जिस तरह से पूरे विश्व में नेट पर डाले जाने वाले कंटेंट के बारे में बहस चल रही है उसी बीच गूगल ने यह निर्णय किया है कि अब वह नेट पर डाले जाने वाले किसी भी कंटेंट को किसी देश विशेष में आपत्ति किये जाने के बाद रोक लगाने की तैयारी कर रही है. इस प्रक्रिया को गूगल पहले भारत ब्राज़ील और जर्मनी जैसे देशों से शुरू करने जा रही है क्योंकि आजकल इन देशों में इस तरह की बातें सरकारी स्तर पर भी उठाई जाने लगी हैं. कोई भी आर्थिक रूप से संपन्न कम्पनी किसी भी स्थिति में अपने लिए ऐसी स्थिति नहीं चाहेगी जिसमें वह किसी अन्य से पिछड़ जाये. गूगल के इस तरह से झुकने के पीछे शायद चीन का उदाहरण भी काम कर रहा है जहाँ से चीन और अपनी ऐंठ में कम्पनी ने अपने कारोबार को समेट लिया जिसके बाद उसको बहुत बाद नुकसान हुआ है. अब आर्थिक रूप से नुकसान देने वाली इस बात को गूगल ने समझ लिया है जिसके बाद ही वह इस तरह की कंटेंट रोकने वाली नयी नीति पर काम करना शुरू कर चुकी है.
कुछ लोगों को इस बात से भी आपत्ति होगी कि आख़िर गूगल को इस तरह से सरकार के सामने घुटने टेकने की क्या आवश्यकता है ? गूगल को पैसे चाहिए वह कोई अधिकारों की पैरवी करने वाला समूह नहीं है और कोई भी व्यापारिक गतिविधि सरकारों से लड़ाई करके नहीं चलायी जा सकती है अब यह गूगल की समझ में आ रहा है. इस तरह का नेट आधारित आपत्तिजनक कंटेंट डालने वाले केवल कुछ हिट पाने के लिए कुछ भी लिख देते हैं जबकि स्वस्थ और प्रगतिशील समाज में इस बात की आज़ादी नहीं दी जा सकती है कि कोई भी किसी भी तरह से किसी व्यक्ति, संस्था, धर्म, जाति आदि के बारे में कुछ भी लिख दे ? लिखने वालों को अब यह समझना ही होगा कि अगर उनको यह आज़ादी मिली हुई है तो उसके साथ ही लिखने की भी कोई सीमा है मतभेद कहीं पर भी हो सकते हैं पर उनको किसी आपत्तिजनक स्थिति तक पहुँचाना आख़िर किस तरह की अभिव्यक्ति है ? अगर कोई वास्तव में इस बात के लिए संवेदनशील है तो उसे यह देखना चाहिए कि आख़िर क्या कारण है कि लिखते समय सीमाओं का ध्यान नहीं रखा जाता है ?
भारत जैसा देश जो किसी भी मामले में अत्यधिक संवेदनशील है यहाँ पर किसी व्यक्ति को कुछ लोग गालियाँ निकलते मिल जायेंगे तो कुछ उसकी पूजा करते भी मिलेंगें ? ऐसी स्थिति में कौन सही है और कौन ग़लत यह कौन निर्धारित करेगा ? हर बार या विषय को देखने का हर व्यक्ति का अलग नज़रिया होता है और उसे किसी कानून के सहारे नहीं चलाया जा सकता है क्योंकि कानून से किसी के विचारों के प्रवाह को नहीं रोका जा सकता है पर लिखने वालों को यह ध्यान रखना चाहिए कि वे जो कुछ भी लिख रहे हैं उसका पूरे समाज पर क्या प्रभाव पड़ने वाला है ? लिखकर अपने को अलग कर देने से कोई मतलब नहीं हल होता है विचार वही कारगर होते हैं जो पूरी तरह से संतुलित तरीके से लिखे जाएँ. अपनी खीज को निकालने के लिए कही जाने वाली बातें आख़िर किस तरह की अभिव्यक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं ? इस अभिव्यक्ति से आख़िर समाज को क्या हासिल होता है ?अच्छा ही है कि ये बड़ी कम्पनियां सरकार और समाज की इस चिंता को समझने लगी हैं और उन्हें यह आभास हो गया है कि अभिव्यक्ति की आज़ादी दूसरों पर आक्षेप लगाने जैसी नहीं होती है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
कुछ लोगों को इस बात से भी आपत्ति होगी कि आख़िर गूगल को इस तरह से सरकार के सामने घुटने टेकने की क्या आवश्यकता है ? गूगल को पैसे चाहिए वह कोई अधिकारों की पैरवी करने वाला समूह नहीं है और कोई भी व्यापारिक गतिविधि सरकारों से लड़ाई करके नहीं चलायी जा सकती है अब यह गूगल की समझ में आ रहा है. इस तरह का नेट आधारित आपत्तिजनक कंटेंट डालने वाले केवल कुछ हिट पाने के लिए कुछ भी लिख देते हैं जबकि स्वस्थ और प्रगतिशील समाज में इस बात की आज़ादी नहीं दी जा सकती है कि कोई भी किसी भी तरह से किसी व्यक्ति, संस्था, धर्म, जाति आदि के बारे में कुछ भी लिख दे ? लिखने वालों को अब यह समझना ही होगा कि अगर उनको यह आज़ादी मिली हुई है तो उसके साथ ही लिखने की भी कोई सीमा है मतभेद कहीं पर भी हो सकते हैं पर उनको किसी आपत्तिजनक स्थिति तक पहुँचाना आख़िर किस तरह की अभिव्यक्ति है ? अगर कोई वास्तव में इस बात के लिए संवेदनशील है तो उसे यह देखना चाहिए कि आख़िर क्या कारण है कि लिखते समय सीमाओं का ध्यान नहीं रखा जाता है ?
भारत जैसा देश जो किसी भी मामले में अत्यधिक संवेदनशील है यहाँ पर किसी व्यक्ति को कुछ लोग गालियाँ निकलते मिल जायेंगे तो कुछ उसकी पूजा करते भी मिलेंगें ? ऐसी स्थिति में कौन सही है और कौन ग़लत यह कौन निर्धारित करेगा ? हर बार या विषय को देखने का हर व्यक्ति का अलग नज़रिया होता है और उसे किसी कानून के सहारे नहीं चलाया जा सकता है क्योंकि कानून से किसी के विचारों के प्रवाह को नहीं रोका जा सकता है पर लिखने वालों को यह ध्यान रखना चाहिए कि वे जो कुछ भी लिख रहे हैं उसका पूरे समाज पर क्या प्रभाव पड़ने वाला है ? लिखकर अपने को अलग कर देने से कोई मतलब नहीं हल होता है विचार वही कारगर होते हैं जो पूरी तरह से संतुलित तरीके से लिखे जाएँ. अपनी खीज को निकालने के लिए कही जाने वाली बातें आख़िर किस तरह की अभिव्यक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं ? इस अभिव्यक्ति से आख़िर समाज को क्या हासिल होता है ?अच्छा ही है कि ये बड़ी कम्पनियां सरकार और समाज की इस चिंता को समझने लगी हैं और उन्हें यह आभास हो गया है कि अभिव्यक्ति की आज़ादी दूसरों पर आक्षेप लगाने जैसी नहीं होती है.
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