पूरी दुनिया में अपने गौरव और कर्तव्यों के लिए जाने जाने वाली भारतीय सेना के सेनाध्यक्ष की उम्र को लेकर जो भी विवाद चल रहे थे सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद समाप्त हो गए हैं. यह एक ऐसा मसला था जिसमें उम्र को लेकर कुछ गड़बड़ी या ग़लतफ़हमी थी जिसका निवारण किये जाने के लिए मामला कोर्ट तक पहुँच गया था. सवाल यहाँ पर यह है कि क्या ऐसी स्थिति में सरकार किसी उच्च सेनाधिकारी के कहने के अनुसार उनकी उम्र के रिकॉर्ड में बदलाव कर सकती है ? और अगर वास्तव में ऐसी कोई ग़लती हुई है तो उसे सुधारने के इए क्या समय निर्धारित है जिसके अन्दर ही कोई अधिकारी अपनी इस परिवर्तन या सुधार की अर्जी दे सकता है ? मामला सेना का होने के कारण देश में संवेदन शीलता बढ़ गयी क्योंकि भारत में सेना केवल अपने से मतलब रखती है और किसी भी स्थिति में किसी भी सरकार के किसी भी निर्णय का अनुपालन करती है पर इस स्थिति में रक्षा मंत्रालय और सरकार की स्थिति ऐसी दिखाई देने लगी थी जैसे वे सेना के कामकाज में दखल दे रहे हैं.
मानवीय भूल के चलते इस तरह की घटना कभी भी हो सकती है पर इस सम्बन्ध में अगर सेनाध्यक्ष ने अपने उचित प्रपत्र सौंपे हों तो भी क्या मंत्रालय को यह अधिकार है कि वह उनकी जन्मतिथि का पुनर्निर्धारण अपने रिकॉर्ड में कर सके ? इस तरह की किसी भी गड़बड़ी में अभी तक सेना प्रमुख की तरफ से कब कब आवेदन किया गया और उस पर क्या निर्णय लिए गया ? सेना प्रमुख ने इतने वर्षों तक देश की सेवा की उस पूरे कार्यकाल में उन्होंने कितने प्रयास किये और किन कारणों से उनको माना नहीं गया ? यह सारी बातें जानने का हक़ देश को है क्योंकि भारत में इस तरह से सेना के अधिकारियों के सरकार के निर्णय के ख़िलाफ़ कोर्ट जाने की परंपरा नहीं रही है इसका यह मतलब कतई नहीं है कि सेना को आम भारतीयों की तरह मिले अधिकार नहीं मिले हुए हैं पर अभी तक जिस पारदर्शिता से यह पूरा काम होता रहा है उसमें किसी भी प्रकार के असंतोष की जगह ही नहीं रही है. अगर यह विवाद उनकी उम्र के बारे में था तो पिछली सभी सरकारों को भी इस बारे में जानकारी होगी और किन कारणों से वे भी इसमें कुछ नहीं कर पाए ? शायद मामला रक्षा मंत्रालय के किसी नियम के तहत उलझ गया था.
अब इस विवाद के थम जाने के बाद सरकार ने सेना प्रमुख से उनकी गरिमा को ध्यान रखते हुए और उनकी सेवाओं की सराहना करते हुए उनसे पद पर बने रहने का निवेदन किया है और साथ ही इस अंदेश के साथ कि कहीं वे अपना पद न छोड़ दें नए सेना प्रमुख की खोज के लिए वरिष्ठ अधिकारियों का पैनेल भी बना दिया है. यह काम काज की सामान्य परंपरा रही है पर इस मसले में सरकार अपने काम को पूरा रखने की कोशिश कर रही है कि अगर किसी स्थिति में सेना प्रमुख अपना पद छोड़ दें तो उसके पास अधिकारियों का एक पैनेल हो जिसमें से आवश्यकता पड़ने पर अगले सेना प्रमुख को नियुक्त किया जा सके. इस मसले में अब सारा दारोमदार जनरल वी के सिंह पर ही आकर टिक गया है. उनकी सेवाएं बहुत उत्कृष्ट रही हैं और उन्हें कोर्ट में हुए घटनाक्रम के अनुसार अपनी पूरी सेवा देश को देनी चाहिए जिससे किसी भी अप्रिय स्थिति से बचा जा सके. उनके मन में जो भी था उन्होंने न्याय मांगने का प्रयास किया पर इस तकनीकी ग़लती का कोई हल कोर्ट में नहीं निकल पाया.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
मानवीय भूल के चलते इस तरह की घटना कभी भी हो सकती है पर इस सम्बन्ध में अगर सेनाध्यक्ष ने अपने उचित प्रपत्र सौंपे हों तो भी क्या मंत्रालय को यह अधिकार है कि वह उनकी जन्मतिथि का पुनर्निर्धारण अपने रिकॉर्ड में कर सके ? इस तरह की किसी भी गड़बड़ी में अभी तक सेना प्रमुख की तरफ से कब कब आवेदन किया गया और उस पर क्या निर्णय लिए गया ? सेना प्रमुख ने इतने वर्षों तक देश की सेवा की उस पूरे कार्यकाल में उन्होंने कितने प्रयास किये और किन कारणों से उनको माना नहीं गया ? यह सारी बातें जानने का हक़ देश को है क्योंकि भारत में इस तरह से सेना के अधिकारियों के सरकार के निर्णय के ख़िलाफ़ कोर्ट जाने की परंपरा नहीं रही है इसका यह मतलब कतई नहीं है कि सेना को आम भारतीयों की तरह मिले अधिकार नहीं मिले हुए हैं पर अभी तक जिस पारदर्शिता से यह पूरा काम होता रहा है उसमें किसी भी प्रकार के असंतोष की जगह ही नहीं रही है. अगर यह विवाद उनकी उम्र के बारे में था तो पिछली सभी सरकारों को भी इस बारे में जानकारी होगी और किन कारणों से वे भी इसमें कुछ नहीं कर पाए ? शायद मामला रक्षा मंत्रालय के किसी नियम के तहत उलझ गया था.
अब इस विवाद के थम जाने के बाद सरकार ने सेना प्रमुख से उनकी गरिमा को ध्यान रखते हुए और उनकी सेवाओं की सराहना करते हुए उनसे पद पर बने रहने का निवेदन किया है और साथ ही इस अंदेश के साथ कि कहीं वे अपना पद न छोड़ दें नए सेना प्रमुख की खोज के लिए वरिष्ठ अधिकारियों का पैनेल भी बना दिया है. यह काम काज की सामान्य परंपरा रही है पर इस मसले में सरकार अपने काम को पूरा रखने की कोशिश कर रही है कि अगर किसी स्थिति में सेना प्रमुख अपना पद छोड़ दें तो उसके पास अधिकारियों का एक पैनेल हो जिसमें से आवश्यकता पड़ने पर अगले सेना प्रमुख को नियुक्त किया जा सके. इस मसले में अब सारा दारोमदार जनरल वी के सिंह पर ही आकर टिक गया है. उनकी सेवाएं बहुत उत्कृष्ट रही हैं और उन्हें कोर्ट में हुए घटनाक्रम के अनुसार अपनी पूरी सेवा देश को देनी चाहिए जिससे किसी भी अप्रिय स्थिति से बचा जा सके. उनके मन में जो भी था उन्होंने न्याय मांगने का प्रयास किया पर इस तकनीकी ग़लती का कोई हल कोर्ट में नहीं निकल पाया.
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मेरे अनुसार तो जनरल की बात ठीक लगती थी..
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