मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 22 फ़रवरी 2012

किंगफिशर का संकट

       जिस तरह से सार्वजनिक क्षेत्र की विमानन कम्पनी एयर इंडिया के बाद अब किंगफिशर के सामने आर्थिक संकट आ गया है उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि तेज़ी बढ़ते हुए भारतीय विमानन उद्योग में कहीं न कहीं कुछ कमी अवश्य है जिस कारण से विमानन कम्पनियों के लिए चुनौतियाँ बढ़ती ही जा रही हैं ? ऐसा नहीं है कि इस तरह की चुनौतियाँ केवल भारत में ही हैं पर यहाँ पर जिस तरह से इससे निपटा जाता है वह वैश्विक समस्या से बिलकुल अलग होता है यहाँ पर सरकार एयर इंडिया को बचाने के लिए आर्थिक सहायता पर विचार करती है तो वहीं पर निजी क्षेत्र के सामने समस्या आने पर उसके लिए कोई स्पष्ट दिशा निर्देश समय रहते जारी नहीं किये जाते हैं. यह एक ऐसा मसला है जिसके बारे में भारत सरकार को नए सिरे से सोचकर नीतियों का पुनर्निर्धारण करना ही होगा क्योंकि उसके बिना किसी न किसी कम्पनी के समक्ष इस तरह के संकट आते ही रहेंगें ? वैसी स्थिति में विमानन मंत्रलय और सरकार की सोच इनको बचाने की तरफ होनी चाहिए जिससे यह उद्योग देश में फलता फूलता रहे.
     इस तरह के किसी भी प्रकरण में इन कम्पनियों के कर्मचारियों के लिए बहुत बड़ी समस्या आ जाती है क्योंकि उनके सामने अचानक से ही चलती हुई कोई विमान कम्पनी बंद होने के कगार पर पहुँच जाती है ? जिसका सबसे ज़्यादा असर सबसे पहले उन यात्रियों पर पड़ता है जिन्होंने उसके टिकट खरीद रखे होते हैं क्योंकि उनके लिए अपनी यात्रा करना आवश्यक होता है तो उन्हें नए टिकटों के लिए काफी अधिक धनराशि भी खर्च करनी पड़ती है जिससे उनके लिए समस्या होती है. इसके बाद विमान कम्पनी के परिचालन से जुड़े हुए कर्मचारियों के लिए आर्थिक संकट आता है क्योंकि आख़िर वे समय पर वेतन न मिल पाने की स्थिति में किस तरह से अपने खर्चों को पूरा करें ? उन बैंकों आदि पर भी बाज़ार का दबाव बढ़ जाता है जिन्होंने इस तरह की संकट ग्रस्त कम्पनियों के लिए धन क़र्ज़ के रूप में दिया होता है और उनके प्रदर्शन पर इस बात का काफी असर पड़ जाता है. जिस तरह से कार्पोरेट कार्य मंत्री वीरप्पा मोइली ने भी किंगफिशर को बचाए जाने की बात कही है उससे यही लगता है कि अब सरकार इस बारे में कुछ सोचना शुरू कर चुकी है.
    मोइली ने यह भी स्पष्ट किया है कि अब किंगफिशर पर यह ज़िम्मेदारी है कि वह कोई ऐसी कार्य योजना पेश करे जिस पर कार्पोरेट और वित्त मंत्रालय की सहमति मिल सके क्योंकि अब इस तरह की किसी स्पष्ट योजना के बिना किंगफिशर को बचाया नहीं जा सकता है. जिस तरह से कम्पनी के सीईओ ने डीजीसीए से मुलाक़ात करके एक हफ्ते में परिचालन से जुड़ी समस्या को हल करने की बात कही है उससे यही लगता है कि अब ठोस प्रयास शुरू किये जा चुके हैं. ऐसी किसी भी स्थिति में पहले से टिकट ले चुके यात्रियों के हितों की रक्षा करने के लिए कुछ अवश्य किया जाना चाहिए क्योंकि किंगफिशर की सेवाएं बंद होने से अन्य कम्पनियों ने इसका लाभ उठाना शुरू कर दिया है ऐसे में यात्रियों के सामने संकट आ गया है. ऐसी किसी स्थिति से निपटने के लिए स्पष्ट दिशा निर्देश होने चाहिए और सेवा दे रही विमान कम्पनियों को इस बात की छूट नहीं दी जानी चाहिए कि वे इस स्थिति का लाभ उठाना ही शुरू कर दें ? यह सही है कि देश में यह उद्योग अभी विकास कर ही रहा है तो कोई भी अपने आर्थिक हितों को सबसे ऊपर रखना चाहता है पर इसका असर आम यात्रियों और कार्मिकों पर कैसे कम से कम हो यह देखना अब सरकार की ज़िम्मेदारी है.   
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें