2 जी मामले में जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट ने चिदंबरम के ख़िलाफ़ स्वामी की याचिका खारिज़ की है उससे भले ही कांग्रेस को कुछ समय के लिए राहत मिल गयी पर इससे देश का कहीं से भी भला नहीं होने वाला है. देश को नयी परिस्थितियों के अनुसार सही दिशा में काम करने वाले कानूनों की आवश्यकता है न कि किसी भी तरह के पुराने कानून को ढोने की. इस मामले में यह सही है कि राजा के ख़िलाफ़ मामला बन रहा है क्योंकि उन्होंने पीएमओ और अन्य मंत्रालयों की इससे जुड़ी हुई शिकायतों की समय समय पर अनदेखी की थी जिस कारण से आज उन्हें और पूरी संप्रग सरकार को असहज स्थिति का सामना करना पर रहा है. अगर उस समय नियमों को नए मानकों के अनुसार बदल दिया गया होता तो सरकार को जो भी राजस्व का नुकसान हुआ है वह नहीं होता और साथ ही देश को कहीं न कहीं से नयी नीतियां बनाने का अवसर भी मिल जाता पर कांग्रेस आज इस बात से अपने को अलग इसलिए नहीं कर पा रही है क्योंकि उसने ही गठबंधन के साथियों पर आँख मूंदकर भरोसा किया था. गठबंधन का धर्म एक बार अटल बिहारी ने भी समझाने का प्रयास किया था पर अब इस धर्म के लिए सभी को एक समान मुद्दे पर काम करना सीखना ही होगा.
जहाँ तक स्वामी की याचिका का प्रश्न है वे अपने स्थान पर बिलकुल ठीक हैं क्योंकि केंद्रीय सतर्कता आयुक्त द्वारा २जी मामले में राजस्व की हानि के बारे में जो बातें कहीं गयीं थीं उन पर ही स्वामी ने याचिकाएं डाली थीं एक नागरिक के रूप में उन्हें देश के संविधान से यह मौलिक अधिकार मिला हुआ है कि वे भी किसी प्रकार की वित्तीय या अन्य अनियमितता के बारे में देश का ध्यान आकृष्ट कराएँ और कोर्ट में जाएँ. इस मामले में जहाँ अभी तक पीसी की संलिप्तता के कोई सबूत नहीं किले हैं वहीं स्वामी का सारा ध्यान उन्हें लपेटने में लगा हुआ है ? कोर्ट ने इस बात को आज मौजूद सबूतों के आधार पर पीसी को दोषी नहीं माना है. नीतियों के मामले में कोई भी यह नहीं कह सकता है कि वे ठीक ढंग से बनायीं गयीं या नहीं क्योंकि सभी के अनुसार विकास के अलग अलग आयाम हैं और हर दल अपने अनुसार ही विकास को देखता है जबकि आज देश की आवश्यकता के अनुसार इस तरह से नियमों को बनाने की आवश्यकता है कि आने वाली कोई भी सरकार उस के ख़िलाफ़ जाने की न सोचे. अब नेताओं को यह समझना ही होगा कि देश बड़ा है वे नहीं इसलिए अब कुछ मामलों में उन्हें अपने को नियंत्रित करना ही होगा वर्ना कुछ भी हो सकता है.
