मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

एंट्रिक्स-देवास विवाद

    आजकल जिस तरह से सरकार और उसके विभागों के सामान्य कामकाज में पारदर्शिता की कमी के कारण जितने संदेह रोज़ ही उत्पन्न हो रहे है उससे यही लगता है कि आने वाले समय में देश को नियमों को निर्धारित करने के नियमों के बारे में फिर से सोचना ही होगा. किसी भी विभाग द्वारा कोई भी बड़ा महत्वपूर्ण समझौता आख़िरकार विवादों में ही घिर जाता है जिस कारण से देश की भविष्य की संभावनाओं पर भी बड़ा असर पड़ता है. अभी तक जितने भी सौदे या समझौते होते रहे हैं उनके बारे में देश को फिर से विचार करने की आवश्यकता क्यों पड़ती रहती है अभी तक कोई इसका सही जवाब नहीं ढूंढ पाया है ? बात चाहे रक्षा सौदों की हो या सामान्य निविदाओं की हर तरफ से यही सुनाई देता है कि हर ख़रीद में घोटाला किया गया है या फिर हर जगह नियमों की अनदेखी किसी व्यक्ति या समूह को लाभ पहुँचाने की गरज़ से की गयी है ? क्या कारण है कि आज यह सब आम हो गया है ? कहीं ऐसा तो नहीं कि अब सरकार के पास अधिक अवसर आने लगे हैं और बेहतर कर वसूली के कारण अधिक धन उपलब्ध होने से इसके दुरूपयोग की तरफ़ भी लोगों का ध्यान जाने लगा है ?
   इसरो द्वारा गठित विशेष समिति ने भी एंट्रिक्स-देवास समझौते में देश के तीन शीर्ष वैज्ञानिकों पर संदेह जताते हुए कहा है कि इस तरह के सौदों में जितनी पारदर्शिता अपनाई जानी चाहिए वह नहीं अपनाई गयी है और कई स्थानों पर खुले तौर पर नियमों की अनदेखी की गयी है. इस पूरे प्रकरण में देवास के द्वारा गलत जानकारियां दी गयी पर उनके बारे में कोई जांच नहीं की गयी और सरकार और अन्तरिक्ष विभाग के साथ बड़े सौदों के बारे में कोई सामान्य विचार विमर्श तक नहीं किया गया और न ही इसके बारे में पूरे वर्ष कोई सूचना ही दी गयी. आज इस मामले में संदेह के घेरे में आये वैज्ञानिक अपने को निर्दोष बताने में लगे हैं हो सकता है कि वे निर्दोष हों पर उनके समय में ही इस तरह की प्रक्रियागत खामियां सामने आई हैं तो उन पर संदेह करना पूरी तरह से ग़लत भी नहीं कहा जा सकता है. अब जब मामला सरकार के साथ पूरे देश के सामने है तो कैसे किसी को निर्दोष ठहराया जा सकता है जब तक पूरी जांच रिपोर्ट न आ जाएँ और ये सभी बेदाग साबित न हो जाएं. अब बड़े फैसले लेने वाले बड़े पदों अपर बैठने वालों को इस दिशा में सोचना ही होगा क्योंकि इसके बिना विकास संभव नहीं है.
                   देश को देश के लिए नीतियां बनाने वाले लोगों की आवश्यकता है जो किसी भी तरह से ख़ुद को इससे मिलने वाले किसी भी प्रकार के लाभ से दूर रख पाने में सफल हों क्योंकि अब विकास की तेज़ गति में विश्व के साथ क़दम न मिला पाने वाले पिछड़ने ही वाले हैं और भारत इस तरह से किसी भी स्थिति में अब अपने को पीछे नहीं रख सकता है. इसके लिए अब अविलम्ब कुछ मुद्दों पर पूरे देश के सभी लोगों को विचार कर नयी नीतियां बनानी ही होंगी जिससे इस तरह के विवादों से देश को दूर रखा जा सके. हो सकता है कि इस मामले में भी कुछ नीतिगत कमी रही हो जिसका दुरूपयोग जाने अनजाने में देवास को लाभ पहुँचाने में किया गया हो ? २जी घोटाले में भी केवल पुराने नियमों के कारण ही देश में इस तरह की स्थिति बनी हुई है क्योंकि समय रहते नीतियों की समीक्षा नहीं की गयी या जानबूझकर नहीं करने दी गयी ? देश कोई संस्था नहीं है जिसमें कुछ ग़लत हो जाने पर संभाल लिया जाये. इतने बड़े स्तर पर होने वाली चूक कहीं से भी देश को चोट पहुंचा सकती है और अब ये हमारा सभी का कर्त्तव्य बनता है कि नीतियों को पूरी तरह से पारदर्शी बनाया जाए और किसी भी सौदे को अंतिम रूप देने से पहले सभी शर्तों को देश के सामने लाया जाना चाहिए जिससे समय रहते ग़लतियों और कमियों को पकड़ा जा सके.  
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