इस बार चुनाव आयोग की काले धन की आवाजाही पर की गयी सख्ती का असर यूपी में साफ़ तौर पर दिखाई देने लगा है अभी तक के चुनावों में हमेशा ही काले धन का दुरूपयोग चुनावों में मतदाताओं को लुभाने के लिए ही किया जाता था पर इस बार आयोग की सख्ती का ही असर है कि अभी चुनाव रंग में नहीं आये हैं और इतनी बड़ी मात्रा में बरामदगी शुरू हो चुकी है ? यह तो सभी जानते हैं कि चुनाव में गरीबों को लुभाने के लिए नेता कितने सारे हथकंडे अपनाया करते हैं पर इस बार जिस तरह से चुनाव आयोग ने इनके धन के प्रवाह पर बाँध बना दिए हैं उससे नेताओं में बेचैनी साफ़ तौर पर देखी जा सकती है. अभी तक जो नेता इस बात के लिए चिल्लाते थे कि चुनाव में पैसे के दम पर धांधली की जाती है इस बार उनकी भी बोलती बंद है और उन्हें भी समझ में आने लगा है कि देश में कानून नाम की कोई चीज़ भी है और उसे लागू करा पाने का दम रखने वाली संस्था भी. ऐसा नहीं है कि देश के कानूनों में कमी है क्योंकि अगर कमी होती तो इस तरह की व्यवस्था उसी तंत्र से कैसे संभव हो पा रही है जो पूरे ५ साल तक देश में भ्रष्टाचार का ग़दर मचाये रखता है ? आज आवश्यकता इस बात की है कि कुछ ऐसा हो जो इस पूरे तंत्र को सही दिशा में चलाने का काम कर सके और देश को एक नयी दिशा भी दे सके.
मामला बिलकुल साफ़ है कि हमारे नेताओं में दम नहीं बचा है कि वे देश के कानूनों को सही ढंग से लागू करवा पायें ? जिन कानूनों को पारित करने के लिए ये संसद और विधान मंडलों में जितने बड़े स्तर पर ढोंग रचाते रहते हैं अगर उसका एक हिस्सा भी इनके अनुपालन में लगा दें तो देश की किस्मत केवल ५ वर्षों में ही बदल सकती है पर तब इनके पैसे के दम पर चलने वाले खेल शायद ही पूरे हो पायेंगें और आम जनता के लिए विभिन्न योजनाओं में आने वाला पैसा हड़पने में इन्हें अपने तंत्र समेत दिक्कत होने लगे ? अब देश की जनता को यह देखने की ज़रुरत है कि आख़िर क्या कारण है कि जिन्हें हम अपना मत देकर प्रदेश और देश की बागडोर थमाते हैं आख़िर में वे ही किस तरह से इतने संवेदन हीन हो जाते हैं कि उन्हें यह भी दिखाई नहीं देता कि सही क्या है और ग़लत क्या ? ऐसा भी नहीं है कि देश के सभी नेता इस तरह के काम में लगे हुए हैं पर जो नहीं लगे हुए हैं अब उन पर ही बड़ी ज़िम्मेदारी है कि वे लोगों को यह दिखा दें कि आने वाले समय में अगर कुछ किया जा सकता है तो उसकी शुरुआत करने का सही समय अब आ ही गया है. केवल संसद में हल्ला मचाने और बहिर्गमन करने से ही कोई लोकतंत्र का रखवाला साबित नहीं हो जाता है ? देश में अब नेताओं को यह जवाब देना भी सीखना होगा कि अगर वे किसी बात का विरोध कर रहे हैं तो उसके लिए उनकी क्या अच्छी योजना है जो सरकार नहीं कर पा रही है ?
