मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 21 फ़रवरी 2012

ब्लैकबेरी और भारत

        काफ़ी न नुकुर करने के बाद अपने अपने ग्राहक बचाए रखने की क़वायद में आख़िर ब्लैकबेरी ने मुंबई में अपना सर्वर लगा ही दिया है. अभी तक जो कम्पनी अपने महत्वपूर्ण ग्राहकों के दम पर यह सोच रही थी की वह किसी तरह से अपने लिए नियमों में छोट पा लेगी या फिर उसे किसी भी तरह से सुरक्षा सम्बन्धी छूट मिल जाएगी पर सुरक्षा सम्बन्धी चिंताओं को कड़े रवैये से निपटने के सरकारी रुख़ से उसको भी फिर से सोचना ही पड़ा. वैसे देखा जाये तो इससे ब्लैकबेरी की सेहत पर कोई अंतर नहीं पड़ने वाला है पर इसके बिना भारत की सुरक्षा के लिए गंभीर ख़तरा उत्पन्न हो सकता था. किसी भी कम्पनी के लिए यह बहुत आवश्यक होता है कि वह किसी अन्य देश में काम करते समय वहां के कानूनों के अनुसार काम करे जिसके लिए प्रारंभ में यह कम्पनी राज़ी ही नहीं हो रही थी पर जब सरकार की तरफ़ से सख्ती दिखाई गयी तो उसने अपने व्यापारिक हितों के चलते कानून का अनुपालन करना ही उचित समझा. बलिक्बेरी की सेवाएं वैसे भी विभिन्न भारतीय कम्प्नियोंके माध्यम से ही दी जा रही थीं तो सरकार उनके माध्यम से भी ब्लैकबेरी की सेवाएं बंद करने में सक्षम थी.
       देश में कहीं से भी उत्पन्न होने वाली किसी भी तरह की सुरक्षा चिंताओं के चलते ही भारत सरकार को इन सभी तक अपनी ख़ुफ़िया एजेंसियों की पहुँच चाहिए थी जिसको देने में या कम्पनी शुरू से ही आना-कानी कर रही थी ? पता नहीं ऐसा करके ये लोग क्या दिखाना चाहते थे और अब कानून के अनुपालन के बाद उनकी प्रतिष्ठा में क्या कमी आ गयी है ? नहीं पर उसका यह सोचना था कि हो सकता है कि अपने क़दम के साथ मजबूती से खड़े रहने के बाद सरकार कुछ हद तक नरमी के संकेत जारी कर दे पर इस समय देश को अच्छी तरह से हर मोर्चे पर सुरक्षा कारणों की चिंताओं को मिटाने में लगी सरकार ने अपने पक्ष को स्पष्ट कर दिया जिसके बाद कम्पनी के पास टिकने के लिए सर्वर लगाना या फिर कारोबार समेट लेने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं बचा था. आज के प्रतिस्पर्धी युग में कोई भी कम्पनी भारत जैसे विशाल बाज़ार की अनदेखी कर ही नहीं सकती है और इसी बात के दम पर भारत सरकार ने ब्लैकबेरी को कानून के दायरे में लाने का काम कर लिया.
         किसी भी तरह के टेलिकॉम लाइसेंस में यह स्पष्ट है कि भारत में काम करने वाली किसी भी कम्पनी को देश के कानून को अक्षरशः मानना होगा पर यहाँ पर कानून मानने की बात तो दूर उलटे ब्लैकबेरी खुद के तेवर दिखने से बाज़  नहीं आ रही थी ? कानून के अनुपालन को किसी की जीत या किसी की हार के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए क्योंकि कानून से देश और व्यवस्थाएं चला करती हैं और उनके साथ खड़े होने से आने वाले समय में काम करने के लिए अच्छे माहौल की व्यवस्था भी बनती है. इस पूरे प्रकरण में भारत सरकार ने मेल पर नियंत्रण के मामले में अभी ब्लैकबेरी को कुछ छूट दे दी है क्योंकि इसकी मेल के लिए लगभग ५ हज़ार सर्वर काम कर रहे हैं और ये सभी व्यावसायिक रूप से सक्रिय हैं तो उनके दुरूपयोग की संभावनाएं भी कम ही हैं फिर भी आने वाले समय में इसके दुरूपयोग की शिकायत मिलने अपर कम्पनी को अपने मेल सर्वर भी सरकार की नज़रों में लाने ही होंगें. अगर कम्पनी यह मानती है कि उसका काम गलत नहीं है तो फिर वह केवल निजता के नाम पर सुरक्षा की चिंताओं को कैसे निपटा सकेगी ? अच्छा ही हुआ कि उसने व्यासायिक रुख अपना कर अपने ग्राहकों को बचा लिया और भारत में अपनी सेवाओं को देने का मन भी बना लिया.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

2 टिप्‍पणियां:

  1. आशुतोष जी,

    छिपे हुए तथ्यों से रूह-ब-रूह कराने के लिए साधुवाद।

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

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