देश में जिस तरह से हर बात में राजनीति हावी रहती है उसका कोई मतलब नहीं है क्योंकि वैश्विक दिशा में विकास की जो परिभाषा आज है हमें भी उस पर ही ध्यान देना चाहिए पर इसका मतलब यह भी नहीं है कि किसी को भी कुछ भी करने की छूट मिल गयी है ? देश के हित में अब सही दिशा में सोचने का समय आ गया है विकास या अन्य क्षेत्रों से जुड़ी किसी भी बात पर केवल बोलने के स्थान पर सही तरह से विशेषज्ञों की राय लेकर किसी भी नयी नीति को बनाना चाहिए जिससे उसमें आज के समय कोई कमी न रह जाये. इस तरह की स्थायी समितियां बनायीं जानी चाहिए जो हर वर्ष नीतियों की समीक्षा कर सकें और अपने सुझाव सरकार को दे सकें साथ ही इन समितियों के सुझावों को मानने के लिए देश के राजनैतिक तंत्र को बाध्य भी किया जाना चाहिए क्योंकि राजनेता हर बात में सही सोच रखते हों यह आवश्यक नहीं है. ये समितियां केवल सुझाव देने के लिए ही हों और इनके सदस्यों को किसी भी तरह की सुविधाएँ न दी जाएँ क्योंकि जब किसी क्षेत्र विशेष के लोग अपने क्षेत्र से लाभ कमा रहे हैं तो उनसे देश के लिए इतने काम को नि:शुल्क करने की आशा तो देश करता ही है ? अच्छा हो कि इस पूरे प्रकरण में आरक्षण आदि की कोई बातें न की जाएँ बल्कि सभी को शामिल किया जाये जो इस लायक हैं.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
जहाँ तक स्वामी की याचिका का प्रश्न है वे अपने स्थान पर बिलकुल ठीक हैं क्योंकि केंद्रीय सतर्कता आयुक्त द्वारा २जी मामले में राजस्व की हानि के बारे में जो बातें कहीं गयीं थीं उन पर ही स्वामी ने याचिकाएं डाली थीं एक नागरिक के रूप में उन्हें देश के संविधान से यह मौलिक अधिकार मिला हुआ है कि वे भी किसी प्रकार की वित्तीय या अन्य अनियमितता के बारे में देश का ध्यान आकृष्ट कराएँ और कोर्ट में जाएँ. इस मामले में जहाँ अभी तक पीसी की संलिप्तता के कोई सबूत नहीं किले हैं वहीं स्वामी का सारा ध्यान उन्हें लपेटने में लगा हुआ है ? कोर्ट ने इस बात को आज मौजूद सबूतों के आधार पर पीसी को दोषी नहीं माना है. नीतियों के मामले में कोई भी यह नहीं कह सकता है कि वे ठीक ढंग से बनायीं गयीं या नहीं क्योंकि सभी के अनुसार विकास के अलग अलग आयाम हैं और हर दल अपने अनुसार ही विकास को देखता है जबकि आज देश की आवश्यकता के अनुसार इस तरह से नियमों को बनाने की आवश्यकता है कि आने वाली कोई भी सरकार उस के ख़िलाफ़ जाने की न सोचे. अब नेताओं को यह समझना ही होगा कि देश बड़ा है वे नहीं इसलिए अब कुछ मामलों में उन्हें अपने को नियंत्रित करना ही होगा वर्ना कुछ भी हो सकता है.
देश में जिस तरह से हर बात में राजनीति हावी रहती है उसका कोई मतलब नहीं है क्योंकि वैश्विक दिशा में विकास की जो परिभाषा आज है हमें भी उस पर ही ध्यान देना चाहिए पर इसका मतलब यह भी नहीं है कि किसी को भी कुछ भी करने की छूट मिल गयी है ? देश के हित में अब सही दिशा में सोचने का समय आ गया है विकास या अन्य क्षेत्रों से जुड़ी किसी भी बात पर केवल बोलने के स्थान पर सही तरह से विशेषज्ञों की राय लेकर किसी भी नयी नीति को बनाना चाहिए जिससे उसमें आज के समय कोई कमी न रह जाये. इस तरह की स्थायी समितियां बनायीं जानी चाहिए जो हर वर्ष नीतियों की समीक्षा कर सकें और अपने सुझाव सरकार को दे सकें साथ ही इन समितियों के सुझावों को मानने के लिए देश के राजनैतिक तंत्र को बाध्य भी किया जाना चाहिए क्योंकि राजनेता हर बात में सही सोच रखते हों यह आवश्यक नहीं है. ये समितियां केवल सुझाव देने के लिए ही हों और इनके सदस्यों को किसी भी तरह की सुविधाएँ न दी जाएँ क्योंकि जब किसी क्षेत्र विशेष के लोग अपने क्षेत्र से लाभ कमा रहे हैं तो उनसे देश के लिए इतने काम को नि:शुल्क करने की आशा तो देश करता ही है ? अच्छा हो कि इस पूरे प्रकरण में आरक्षण आदि की कोई बातें न की जाएँ बल्कि सभी को शामिल किया जाये जो इस लायक हैं.
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हर क्षेत्र आरक्षित होना चाहिये..
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