जिस तरह से नकदी और चाँदी पकड़े जाने का सिलसिला चल रहा है उससे यह भी पता चलता है कि कितने व्यापारी अवैध ढंग से कर चोरी करते हुए आज भी अपना काम कर रहे हैं ? ऐसा भी नहीं है कि जो पैसा पकड़ा जा रहा है वह सारा का सारा नेताओं का काला धन ही है इसमें बहुत बड़ी मात्रा में कर चोरी के द्वारा किये जाने वाले काम भी शामिल हैं क्योंकि अब बिना इसके कोई भी व्यापारी काम ही नहीं कर रहा है ? इस बहाने से देश को इस बात पर भी विचार करना चाहिए कि कर ढांचे को इतना तर्क संगत बनाया जाए कि आम लोगों को कर देने में कोई दिक्कत न हो ? देश में आम तौर पर कर ढांचा ऐसा है कि सम्बंधित विभाग के लोग ही कुछ धन लेकर एक समान्तर अर्थ-व्यवस्था का सञ्चालन करने में लगे हुए हैं क्या सरकार की नज़रें इस पर भी पड़ने वाली हैं या जनहित में सर्वोच्च्च न्यायालय या किसी राज्य का उच्च न्यायालय इस बात को संज्ञान में लेना चाहेगा कि सरकार इस तरफ भी सोचे क्योंकि आम जनता के कहने से सरकारों को कुछ सुनाई देना बंद हो चुका है अब काम केवल न्यायालय की अवमानना के डर से ही समयबद्ध तरीके से हो पाते हैं ? फिलहाल तो देश के ५ राज्यों में चुनाव के चलते सभी इस उत्सव में शामिल हैं ही पर आयोग के डंडे ने इनके रंग में भंग तो डाल ही दिया है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
मामला बिलकुल साफ़ है कि हमारे नेताओं में दम नहीं बचा है कि वे देश के कानूनों को सही ढंग से लागू करवा पायें ? जिन कानूनों को पारित करने के लिए ये संसद और विधान मंडलों में जितने बड़े स्तर पर ढोंग रचाते रहते हैं अगर उसका एक हिस्सा भी इनके अनुपालन में लगा दें तो देश की किस्मत केवल ५ वर्षों में ही बदल सकती है पर तब इनके पैसे के दम पर चलने वाले खेल शायद ही पूरे हो पायेंगें और आम जनता के लिए विभिन्न योजनाओं में आने वाला पैसा हड़पने में इन्हें अपने तंत्र समेत दिक्कत होने लगे ? अब देश की जनता को यह देखने की ज़रुरत है कि आख़िर क्या कारण है कि जिन्हें हम अपना मत देकर प्रदेश और देश की बागडोर थमाते हैं आख़िर में वे ही किस तरह से इतने संवेदन हीन हो जाते हैं कि उन्हें यह भी दिखाई नहीं देता कि सही क्या है और ग़लत क्या ? ऐसा भी नहीं है कि देश के सभी नेता इस तरह के काम में लगे हुए हैं पर जो नहीं लगे हुए हैं अब उन पर ही बड़ी ज़िम्मेदारी है कि वे लोगों को यह दिखा दें कि आने वाले समय में अगर कुछ किया जा सकता है तो उसकी शुरुआत करने का सही समय अब आ ही गया है. केवल संसद में हल्ला मचाने और बहिर्गमन करने से ही कोई लोकतंत्र का रखवाला साबित नहीं हो जाता है ? देश में अब नेताओं को यह जवाब देना भी सीखना होगा कि अगर वे किसी बात का विरोध कर रहे हैं तो उसके लिए उनकी क्या अच्छी योजना है जो सरकार नहीं कर पा रही है ?
जिस तरह से नकदी और चाँदी पकड़े जाने का सिलसिला चल रहा है उससे यह भी पता चलता है कि कितने व्यापारी अवैध ढंग से कर चोरी करते हुए आज भी अपना काम कर रहे हैं ? ऐसा भी नहीं है कि जो पैसा पकड़ा जा रहा है वह सारा का सारा नेताओं का काला धन ही है इसमें बहुत बड़ी मात्रा में कर चोरी के द्वारा किये जाने वाले काम भी शामिल हैं क्योंकि अब बिना इसके कोई भी व्यापारी काम ही नहीं कर रहा है ? इस बहाने से देश को इस बात पर भी विचार करना चाहिए कि कर ढांचे को इतना तर्क संगत बनाया जाए कि आम लोगों को कर देने में कोई दिक्कत न हो ? देश में आम तौर पर कर ढांचा ऐसा है कि सम्बंधित विभाग के लोग ही कुछ धन लेकर एक समान्तर अर्थ-व्यवस्था का सञ्चालन करने में लगे हुए हैं क्या सरकार की नज़रें इस पर भी पड़ने वाली हैं या जनहित में सर्वोच्च्च न्यायालय या किसी राज्य का उच्च न्यायालय इस बात को संज्ञान में लेना चाहेगा कि सरकार इस तरफ भी सोचे क्योंकि आम जनता के कहने से सरकारों को कुछ सुनाई देना बंद हो चुका है अब काम केवल न्यायालय की अवमानना के डर से ही समयबद्ध तरीके से हो पाते हैं ? फिलहाल तो देश के ५ राज्यों में चुनाव के चलते सभी इस उत्सव में शामिल हैं ही पर आयोग के डंडे ने इनके रंग में भंग तो डाल ही दिया है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
कांग्रेस के नेताओं में तो दम है.
जवाब देंहटाएंभारत में चुनावों को मतलब ही नोट का खेल है
जवाब देंहटाएं