जुड़ने के साथ अपने मोबाइल अनुभव को शुरू किया था तब से अब तक नेटवर्क से सम्बंधित कुछ बड़ी समस्याओं को छोड़कर कभी भी मुझे इस तरह की समस्या का सामना नहीं करना पड़ा था जिसमें कोई यह बता पाने की स्थिति में नहीं था कि वास्तव में इस समस्या का समाधान कहाँ से मिल पायेगा ? फिर भी किसी तरह से मैं इस मामले में भाग्यशाली रहा कि मुझे काम करने वाले व्यक्ति तक पहुँचने में समय तो लगा पर मेरा काम भी हो गया.
     लगभग २५ दिन पहले मेरे मोबाइल पर कॉल करने वाले लोगों ने यह शिकायत करनी शुरू की कि मेरा नम्बर हर समय व्यस्त रहने लगा है और कभी भी एक बार में कॉल नहीं मिल पाती है. शुरू में मैंने भी इसे एक सामान्य समस्या समझा और इसके बारे में कुछ भी न करना ही उचित समझा. पर जब यह समस्या दूर नहीं हुई तो मैंने स्थानीय दूरसंचार जिला कार्यालय से अपनी समस्या बताई पर इस सम्बन्ध में मुझसे यह कहा गया कि मैं अपना फोन बदल कर देखूं. ऐसा करने के बाद भी जब मेरी समस्या का समाधान नहीं हो पाया तो मुझे सिम बदलने की सलाह दी गयी जो कि मैंने बदलवा दिया. जब इसके बाद भी मेरी समस्या का समाधान नहीं हो पाया तो मैंने कस्टमर केयर में शिकायर लिखाई वहां पर मेरी शिकायत को ग़लत तरीके से नोट कर लिया गया और दो दिन बाद फिर से संपर्क करने पर पता चला कि मेरी तो समस्या ही कुछ और लिख ली गयी है ? मैंने फिर से अपनी समस्या को बताया और एक नयी शिकायत संख्या लेकर इंतजार करना शुरू कर दिया. इस बीच मैंने कहीं से कुछ न होता देख सीतापुर के दूरसंचार जिला प्रबंधक से बात करने की कोशिश की पर शायद उनकी प्राथमिकता में उपभोक्ता आते ही नहीं हैं और वे दो जिलों का कार्यभार संभाल कर बैठे हैं तो २ दिन में उनसे बात हो पाई और उन्होंने ने भी केवल आश्वासन देकर अपना काम पूरा कर दिया.
      आख़िर में मुझे अपनी समस्या का समाधान अपने स्थानीय एसडीओ राजेश जी से ही मिला जिन्होंने मुझे लखनऊ एमएससी में बैठे एसडीओ आलोक जी से समस्या बताने को कहा. मुझे आलोक जी से बात करके सुखद आश्चर्य हुआ कि वे लखनऊ में बैठकर भी किस तरह से मेरे मामले में दिलचस्पी ले रहे थे उन्होंने समस्या का पता लगाते हुए कुछ समाधान देने के प्रयास किया जिससे सेवाएं कुछ हद तक सामान्य हुईं पर शाम होते ही फिर से नंबर व्यस्त हो गया. अगले दिन आलोक जी से फिर से बात होने पर मैंने उन्हें पूरी बात बताई जिसके १० मिनट के बाद ही मेरा नंबर सही चलने लगा. ऐसे में क्या कहा जाये कि संचार निगम की शिकायत व्यवस्था के बारे में आख़िर कहाँ पर चूक हो जाया करती है क्योंकि मेरी समस्या को आख़िर किसी ने समझने की कोशिश ही नहीं कि या फिर जो लोग समस्या को समझने के लिए बिठाये गए हैं वे ही इस लायक नहीं हैं कि समस्या को समझ सकें ? फिलहाल मुझे इस पूरे मामले में यह जानकर अच्छा ही लगा कि आज भी ऐसे लोग इस निगम में मौजूद हैं जो किसी भी समस्या की तह तक जाकर उसके समाधान तक त्वरित गति से पहुँचने में सक्षम हैं. पर क्या इतने लोगों में चंद लोग पूरी व्यवस्था को संभाल पाने में सक्षम हैं ? शायद नहीं पर इस ऐसे लोगों को सामने लाने के लिए अब निगम को ही कुछ करना पड़ेगा जिससे प्रतिस्पर्धा के माहौल में वह सही तरीके से मैदान में डटा रह सके.      
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

2 टिप्‍पणियां:

  1. बेशक एक अच्छा उदाहरण है। ऐसे कर्मियों को प्रोत्साहित करना चाहिए और नकाराओं को दंडित लेकिन सरकारी विभागों में उल्टा होता है। खैर उस कर्तव्यपारायण अधिकारी तक हमारी शुभकामनाएँ पहुंचा दीजिये।

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